प्रभात चर्चा में रविवार को झारखंड के स्पीकर शशांक शेखर भोक्ता प्रभात खबर दफ्तर पहुंचे. उन्होंने चर्चा के दौरान न सिर्फ अपने राजनीतिक जीवन की बातें बतायी. बल्कि वर्तमान में स्पीकर पद पर रहते हुए राज्य की वस्तुस्थिति से अवगत कराया. उन्होंने जहां संतालपरगना के पिछड़ेपन के कारणों का जिक्र किया, वहीं कैसे संताल और राज्य विकास के पथ पर आगे बढ़ सकता है, उसके लिए ब्यूरोक्रेट्स को इंगित कर टिप्स दिये. पूरी चर्चा में उन्होंने अपनी बेबाक राय दी. उन्होंने कहा : झारखंड बनने के बाद इन 13 सालों में संताल परगना के विकास पर किसी का ध्यान नहीं गया. प्रस्तुत है चर्चा के दौरान उनसे बातचीत के अंश:
झारखंड की कार्य संस्कृति पर आप क्या कहेंगे?
देखियेः जहां तक मेरा मानना है. राज्य में ब्यूरोक्रेट्स अपनी व्यवस्था बनाना चाहते हैं. अपनी लीक पर सरकार चलाना चाहते हैं. जब असफल हो जाते हैं तो इसका ठीकरा राजनेताओं पर फोड़ देते हैं. इससे राज्य का विकास नहीं हो सकता. अफसर एसी में बैठकर योजना बनाते हैं. कोई भी योजना वैज्ञानिक ढंग से नहीं बनायी जाती है. झारखंड के तमाम चेक डैम तकनीकी रूप से ठीक नहीं बने हैं, इसलिए असफल हो रहे हैं. ड्रम चेकडैम काफी सफल हुआ लेकिन उसकी लागत 60 से 80 हजार है, इसलिए उस पर अफसरों का ध्यान नहीं है. महंगे चेकडैम जो विफल हो रहे हैं, वही योजना बनाया जा रहा है. लेकिन इसकी जिम्मेवारी लेने वाला कोई नहीं है. अफसर बैठकर कुर्सी तोड़ते हैं. काम के प्रति जवाबदेह नहीं हैं. इसलिए अफसरों की अकाउंटिबिलिटी तय होनी चाहिए. जो अफसर काम नहीं कर रहे हैं उसका सीआर लिखा जाना चाहिए. तभी विकास की गाड़ी आगे बढ़ेगी.
कैसे होगा संतालपरगना का विकास?
संतालपरगना आज भी पिछड़ा है. पूरे झारखंड की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ करना है तो सन 2000 की सोच से उबरना होगा. खनिज आधारित उद्योग की सोच से बाहर आना होगा. कृषि आधारित उद्योग को बढ़ावा देना होगा. यहां बड़े-बड़े बांध और डैम की जरूरत नहीं है. बस बारिश के पानी का संचयन कर लें तो सालों भर यहां के खेत को पानी मिलता रहेगा. बल्कि मेरा मानना है कि इंडस्ट्री के लिए जितने पैसे सरकार दे रही है, उसे कृषि पर ही खर्च करें तो संतालपरगना का विकास होगा. इसके लिए कृषि, गव्य, मत्स्य पालन बढ़ावा देना होगा.
सरकारी योजनाएं भी पलायन रोकने में कारगर नहीं है क्यों?
सरकारी योजनाओं का लाभ गांव के अंतिम व्यक्ति तक नहीं पहुंच रहा है. मनरेगा मजदूरों को दो माह से मजदूरी का भुगतान नहीं हो रहा है. ब्यूरोक्रेट्स कहते हैं व्यवस्था ऑन लाइन कर रहे हैं, सीधे खाते में पैसा जायेगा. लेकिन अफसर बिल बनायेगा, पैसे अकाउंट में डालेगा तब न मजदूरों को मिलेगा. यहां शांति सहअस्तित्व का बोलबाला है. यानी आप मुङो पैसे दो मैं आपको योजना दूंगा. क्या कभी बीडीओ, बीएओ का वेतन रूका है, नहीं. यही कारण है कि लोगों को काम नहीं मिल रहा, रोजगार के अभाव में लोग पलायन कर रहे हैं. गरीबी के कारण बच्चे और यहां के भोले-भाले लोग दलालों के चंगुल में फंसते हैं. इसे रोकने के लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करना होगा.
विधानसभा समितियों के क्रियाकलाप के बारे में क्या कहेंगे?
स्पीकर बनने के बाद मैंने समितियों का रिव्यू किया. देखा कि समितियों को अफसर तरजीह नहीं देते, बैठकों में भी नहीं जाते हैं. जब शिकंजा कसा तो अब कम से कम अफसर समितियों की बैठक में जा रहे हैं. हां, ये बात सही है कि समितियों की सिफारिशें या प्रतिवेदन फाइलों में ही धूल फांक रहे हैं. क्योंकि विधानसभा अपना काम कर देती है कार्रवाई करना सरकार की जिम्मेवारी है.
राज्य की सरकार अल्पमत में है क्या?
सरकार अल्पमत में है या नहीं, यह देखना राज्यपाल का काम है. हां फ्लोर पर नो कान्फिडेंस मोशन आयेगा तो वे इसके लिए तराजू लेकर तैयार हैं.
श्रवणी मेले में स्थायी व्यवस्था नहीं होने का क्या कारण है?
स्थायी व्यवस्था हो जायेगा तो कइयों का फायदा बंद हो जायेगा. आज नहीं कई सालों से मैं कह रहा हूं कि यहां मेला प्राधिकार का गठन होना चाहिए. लेकिन ब्यूरोक्रेट्स नहीं चाहते कि प्राधिकार बने. सरकार से लेकर ब्यूरोक्रेटस तक मेला के प्रति गंभीर नहीं है. आने वाले दिनों में ऐसा ही रहा तो व्यवस्था पर नियंत्रण नहीं रह जायेगा.