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PHOTOS: चाईबासा के बस पड़ाव का हाल, 52 साल में पांच गुनी बढ़ी आबादी, पर एक एकड़ में ही सीमित स्टैंड

चाईबासा शहर में व्यवस्थित बस स्टैंड नहीं होने से जहां लोगों को परेशानी उठानी पड़ती है, वहीं, बसों के ठहराव के लिए कम पड़ रही जमीन के कारण बसें सड़कों पर खड़ी हो रही है. इससे सदर और बड़ी बाजार में जाम की स्थिति उत्पन्न हो जाती है.

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चाईबासा, सुनील कुमार सिन्हा : कोल्हान प्रमंडल मुख्यालय के चाईबासा शहर में व्यवस्थित बस पड़ाव नहीं है. इससे लोगों को न केवल आवागमन में परेशानी होती है, बल्कि दुर्घटना की आशंका भी बनी रहती है. चाईबासा में निजी बस पड़ाव की व्यवस्था करीब 52 साल पूर्व उस समय की गयी थी, जब शहर की आबादी एक 50 हजार भी नहीं थी. तब यात्री बसों की संख्या भी करीब दर्जनभर ही थी. अब शहर की आबादी करीब पांच गुना बढ़ गयी है. उस हिसाब से बसों की संख्या भी बढ़कर डेढ़ सौ से ज्यादा हो गयी है, जिसके ठहराव के लिए कम से कम आठ से दस एकड़ की जमीन चाहिए, लेकिन यह निजी बस पड़ाव का स्थल एक एकड़ से भी कम है. हालांकि, चाईबासा निजी बस पड़ाव के अलावा सरकारी बस पड़ाव भी है, जिसकी जमीन निजी बस पड़ाव से डेढ़ से दो गुना है, लेकन यह भी पूरी तरह से अव्यवस्थित है. इस वजह से यहां भी दर्जनभर यात्री बस का एक साथ ठहराव असंभव हो जाता है. नतीजतन दूसरे शहर से आने वाली यात्री बसों को तब तक सड़क पर खड़े रखकर इंतजार करना पड़ता है. जब तक स्टैंड में जगह नहीं मिल जाये. ऐसे में सड़क पर बसों के खड़े रहने के कारण आवागमन बाधित होता है. इससे जाम का असर सदर बाजार और बड़ीबाजार मार्ग पर भी पड़ता है. मौजूदा समय में यह दोनों बस पड़ाव नगर परिषद के अधीन व इससे नप को सालाना लाखों रुपये का राजस्व भी प्राप्त होता है.

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दुकान, होटल और शौचालय बनने से 25-30% जमीन घटी

मालूम हो कि निजी बस पड़ाव का स्थल शहर के सबसे दूसरे पुराने रुंगटा हाई स्कूल के पास बनाया गया था, जहां पूर्व में ग्रामीण टोकरी और बोरी में धान-चावल के अलावा, खटिया, रस्सी, मुर्गी, बकरी और तसर के कोकून बेचने के लिये आते थे. उस समय निजी बसों के ठहराव घड़ी घर, पोस्ट ऑफिस चौक के पास निर्धारित था और दोना जगहों पर यात्री प्रतीक्षालय भी बनाया गया था. वहीं, अस्सी (1980) के दशक में ग्रामीण व्यवसायियों को मंगलाहाट परिसर में जगह दे दी गयी और उक्त स्थान पर बस स्टैंड बना दिया गया. करीब एक एकड़ जमीन पर बस स्टैंड के निर्माण के साथ ही इसी परिसर में दर्जनों दुकान, होटल और शौचालय बना दिया गया है. इससे बस स्टैंड की करीब 25-30% जमीन घट गयी. अब स्थिति यह है कि जितना बड़ा पार्किंग स्थल है, उससे करीब 15 गुना ज्यादा बसें हो गयी है.

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छोटी सवारी गाड़ियों की संख्या नौ गुना ज्यादा

निजी बस स्टैंड के अलावा सरकारी बस पड़ाव पर भी यात्री बसें खड़ी की जाती हैं, लेकिन इसकी संख्या दर्जनभर तक ही है. इस सरकारी बस पड़ाव में सबसे ज्यादा हालांकि छोटी सवारी गाड़ियों की संख्या इससे नौ गुना ज्यादा है, जो ज्यादातर ग्रामीण रूटों पर दौड़ती है, लेकिन यह बस पड़ाव पूरी तरह से अव्यवस्थित है. यहां न तो यात्री शेड है और ना ही शौचालय की व्यवस्था है. इससे खासकर महिला यात्रियों को काफी परेशानी होती है. इसके अलावा इस बस स्टैंड में कचरों की भरमार है. इस बस स्टैंड परिसर में ही एक चौड़ी नाली भी बहती है, जो हमेशा बजबजाती रहती है.

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जमीन के अभाव में हाइटेक बस पड़ाव नहीं बना

ऐसी बात नहीं है कि नगर परिषद की ओर से निजी बस स्टैंड को व्यवस्थित करने की कोशिश नहीं की गयी है. इस बस पड़ाव को हाइटेक और व्यवस्थित करने के लिये नगर विकास विभाग ने इसकी जानकारी मांगी थी. साथ ही राशि उपलब्ध कराने का आश्वासन भी दिया था, लेकिन कम जमीन होने के कारण यह योजना करीब पांच साल तक स्थगित रही. इसके बाद नगर परिषद द्वारा बस पड़ाव बनाने के लिये शहर से बाहर ग्रामीण क्षेत्र में करीब 6 एकड़ स्थल का चयन भी किया गया, लेकिन ग्रामीणों के विरोध के कारण जमीन नहीं मिल पायी और यह योजना खटाई में पड़ गयी.

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