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प्रवचन ::::आज भी हिंदू हैं आदर्शों के प्रति समर्पित तथा निष्ठावान

अब यद्यपि हिंदू समाज में इस धर्म में कुछ त्रृटियां आने लगी है, तथापि आज भी अनेक हिंदू ऐसे हैं, जो अपने आदर्शों के प्रति समर्पित तथा निष्ठावान हैं. पारंपरिक रूप से जीवन को निम्नलिखित चार आश्रमों में विभक्त किया गया था. ब्रह्मचर्य : यह जीवन के प्रारंभिक 25 वर्षों का काल विद्याध्ययन के लिये […]

अब यद्यपि हिंदू समाज में इस धर्म में कुछ त्रृटियां आने लगी है, तथापि आज भी अनेक हिंदू ऐसे हैं, जो अपने आदर्शों के प्रति समर्पित तथा निष्ठावान हैं. पारंपरिक रूप से जीवन को निम्नलिखित चार आश्रमों में विभक्त किया गया था. ब्रह्मचर्य : यह जीवन के प्रारंभिक 25 वर्षों का काल विद्याध्ययन के लिये होता था. बच्चों को सात-आठ वर्ष की अवस्था में शिक्षा के लिये गुरु आश्रमों में छोड़ दिया जाता था. आश्रम के वातावरण तथा योग्य गुरु के निर्देशन में बच्चों में गहरी समझबूझ आती थी जो उनके आगामी जीवन का आधार होती थी. वे आश्रम से विकसित चेतना स्तर तथा सुव्यवस्थित जीवन का वरदान लेकर लौटते थे.गृहस्थ : ब्रह्मचर्य के बाद 50 वर्ष की आयु पर्यंत गृहस्थ जीवन व्यतीत किया जाता था, जिसमें शिक्षा समाप्ति के पश्चात ब्रह्मचारी व्यवसाय द्वारा अर्थोपार्जन व संतानोत्पत्ति करता था. अत: यह काल उसकी अपनी तहत्वाकांक्षी की पूर्ति को हाता था.

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