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परमवीर सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव कल सुनायेंगे शौर्य की गाथा

बोकारो : हम देश के लिए जीते हैं, देश के लिए मरते हैं. हम कल भी सैनिक थे, आज भी सैनिक हैं. कल देश की सुरक्षा में तैनात थे, आज समाज की सुरक्षा में तैनात हैं. देश वासियों के दिलों में देशभक्ति की भावना को जगाये रखना ही हमारा मिशन है. यही हमारी भूख है. […]

बोकारो : हम देश के लिए जीते हैं, देश के लिए मरते हैं. हम कल भी सैनिक थे, आज भी सैनिक हैं. कल देश की सुरक्षा में तैनात थे, आज समाज की सुरक्षा में तैनात हैं. देश वासियों के दिलों में देशभक्ति की भावना को जगाये रखना ही हमारा मिशन है. यही हमारी भूख है. यह मिशन चित्रकारी, संगीत, नृत्य, कविता के माध्यम से चल रहा है. अनवरत जारी रहेगा. ये बातें सेक्टर चार भारत सेवा आश्रम में गुरुवार को प्रेस वार्ता में गीतकार-संगीतकार-चित्रकार बाबा सत्य नारायण मौर्य ने कही.

मौर्य ने कहा : पूर्व सैनिक सेवा परिषद बोकारो की ओर से आठ सितंबर को बोकारो क्लब सेक्टर पांच में देश भक्ति कार्यक्रम होगा. इसमें परमवीर चक्र से सम्मानित सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव शामिल होंगे. कार्यक्रम की शुरुआत सुबह नौ बजे से तिरंगा यात्रा से होगी. पूर्वाह्न 10:30 बजे व्याख्यान के बाद शाम पांच बजे मां तुझे सलाम… गाथा एक शौर्य की प्रस्तुति की जायेगी. हमें सही इतिहास नहीं पढ़ाया जाता है. उदाहरणस्वरूप हवाई जहाज व टेलीफोन का आविष्कार भारत में हुआ. जबकि हमें विदेशों की कहानी पढ़ाई जाती है. मुझे आज तक कोई पुरस्कार नही मिला. मेरा पुरस्कार यही है कि सरकार ने मुझे अब तक गिरफतार नहीं किया.
परिषद पदाधिकारियों ने कहा : कार्यक्रम में सरकार दिलचस्पी नहीं होती है. समय से पहले झारखंड सरकार के मंत्री व विधायक को कार्यक्रम की जानकारी दी गयी. सहभागिता के लिए पत्र भी भेजा गया. अब तक सरकार का कोई जवाब नहीं आया. कार्यक्रम जनता के भरोसे होता है. मौके पर दिनेश्वर सिंह, सुरेश बाबू, राकेश मिश्र, रवि रंजन दूबे, राजीव कुमार, जयवंत सिंह, प्रदीप झा आदि मौजूद थे.
उनके शरीर से डेढ़ दर्जन गोलियां निकाली गयी थीं. 1000 फीट की ऊंचाई की चोटी पर रस्सियों के सहारे चढ़े़ वहां जाकर शत्रु के बंकर को ध्वस्त किया और चार दुश्मनों का सफाया किया़ इस दौरान उनकी छाती व गले में तीन-तीन गोलियां लगीं. इसके बावजूद उन्होंने पुन: 60 फीट की सीधी चढ़ाई चढ़ी और दुश्मन के बंकर में ग्रेनेड फेंक कर फिर चार दुश्मनों को मार गिराया. ऐसी अदम्य साहसिक घटना निश्चित ही इनके जीवन में किसी अलौकिक ईश्वरीय शक्ति के समावेश होेने का आभास दिलाता है़ इनके इस अपूर्व साहस व शौर्य कृत्य के कारण ही हमारे कमांडो पलटन के जवानों ने टाइगर हिल के शिखर पर पहुंच कर तिरंगा फहराने में सफलता पायी़ इनकी वीरता की कहानी राेमांचित कर देती है़
संक्षिप्त जीवनी
कारगिल युद्ध के इस महानायक का जन्म 10 मई 1980 को बुलंदशहर के औरंगाबाद अहीर गांव में हुआ था़ इनके पिता करण सिंह भी कुमायूं रेजिमेंट के एक सैनिक थे, जिन्होंने 1965 व 1971 का युद्ध लड़ा था. इनके भाई भी फौज में थे़ पिता व भाई से युद्ध की कई कहानियां सुनी थीं, उसी समय से फौज में जाकर अपने देश की सेवा करने के लिए उनका मन मचलने लगा था़ 16 वर्ष पांच महीने की अल्प आयु में वह सेना के 18 ग्रेडीनियर में भरती हुए़ सेना में रहने के कुछ वर्षों की उनकी कई रोचक गाथाएं हैं. एकबार उन्होंने शत्रुओं से ऐसी लड़ाई लड़ी थी कि बुरी तरह घायल हो गये थे. उन्हें पाकिस्तानी सेना ही नहीं अपनी सेना भी मृत मान चुकी थी़ मरणोपरांत उन्हें परमवीर चक्र देने की घोषणा की गयी थी, लेकिन वे अस्पताल में जी उठे, यह ईश्वर का एक करिश्मा था़

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