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ट्रेनों के पहिये थमते ही जनजीवन पर आर्थिक नाकेबंदी जैसा असर

बालीडीह : बोकारो रेलवे स्टेशन परिसर से जुड़े सैकड़ों लोग तीन दिन से अपनी गिरती कमाई से परेशान हैं. धनबाद रेलवे रूट के बंद होते ही स्टेशन परिसर से जुड़े लोगों के माथे पर बल पड़ने लगे हैं. बोकारो स्टेशन से गुजरने वाली सवारी गाड़ियों के बंद होने से स्टेशन परिसर की बुक स्टॉल, भोजनालय, […]

बालीडीह : बोकारो रेलवे स्टेशन परिसर से जुड़े सैकड़ों लोग तीन दिन से अपनी गिरती कमाई से परेशान हैं. धनबाद रेलवे रूट के बंद होते ही स्टेशन परिसर से जुड़े लोगों के माथे पर बल पड़ने लगे हैं. बोकारो स्टेशन से गुजरने वाली सवारी गाड़ियों के बंद होने से स्टेशन परिसर की बुक स्टॉल, भोजनालय, हॉकर, मोटर वेहिकिल स्टैंड, बाइक स्टैंड सहित आसपास की अन्य दुकानों पर ट्रेनों की बंदी की मार साफ दिखने लगी है. एक अनुमान के मुताबिक इन दुकानों की कमाई 60 फीसदी तक गिर गयी है. अब उनकी चिंता है कि क्या रेलवे को क्या दें और क्या खाएं? यह चिंता प्रभावित लोगों ने प्रभात खबर के साथ से वार्ता के दौरान प्रकट की.

ट्रेन के अनुसार तय है स्टॉल की दर
जानकारी के अनुसार किसी भी स्टेशन में ट्रेनों के स्टॉपेज तथा आवाजाही के हिसाब से रेलवे स्टेशनों पर स्टॉलों की दर तय की जाती है. 15 जून के बाद बोकारो से प्रमुख 14 ट्रेनों का फेरा बंद होने के बाद यह सवाल उठने लगा है कि क्या रेलवे तय दर को कम करेगा?
रूट बंद होने से कई प्रमुख ट्रेनों की आवाजाही बंद हो गयी है. इससे व्यापार पर प्रतिकूल असर देखा जा सकता है. कमाई 60 फीसद से ज्यादा कम हो गयी है. स्टाफ पेमेंट का खर्च तक नहीं निकलता.
तारा चंद , फूड प्लाजा, मैनेजर)
पुस्तकों की बिक्री तो पहले से ही मंद थी. अखबारों की बिक्री ही एक सहारा थी, वह भी आधी हो गयी. दिन भर का खर्च नहीं निकलता. क्या करें, कुछ समझ नहीं आ रहा. बिजली से लेकर अन्य बिल भी भरना कठिन हो रहा है.
शिवेंद्र कुमार सिंह, पुस्तक दुकानदार
जब ट्रेन प्लेटफॉर्म तक पहुंचेगी ही नहीं तो हमारी की कमाई कैसे होगी. यात्रियों की संख्या आधी से भी कम हो गयी है. परिवार चलाना चुनौती है. जल्द ही वैकल्पिक व्यवस्था करनी होगी.
ओम प्रकाश गुप्ता, हॉकर
सुबह और शाम को यात्रियों की भरमार रहती थी. परिवार चलाने भर कमाई की चिंता नहीं रहती थी, लेकिन धनबाद रूट पर डीसी लाइन के बंद हो जाने से अब अपना पेट तक पालना मुश्किल होता जा रहा है.
रंजीत ठाकुर, स्टेशन के बाहर दुकानदार
प्रतिदिन करीब 13-15 हजार रु तक की कमाई होती थी. इसमें से रेलवे को 11 हजार देने पड़ता है. ट्रेन बंदी ने कमाई आधी कर दी. अब रेलवे, लड़कों या मालिक को क्या और कैसे दें? एक बड़ी समस्या है.
रवि झा ,मोटर वेहिकल स्टैंड संचालक
बाइक स्टैंड में प्रतिदिन ढाई से तीन सौ गाड़ियां आती थीं. साइकिलें भी काफी रहती थी. दूर-दराज के लोग बाइक आदि लगाते थे. रूट बंदी से गाड़ियों की संख्या जहां सौ डेढ़ सौ पर आ कर अटक गयी, वहीं साइकिल की संख्या नगण्य हो गयी.
कन्हैया सिंह , बाइक, साइकिल स्टैंड संचालक सह ऑटो चालक संघ अध्यक्ष

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