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कवि सम्मेलन में हांस्य व्यंग्य पर खूब लगे ठहाके

राजकीय इटखोरी महोत्सव के तीसरे दिन शुक्रवार की रात कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया. कवयित्री व कवियों ने अपने हास्य व्यंग्य और कविता प्रस्तुत की. इस दौरान श्रोताओं ने खूब ठहाके लगाये. कवयित्री व कवियों के हास्य व्यंग को सुन श्रोता लोटपोट हुए

इटखोरी. राजकीय इटखोरी महोत्सव के तीसरे दिन शुक्रवार की रात कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया. कवयित्री व कवियों ने अपने हास्य व्यंग्य और कविता प्रस्तुत की. इस दौरान श्रोताओं ने खूब ठहाके लगाये. कवयित्री व कवियों के हास्य व्यंग को सुन श्रोता लोटपोट हुए.

एसपी साहब इटखोरी किधर है, गूगल काम नहीं कर रहा

उत्तर प्रदेश के लखनऊ से आये डॉ सर्वेश अस्थाना ने हास्य व्यंग्य के माध्यम से श्रोताओं को खूब झुमाया. उन्होंने राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता की चर्चा करते हुए कहा कि जब-जब देश की राजनीति लड़खड़ाती है तब-तब साहित्य ने उसे संभाला है. मैं अक्सर सोचता हूं कि तुम मिलों तो कुछ बात हो जाये घिरे बादल तो कुछ बरसात हो जाये. मैं घूमने निकलूं तुझे लेकर तो टायर पंचर हो जाये और जहां सारी रात बीत जाये… उन्होंने पुलिस पर व्यंग प्रस्तुत करते हुए कहा कि मुझे इटखोरी के महोत्सव मंच पर पहुंचना था. इस बीच गूगल काम नहीं किया. गोल-गोल घूमने लगा तो एसपी साहब को फोन कर पूछा कि साहब गूगल काम ही नहीं कर रहा है. इटखोरी किधर है जहां महोत्सव का मंच है. एसपी जवाब दिया कोई जिम्मेदार से पूछ लो. रास्ते में एक वर्दी वाला पुलिस मिला उनसे पूछा कि भाई इटखोरी किधर है. तो हंसते हुए आगे निकल गया, तो अब बताओ भाई जिम्मेदार कौन है किस्से पूछूं इटखोरी किधर है. पुलिस, टोपी, गाड़ी, गिरफ्तारी, सजा, जेल, कोठरी, जमानत स्त्रिलिंग है तो पुलिंग क्या है. हम अपने मित्र नेता जी के घर गये. देखा, नेता जी मर गये. हमने उनकी पत्नी से पूछा, नेता जी मर गये. रस्सी से लटक कर या जहरीला एसिड पीकर या कुछ फांक कर. तो उनकी पत्नी ने जवाब दिया. कुछ नहीं फांका था, लाख मना के बाद वह अपने गिरेबान में ही झांका था.

रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा

उत्तर प्रदेश के कवि डॉ विष्णु सक्सेना ने भी अपने कविता के माध्यम से लोगों को खूब हंसाया. कहा कि रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा, एक आई लहर कुछ बचेगा नहीं तुमने पत्थर सा दिल हमको कह तो दिया पत्थरों पर लिखोगे मिटेगा नहीं. मैं तो पतझर था फिर मुझे क्यूं निमंत्रण दिया. ऋतु बसंती को तन पर लपेटे हुए आस मन में लिये प्यास तन में लिये…तू हवा है तो करले अपने हवाले मुझको इससे पहले कि कोई और बहा ले मुझकों. आइना बन के गुजारी है जिंदगी मैंने टूट जाऊंगा बिखेरने से बचा ले मुझको प्यास बुझ जाये तो सबनम खरीद सकता हूं जख्म मिल जाय तो मरहम खरीद सकता हूं…सोचता था कि तुम गिरकर संभल जाओगे रोशनी बनकर तुम अंधेरे को जलाओगे न तो मौसम थे न हालात न तारीख न दिन किसे पता था कि तुम ऐसे बदल जाओगे….चांदनी रात में रंग ले हाथ में जिंदगी को नया मोड़ दे तुम हमारी कसम तोड़ दें तो हम तुम्हारी कसम तोड़ दें प्यार की होड़ में दौड़ के देखिये. झूठे बंधन कभी तोड़ के देखिये. ढाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय दोहा भी सुनाया.

कलयुग की रावणों से अपनी सीता को बचा लो

दिल्ली से आयी कवयित्री पद्मिनी शर्मा ने भारत की संस्कृति परम पुनिता बचा लो कर्मों की अदालत में अपनी गीता बचा लो मंदिर तो आज कल में बन ही जायेंगे मगर कलयुग की रावणों से अपनी सीता बचा लो… अपमान जिस किसी से नारियों का किया है जग में उसका वंश न बचा है… मीरा की तरह जहर भी पीती है बिटियां, बिटियां के नाम पर कोई व्रत नहीं फिर भी तो पूरी उम्र जीती है बिटियां… लड़की एक साड़ी खरीदने में पूरा बाजार बिखेर देती है, उसे चुनकर लाया है वह मैं पदमिनी हूं मैं.

सब कुछ है जिंदगी में लेकिन प्यार नहीं

उत्तर प्रदेश सिद्धार्थनगर के कवि स्वयं श्रीवास्तव ने कहा कि पुरखों से हमें विरासत में कुछ न मिला था. किस्मत की बाजियों पर इख्तियार नही सब कुछ है जिंदगी में लेकिन प्यार नही है….मुश्किल थी संभालना ही पड़ा घर के वास्ते और फिर घर से निकलना ही पड़ा घर के वास्ते, मजबूरियों का नाम ही रख लिया शोक के रास्ते. जिस रास्ते पर चल रहे, उस रास्ते पर है छल पड़े. कल भोर की चिंता में रात न आयी. कोई गिरकर संभालता है, तो चलना सिख लेता.

दुनियां भर में झारखंड की अपनी अलग पहचान

झारखंड धनबाद के कवि राजेश अग्रवाल ने झारखंड को अपने जंगल का राजा बताते हुए कविता पढ़ी. उन्होंने कहा कि यहां पर राम की खुशियों में खुशरह्मान रहता है यहां सब के दिलों में हिंदुस्तान रहता है जो अपनों संग होते हैं सुखी संसार लगता है कोई जो बोल दे हंसकर वही उपहार लगता है. संगम में जो डुबकी मार के आया कपड़े न मिला तो..मिलना-मिलाना दोस्तों से रोज कीजिये जो हय तनावग्रस्त उसकी खोज कीजिये. हंसने-हंसाने आये हैं मौज कीजिये. दिल में बचा हुआ कोई अरमान नहीं है पद छोड़ दिए कहता है भगवान नहीं हैं… जंगल झरनों और खदानों हमको दुनियां भर में वरदान है. झारखंड की अपनी पहचान है. झारखंड की इस माटी में धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा, सिद्धू-कान्हु, नीलांबर-पीतांबर जैसा बेटा चाहिये. उनके जैसे दुनियां भर में अपनी पहचान बनाने वाला इंसान चाहिये. सच्चे सपनो की ये धरती है उड़ान, दुनियां भर में झारखंड की अपनी पहचान है. हम जंगल के बीच रहें हर दिन मंगलगीत गाते हैं. इस धरती सचमुच सोने की खान हैं.

महोत्सव के सफल संचालन पर डीसी ने जताया आभार

राजकीय इटखोरी महोत्सव के सफल समापन के अवसर पर डीसी रमेश घोलप ने शुरू से अंत तक सकारात्मक भूमिका निभाने वाले प्रसाशन, पुलिस, जनप्रतिनिधि, मंदिर प्रबंधन समिति, पत्रकार, रैयत, आम नागरिक व श्रद्धालुओं के साथ अन्य सभी लोगों के प्रति आभार व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि राजकीय इटखोरी महोत्सव को अगले वर्ष और बेहतर बनाने की दिशा में जिला प्रशासन प्रयास करेगा. राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय के साथ झारखंड के कई ऐसे स्थानीय कलाकार हैं, जिन्हें इस महोत्सव मंच के माध्यम से अपनी कला के साथ प्रतिभा को निखारने का मौका मिला. साथ ही उन्हें सम्मान देने का अवसर भी प्राप्त हुआ. श्रोताओं में भी काफी उत्साह देखने को मिकी. जिन्होंने कलाकारों का हौसला बढ़ाया. उन्होंने कहा कि इटखोरी के मां भद्रकाली मंदिर ऐतिहासिक धार्मिक धरोहर है. इस प्राचीन धरोहर को समृद्ध बनाने के साथ संरक्षण में सभी अहम भूमिका निभाएं. इस अवसर पर पूर्व श्रम मंत्री सत्यानंद भोगता, पूर्व सांसद सुनील कुमार सिंह, बरही विधायक मनोज कुमार यादव, जिप अध्यक्ष ममता कुमारी, उपाध्यक्ष ब्रजकिशोर तिवारी व जेएमएम नेता मनोज कुमार चंद्रा उपस्थित थे. समापन समारोह के बाद जिला प्रशासन ने पटाखें छोड़कर आतिशबाजी भी की.

कलाकारों ने जलवा बिखेर श्रोताओं को खूब झूमाया

सिंगर दिवस कुमार ने लिखे जो खत तुझे, ओ तेरी याद में. सबेरा जब हुआ तो फूल बन गये के अलावें नागपुरी गाने थोड़ा ताली बजा दो थोड़ा सिटी बजा दो. मर जायेंगे, मिट जाएंगे रे थोड़ा सा प्यार कर लो. मिलने की तुम कोशिश करना, वादा तो टूट जाता है गाना गाया. वहीं स्थानीय बॉलीवुड कलाकार अभिषेक प्रधान ने देश से है प्यार तो हर पल कहना मैं रहूं या न रहूं के अलावें माई प्रबल दंड प्रचंड भुजबल दंड कोटि दानव की भक्ति प्रस्तुति दी. आर्यन रॉय ने हिंदी गाना के साथ सूफी सुनाया. पिया रे पिया रे तोरे बिना लगें मोर जिया रे. प्रेम की माला जपते-जपते. होली खेले रगुबिरा, अवध में होली खेले रघुबीरा होली का गाना गाया.

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Prabhat Khabar News Desk
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