बोकारो, पूजा में भाव की महत्ता होती है. प्रभु भक्त के भाव को देखते हैं. यदि हम राम को पाना चाहते हैं, तो वे हमें अनुराग से प्राप्त होंगे. प्रभु की छवि को ही मन में बसाना होगा. एक बार छवि मन में बस गयी, तो राम सब जगह दिखेंगे. ये बातें कथावाचक राजन जी महाराज ने कही. श्री राजन जी महाराज सोमवार को सेक्टर चार स्थित मजदूर मैदान में आयोजित श्रीराम कथा में प्रवचन दे रहे थे. नौ दिवसीय कार्यक्रम के पांचवें दिन श्री सीता-राम विवाह प्रसंग का वर्णन किया. बता दें कि श्रीराम कथा आयोजन ट्रस्ट की ओर से आयोजन किया जा रहा है. कथावाचक राजन जी ने सीता स्वयंवर व प्रभु श्री राम के धनुष उठाने वाले दृश्य का जीवंत वर्णन कर सभी को भाव-विभोर कर दिया. अयोध्या से मिथिला तक बारात की यात्रा व मिथिला में बारात के आतिथ्य सत्कार पर भी कथा में चर्चा हुई.
मनोकामना पूर्ण होने पर बढ़ा देनी चाहिए पूजा
कथावाचक राजन जी महाराज ने श्रीराम विवाह की मनोहारी कथा सुनायी. भगवान भक्तों का सदैव उचित ही करते हैं. राम को यह पता है कि किसे किस वस्तु की आवश्यकता है, उनसे वह मांगने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. लेकिन, विश्वास नहीं होता. इसलिए हम उसे मांगने लगते है. कहा कि यदि जीवन में कभी कुछ प्राप्त न हो रहा हो, तो मांगने की वस्तु बदल कर देखना चाहिए. राम कथा में मनोकामना और पूजा के संबंध के बारे में भी बताया गया. कुछ लोग प्रभु की आराधना मनोकामना की प्राप्ति के लिए करते हैं और जैसे ही मनोकामना पूर्ण होती है, पूजा बंद कर दी जाती है. इस पर राजन जी ने कहा : मनोकामना पूर्ण होने पर पूजा बढ़ा देनी चाहिए.
राजा जनक ने सीता के स्वयंवर के लिए धनुष यज्ञ का किया आयोजन
राजन जी महाराज ने कहा कि राजा जनक के घर में भगवान शिव का धनुष रखा हुआ था, जिसे एक दिन सीता जी ने घर की सफाई करते हुए उठाकर दूसरी जगह रख दिया. उसे देख राजा जनक को बहुत आश्चर्य हुआ, क्योंकि वह धनुष कोई उठा ही नहीं सकता था. उसी समय राजा जनक ने प्रतिज्ञा ली कि जो इस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा, उसी से मेरी पुत्री सीता का विवाह होगा. राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के स्वयंवर के लिए धनुष यज्ञ का आयोजन किया. सीता स्वयंवर में बड़े-बड़े राजाओं को निमंत्रण भेजा. राजन जी ने कहा : धनुष यज्ञ में कई देश-देशांतर के राजा, गन्धर्व व यहां तक कि राक्षस भी मनुष्य का रूप धारण कर के स्वयंवर में आये. राजा जनक ने बंदीजनों के माध्यम से अपना प्रण उपस्थित राजाओं को सुनाया कि जो भी राजा की शिव धनुष को तोड़ेगा, उसी के साथ अपनी पुत्री सीता का विवाह करूंगा. सीता स्वयंवर में पहुंचे राजाओं ने शिव धनुष को तोड़ने की खूब जोर आजमाइश की. लेकिन, शिव धनुष टस से मस नहीं हुआ. यह देख राजा जनक को चिंता सताने लगी. कहा : क्या यह धरती वीरों से खाली है.शिव के धनुष टूटते ही आकाश से देवगण करते हैं पुष्प वर्षा
राजा जनक की चुनौतीपूर्ण बात सुनकर गुरु सहित राजकुमार लक्ष्मण तमतमा उठे. इसी बात पर ऋषि विश्वामित्र की आज्ञा पाकर रामचंद्र जी उठते है और बिजली की चमक की तरह पल मात्र में शिव धनुष को पकड़ते ही शिव धनुष टूट जाता है. शिव के धनुष टूटते ही आकाश से देवगण पुष्प वर्षा करते हैं. साथ ही चारों ओर जय जयकार होने लगती है. धनुष भंग होने के बाद राजा जनक अपनी पुत्री सीता का विवाह राम के साथ करते हैं. सीता जी श्रीराम के गले में जयमाला डालती है. जय श्रीराम के नारे गूंजते रहे.मनुष्य को स्वरूप के अनुरूप व्यवहार करना चाहिए
जब सीता स्वयंवर में श्री राम द्वारा शिव धनुष के तोड़े जाने का समाचार भगवान परशुराम को मिला, तो वे क्रोधित होकर वहां आते हैं और शिवधनुष को टूटा हुआ देखकर परशुराम जी अपने आपे से बाहर हो जाते हैं. अर्थात वे अत्यधिक क्रोधित हो जाते हैं. श्री राम के प्रेमपूर्वक समझाने और विश्वामित्र द्वारा समझाने पर और साथ ही श्री राम की शक्ति की परीक्षा लेकर अंत में उनका गुस्सा शांत होता है. कहा कि मनुष्य को स्वरूप के अनुरूप व्यवहार करना चहिए. जिसको कोई नहीं देखता, उसे श्रीराम देखते है.
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