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Bokaro News : विस्थापन, पलायन, प्रदूषण व बेरोजगारी के दंश से कराह रहा बेरमो

Bokaro News : बेरमो अनुमंडल अंतर्गत बेरमो, गोमिया, नावाडीह व चंद्रपुरा प्रखंड के लोग वर्षों से विस्थापन, पलायन, प्रदूषण, पेयजल समस्या व बेरोजगारी की समस्या से वर्षों जूझे रहे हैं.

बेरमो. बेरमो अनुमंडल अंतर्गत बेरमो, गोमिया, नावाडीह व चंद्रपुरा प्रखंड के लोग वर्षों से विस्थापन, पलायन, प्रदूषण, पेयजल समस्या व बेरोजगारी की समस्या से वर्षों जूझे रहे हैं. चार दशकों में यहां एक भी उद्योग-धंधे नहीं लगे, पूरे बेरमो अनुमंडल में पलायन एक विकराल समस्या है. हर साल हजारों युवक रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं. सिर्फ गोमिया विस क्षेत्र के 10 से 15 हजार नौजवान अभी भी मुंबई, चेन्नई, गुजरात आदि राज्यों में काम कर रहे हैं.

पलायन करने वाले युवकों की मौत दुर्घटनाओं में होने की खबर अक्सर आती रहती है. एक की चिता की राख ठंडी भी नहीं होती है कि दूसरे की मौत की खबर आ जाती है. बेरमो अनुमंडल के शहरों में कई बड़े कल-कारखाने तथा उद्योग संचालित हैं. शहरों में उद्योग-धंधों की भरमार होने के बावजूद यहां के गांव पलायन का संताप झेल रहे हैं. जिनकी जमीन पर कल-कारखाने जगमग हैं, वे रोजी-रोटी के लिए मारे-मारे फिरते हैं. बीते कुछ सालों में बोकारो जिले में ही केवल पलायन के कारण 200 से अधिक युवाओं की मौत हो चुकी है. बोकारो जिला अंतर्गत नावाडीह प्रखंड के पलामू, बरई, नारायणपुर, पिलपिलो, गोनियाटो, काछो, पेक, पोखरिया, मुंगो रंगामाटी, कोठी, भवानी, सुरही, भलमारा, कुकरलिलवा, चिरूडीह,कोदवाडीह, जमुनपनिया, हुरसोडीह, आहरडीह-केशधरी, दहियारी, कसमार प्रखंड के सिंहपुर, पिरगुल, हरनाद, मुडमुल, बगदा, दुर्गापुर, सुधीबेडा, खैराचातर, जरीडीह प्रखंड-अराजू, भस्की, पाथुरिया, गांगजोरी, बेलडीह, हल्दी, हरीडीह़ गोमिया प्रखंड के झूमरा का सुअरकटवा, सीमराबेड़ा, बलथरवा, अमन, करीखुर्द, तुलबुल, बड़की सिधावारा, बड़कीचिदरी, लोधी, चतरोचटी, कडमा, जगेश्वर, तिलैया, कशियाडीह, मुरपा, रहावन, पचमो, दनिया, सिमराबेडा, धवैया, चंद्रपुरा प्रखंड के पपलो, तारानारी, तरंगा, बंदियो, फुलवारी, चिरूडीह आदि जगहों से सबसे ज्यादा पलायन होता है. बेरमो व गोमिया विस क्षेत्र औद्योगिक बहुल क्षेत्र होने के कारण यहां विस्थापन की समस्या गंभीर है. जिन लोगों की जमीन सीसीएल व डीवीसी ने वर्षों पूर्व अधिग्रहीत की है, आज वैसे ग्रामीण दर-दर की ठोकरें खाने को विवश हैं. वर्षों से उनका नियोजन व मुआवजा लंबित है. कभी भी मुखर रूप से ऐसे विस्थापितों की आवाज संसद के गलियारों में नहीं गूंजती. कई बार विस्थापित नेताओं ने कोल इंडिया प्रबंधन से आग्रह किया कि सीसीएल व बीसीसीएल को जिस जमीन की जरूरत नहीं है, उसे रैयतों को वापस किया जाये. बेरमो अंतर्गत सीसीएल, डीवीसी, टीटीपीएस व तेनुघाट डैम के विस्थापितों की बदहाली की लंबी दास्तां है. समय-समय पर विस्थापित अपनी मांगों को लेकर आंदोलन करते हैं, जिसके बाद संबंधित प्रबंधन से वार्ता होती है. प्रबंधन विस्थापितों को मांगों के निराकरण का आश्वासन भी देता है, लेकिन फिर स्थिति पूर्ववत हो जाती है.

सिंचाई की माकूल व्यवस्था नहीं

पूरे बेरमो अनुमंडल क्षेत्र में सिंचाई की भी समस्या है. सिंचाई की अगर माकूल व्यवस्था हो तथा आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किसान कर सके तो वे अपने खेतों में तीन फसल लेने में सक्षम हो सकते हैं. लेकिन कहीं भी समुचित चेक डैम की व्यवस्था नहीं है. सालों भर लोग पेयजल की भीषण समस्या से जूझते रहते हैं. बेरमो व गोमिया में जलसंकट की समस्या विकराल है. आज भी ग्रामीण क्षेत्राें में लोग नाला, तालाब, डांडी आदि पर पेयजल के लिए निर्भर हैं. बेरमो अनुमंडल के लोगों की उम्र प्रतिदिन छाई व कोयला प्रदूषण से घट रही है.

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