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रांची : 14 साल से अधिक सजा काट ली, लेकिन नहीं हुई रिहाई, कैदियों ने चीफ जस्टिस को लिखा पत्र, कैदियों का पत्र जनहित याचिका में तब्दील
रांची : घाघीडीह सेंट्रल जेल जमशेदपुर के कैदियों द्वारा चीफ जस्टिस को लिखे गये पत्र को झारखंड हाइकोर्ट ने गंभीरता से लेते हुए उसे जनहित याचिका में तब्दील कर दिया. शुक्रवार को चीफ जस्टिस अनिरुद्ध बोस व जस्टिस डीएन पटेल की खंडपीठ ने पत्र में उल्लेख किये गये तथ्यों पर स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य […]
रांची : घाघीडीह सेंट्रल जेल जमशेदपुर के कैदियों द्वारा चीफ जस्टिस को लिखे गये पत्र को झारखंड हाइकोर्ट ने गंभीरता से लेते हुए उसे जनहित याचिका में तब्दील कर दिया. शुक्रवार को चीफ जस्टिस अनिरुद्ध बोस व जस्टिस डीएन पटेल की खंडपीठ ने पत्र में उल्लेख किये गये तथ्यों पर स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार, घाघीडीह सेंट्रल जेल के अधीक्षक को नोटिस जारी किया.
शपथ पत्र के माध्यम से जवाब देने को कहा गया. वहीं खंडपीठ ने झालसा के सदस्य सचिव को निर्देश दिया कि वह अपने पैनल अधिवक्ता को कैदियों से मिलने को भेजें तथा आवश्यक कार्रवाई की जाये. आदेश की प्रति सेंट्रल जेल के अधीक्षक को भेजने का निर्देश दिया गया. खंडपीठ ने मामले की सुनवाई के लिए 14 दिसंबर की तिथि निर्धारित की.
इससे पूर्व महाधिवक्ता अजीत कुमार ने जानकारी लेकर कोर्ट को अवगत कराने की बात कही.
उल्लेखनीय है कि जेल में सजा काट रहे कैदी यशपाल सिंह सुंडी व अन्य की अोर से चीफ जस्टिस को मार्मिक पत्र लिखा गया था. पत्र में कहा गया है कि 14 साल से अधिक की सजा काट चुके हैं. इसके बावजूद झारखंड राज्य सजा पुनरीक्षण परिषद में उनके मामलों पर कोई विचार नहीं किया गया है. उनका भी परिवार है. बच्चे हैं. वह भी अपने परिवार के पास जाना चाहते हैं. उनके नाम पर भी विचार किया जाना चाहिए.
अवमानना याचिका पर हुई सुनवाई शाह ब्रदर्स को नहीं मिली राहत
रांची : झारखंड हाइकोर्ट में शुक्रवार को माइनिंग परिवहन चालान निर्गत करने को लेकर अवमानना याचिका पर सुनवाई हुई. चीफ जस्टिस अनिरुद्ध बोस व जस्टिस डीएन पटेल की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए प्रार्थी की दलील को स्वीकार नहीं किया. बाद में मामले की सुनवाई करने की बात कही. प्रार्थी मेसर्स शाह ब्रदर्स को राहत नहीं मिल पायी. 22 नवंबर को मामले की अगली सुनवाई होगी.
इससे पूर्व प्रार्थी की अोर से खंडपीठ को बताया गया कि हाइकोर्ट के आदेश के आलोक में सरकार द्वारा मांगे गये 250 करोड़ रुपये में से प्रथम किस्त के तहत 40 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया, लेकिन 36 घंटे बीत जाने के बाद भी उसका माइनिंग परिवहन चालान सरकार ने निर्गत नहीं किया है. सरकार कोर्ट के आदेश की अवमानना कर रही है.
अब दूसरी किस्त का भी समय आ गया है. 14 नवंबर को पुन: 40 करोड़ रुपये जमा करना है. बिजनेस बंद है. जनवरी 2017 से उसका माइनिंग कार्य बंद है. आर्थिक संकट है. दूसरी किस्त की राशि जमा करने का समय बढ़ाने का आग्रह किया. इसका विरोध महाधिवक्ता अजीत कुमार ने किया. उन्होंने कहा कि पैसा सरकार का है. उसे आपको जमा करना होगा. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी मेसर्स शाह ब्रदर्स ने अवमानना याचिका दायर कर हाइकोर्ट के आदेश का अनुपालन कराने का आग्रह किया है.
उपभोक्ता आयोग के पत्र पर हाइकोर्ट गंभीर, लिया स्वत: संज्ञान, राज्य सरकार से जवाब मांगा
रांची : झारखंड हाइकोर्ट ने राज्य उपभोक्ता आयोग के रजिस्ट्रार द्वारा लिखे गये पत्र को गंभीरता से लेते हुए उसे जनहित याचिका में तब्दील कर दिया. पत्र में उल्लेखित तथ्यों पर चीफ जस्टिस अनिरुद्ध बोस व जस्टिस डीएन पटेल की खंडपीठ ने स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया. सरकार को शपथ पत्र के माध्यम से जवाब दाखिल करने को कहा गया. मामले में अधिवक्ता सुमित गाड़ोदिया को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया गया. अब इस मामले की अगली सुनवाई 14 दिसंबर को होगी.
उल्लेखनीय है कि आयोग के रजिस्ट्रार द्वारा लिखे गये पत्र में कहा गया है कि आयोग द्वारा एक मामले में जमानतीय वारंट जारी किया गया था. इसे तमिलनाडु के डीजीपी व पुलिस के वरीय अधिकारियों को कार्रवाई करने के लिए भेजा गया. उस पर अब तक न तो कोई कार्रवाई की गयी है आैर न ही वहां के पुलिस महकमा द्वारा कोई सूचना दी गयी है. उपभोक्ता एक्ट में इस तरह की स्थिति से निपटने का कोई प्रावधान नहीं है. वैसी स्थिति में हाइकोर्ट अपना मार्गदर्शन दे. खंडपीठ ने मामले को गंभीर मामला बताते हुए इसे जनहित याचिका में तब्दील कर दिया.
डॉ आरके राणा व ओपी दिवाकर की जमानत खारिज
रांची. झारखंड हाइकोर्ट के जस्टिस अपरेश कुमार सिंह की अदालत में शुक्रवार को चारा घोटाला मामले में सजायाफ्ता की ओर से दायर जमानत याचिकाओं पर सुनवाई हुई. अदालत ने प्रार्थी और सीबीआइ का पक्ष सुनने के बाद जमानत देने से इनकार कर दिया. साथ ही जमानत याचिका खारिज कर दी़ उल्लेखनीय है कि प्रार्थी पूर्व सांसद डॉ आरके राणा व अोपी दिवाकर की ओर से अलग-अलग जमानत याचिका दायर की गयी थी. सीबीआई की विशेष अदालत ने उन्हें सजा सुनायी है.
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