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मयखानों को नहीं मिल रहे खरीदार

बोकारो: वैसे तो शराब की बोतल खरीदने वालों की जिले में कोई कमी नहीं है, लेकिन शराब की दुकानों की बंदोबस्ती में कोई दिलचस्पी लेता नहीं दिख रहा है. वित्तीय वर्ष 2014-15 समाप्त होने में कुछ ही दिन शेष बचे हैं. इसे लेकर जिले का उत्पाद विभाग आगामी वित्तीय वर्ष में राजस्व वसूली के लिए […]

बोकारो: वैसे तो शराब की बोतल खरीदने वालों की जिले में कोई कमी नहीं है, लेकिन शराब की दुकानों की बंदोबस्ती में कोई दिलचस्पी लेता नहीं दिख रहा है. वित्तीय वर्ष 2014-15 समाप्त होने में कुछ ही दिन शेष बचे हैं. इसे लेकर जिले का उत्पाद विभाग आगामी वित्तीय वर्ष में राजस्व वसूली के लिए कुल 91 शराब दुकानों (देसी- 17, विदेशी- 35 व कंपोजिट- 49 दुकानों) की बंदोबस्ती कराने में लगा है. शराब दुकानों की बंदोबस्ती के लिए 31 समूह बनाये गये हैं.

29 समूहों में जिले के विभिन्न क्षेत्रों तथा श्रेणी की तीन-तीन शराब दुकानें व शेष दो समूहों में दो-दो शराब दुकान शामिल हैं. लॉटरी सिस्टम के जरिये दुकानों की बंदोबस्ती करायी जा रहा है. यानी जिस व्यवसायी का लॉटरी में नाम निकलेगा, उसे संबंधित समूह के सभी दुकान लेने होंगे.

शराब व्यवसायियों का गैरकानूनी तर्क
उत्पाद विभाग ने जिले की सभी शराब दुकानों की बंदोबस्ती के लिए आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि 10 मार्च निर्धारित की थी, लेकिन अबतक केवल 13 समूह के कुल 38 दुकानों के लिए ही आवेदन डाले गये हैं. वहीं 18 समूह के 53 दुकानों को लेने के लिए कोई सामने नहीं आया है. इधर, कुछ लोगों की मांग है कि वे देशी शराब दुकान का ठेका भी तब लेंगे, जब उन्हें इसके अलावे अन्य जगहों पर भी काउंटर खोल कर शराब बेचने की जिला प्रशासनसे सहमति मिले. यानी शराब के अवैध कारोबार में प्रशासन की मौखिक अनुमति मिलने का भी इंतजार कुछ लोगों को है.
अपने तरीके से समझा रहा विभाग
सस्ती महुआ शराब गैरकानूनी तरीके से जगह-जगह धड़ल्ले से बिक रही है. सरकारी शराबों की बिक्री में कमी आने का यह भी एक बड़ा कारण है. गौरतलब है कि महुआ शराब बेचने वाले पुलिस की नजरों से बच निकलते हैं, जबकि सरकारी शराब को होटल आदि में बेचने पर दुकानदार को गिरफ्तार कर लिया जाता है. इसलिए शराब व्यवसायी फिलहाल ‘सेफ गेम’ खेलने के मूड में दिख रहे हैं. ऐसे लोगों की मांग है कि आवंटित शराब दुकान के अलावे अन्य जगहों पर भी इन शराब की बोतलों को बेचने की अनुमति प्रशासन से मिले, तभी वह कम मुनाफा वाले शराब दुकान की बंदोबस्ती में शामिल होंगे. शराब व्यवसायियों की इस गैरकानूनी शर्त से उत्पाद विभाग भी पशोपेश में है. बहरहाल विभाग व्यवसायियों को समझा-बुझा कर फिर से बंदोबस्ती के लिए आवेदन जमा करने की तिथि निर्धारित करने की प्रक्रिया में लगा है.
शहरी क्षेत्र की देसी शराब दुकानों पर संकट
13 समूह के जिन 38 शराब दुकानों की बंदोबस्ती के लिए आवेदन जमा कराये गये हैं, उससे उत्पाद विभाग को प्रतिमाह एक करोड़ 18 लाख रुपये का राजस्व मिलेगा. वहीं अगर शेष 18 समूह के 53 दुकानों की बंदोबस्ती नहीं हुई तो विभाग को प्रतिमाह दो करोड़ 30 लाख रुपये के राजस्व का नुकसान होने की संभावना है. जानकारी के अनुसार जिले में कार्यरत 17 देसी शराब दुकानों में से केवल पांच (गोमिया, कथारा, पेटरवार, जैनामोड़ व चंदनकियारी) को लेने के लिए व्यवसायी की उत्सुकता दिख रही है. कम मुनाफा व अधिक राजस्व देने की जवाबदेही के कारण शहरी क्षेत्र की अधिकतर देसी शराब दुकानों को व्यवसायी नहीं लेना चाह रहे हैं.
सात शराब दुकानों को हटाया गया
वित्तीय वर्ष 2014-15 में उत्पाद विभाग को जिले में कुल 98 शराब दुकानों की बंदोबस्ती करानी थी. इसमें विभिन्न श्रेणी के कुल 75 शराब दुकानों की ही बंदोबस्ती हो पायी थी. हर वर्ष शत-प्रतिशत शराब दुकानों की बंदोबस्ती नहीं होने के कारण वित्तीय वर्ष 2015-16 में जिले के विभिन्न क्षेत्रों की सात दुकानों को हटा दिया गया है. विभाग ने इस वर्ष चास के दो विदेशी शराब दुकान, माराफारी के कर्नल मार्केट की कंपोजिट शराब दुकान, नया मोड़ की देसी शराब दुकान, पाली-प्लाजा हॉल के पास स्थित देसी शराब दुकान व स्थानीय लोगों के विरोध के कारण कसमार की कंपोजिट शराब दुकान की बंदोबस्ती नहीं कराने का निर्णय लिया है. इसके बाद भी जिले के 12 देसी, 18 विदेशी व 33 कंपोजिट शराब दुकान की बंदोबस्ती पर फिलहाल प्रश्न चिह्न् लगा है.

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