चाईबासा. आदिवासी बहुल क्षेत्र में कोल्हान प्रमंडल में जनजातीय युवाओं को स्थानीय भाषा में उच्च शिक्षा देने के लिए वर्ष 2009 कोल्हान विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी. हालांकि, इसके उद्देश्य पूर्ति में शिक्षकों की कमी बहुत बड़ी बाधा है. विश्वविद्यालय में ट्राइबल रीजनल लैंग्वैज (टीआरएल) विभाग है, जो वर्षों से उपेक्षित है. विभाग में एक भी स्थायी शिक्षक नहीं हैं. सरकारी स्तर से इस दिशा में मुकम्मल प्रयास नहीं किया गया. विभाग के हो, कुड़माली और संताली भाषा के 360 से अधिक विद्यार्थी हैं. जबकि मात्र दो गेस्ट शिक्षक को भरोसे विभाग चल रहा है. संताली विभाग के शिक्षक के चले जाने के बाद से एक सहायक के भरोसे संचालित है.
तीन पद सृजित, लेकिन नहीं हुई बहाली:
कोल्हान विश्वविद्यालय के टीआरएल विभाग के लिए विश्वविद्यालय स्तर पर तीन शिक्षकों का पद को अनुमोदन मिला था. इसमें एक कुड़माली, एक संताली और एक हो भाषा के लिए था. हो बहुल क्षेत्र के कारण अतिरिक्त एक हो शिक्षक का पद सृजित किया गया. हालांकि, अबतक शिक्षक पदस्थापित नहीं हुए. विश्वविद्यालय के सिंडिकेट से पास कराते हुए सरकार के मानव संसाधन विकास विभाग को जानकारी दी गयी. वर्तमान में हो विभाग के पीजी में विद्यार्थियों की संख्या 253, कुड़माली में 60 और संताली में 50 हैं.संस्कृत विभागाध्यक्ष को मिला टीआरएल विभाग का प्रभार :
विश्वविद्यालय में वर्ष 2011 में टीआरएल को 23वें विभाग के रूप में शुरू किया गया. इस दौरान 2015 से 2020 तक डॉ कारू मांझी संताली विभागाध्यक्ष रहे. वहीं 2021 से 22 तक डॉ बीरबल हेम्ब्रम हो भाषा विभागाध्यक्ष रहे. इसके बाद संस्कृत विभागाध्यक्ष को अतिरिक्त प्रभार दिया गया है.नैक के मानक को कैसे पूरा करेगा केयू
नैक की ग्रेडिंग की प्रक्रिया में सात महत्वपूर्ण पड़ाव हैं. इसमें नवाचार व सर्वोत्तम प्रथाएं अंकित हैं. विश्वविद्यालय के भौगोलिक क्षेत्र को देखते हुए जनजातीय भाषा पर जोर देना जरूरी है. ऐसे में नैक के मानक को विवि कैसे पूरा करेगा.विवि ने एचआरडी को सूची भेजी, पर नहीं हुई पहल
केयू के पीजी विभाग समेत 13 अंगीभूत कॉलेजों में टीआरएल की अलग अलग भाषाओं की पढ़ाई होती है. यहां शिक्षकों के पदसृजन व पदस्थापन के लिए 135 शिक्षकों की सूची बनाकर सरकार के मानव संसाधन विकास विभाग को भेजी गयी थी. अबतक इस दिशा में पहल नहीं की गयी.– टीआरएल विभाग में शिक्षकों की कमी को लेकर मानव संसाधन विकास विभाग को कोल्हान विश्वविद्यालय ने रोस्टर बनाकर भेजा है. वहां से अनुमति के बाद आगे की प्रक्रिया को विश्वविद्यालय स्तर पर पूरा किया जा सकेगा.
– प्रो. डॉ अंजिला गुप्ता
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