दुम्मा से लेकर बाबा मंदिर तक के करीब दस किलोमीटर के रास्ते में हर वर्ष श्रावणी मेले में करीब 20 अरब का कारोबार होता है. लेकिन, इसका समुचित लेखा-जोखा नहीं होता है. बाजार एवं कांवरियों द्वारा खर्च की जाने वाले राशि का गणित भी चौंकाने वाला है. आकलन के अनुसार भोजन, आवासन, प्रसाद (चूड़ा-पेड़ा, इलाइची दाना, बद्धदी आदि) व बच्चों के लिए खिलौने का बाजार काफी समृद्ध है. प्रत्येक कांवरिया बाजार में करीब तीन हजार रुपये खर्च करता है. यानि बाजार में 18 करोड़ रुपये तक खर्च करते हैं.
यही नहीं पंडा बाबा को दक्षिणा देने के साथ-साथ अपने-अपने घर लौटने के लिए ट्रेन किराया व बस किराया के नाम पर करीब एक हजार रुपये अतिरिक्त खर्च करते हैं. यानि 4.50 अरब से 6 अरब रुपये खर्च करते हैं. निजी व व्यावसायिक वाहनों से देवघर पहुंचने वाले तीर्थयात्री वाहनों में हर रोज करीब पांच लाख लीटर (3.25 करोड़ रुपये) का ईंधन भरवाते हैं. यानि एक माह में 97.50 करोड़ रुपये फ्यूल पर खर्च होता है. एक माह तक चलने वाले इस मेले का समुचित लेखा-जोखा नहीं होता है. अगर समुचित लेखा-जोखा रखा जाये तो सरकार को प्रत्येक श्रावणी मेले में देवघर से करोड़ों रुपये का राजस्व प्राप्त हो सकता है.