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Friday, March 29, 2024

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हाजीपुर में पहले लगता था हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला

हाजीपुर : दे श की दो पवित्रतम नदियों गंगा-गंडक के संगम पर हरिहर क्षेत्र मेला कब से लग रहा है. इसका कोई ग्रंथीय प्रमाण उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह जन विश्वास है कि इस मेले का प्रारंभ प्राचीन काल में यहां गंडक नदी में हुए गज-ग्राह युद्ध और उसमें भगवान विष्णु का प्रकट होकर ग्राह […]

हाजीपुर : दे श की दो पवित्रतम नदियों गंगा-गंडक के संगम पर हरिहर क्षेत्र मेला कब से लग रहा है. इसका कोई ग्रंथीय प्रमाण उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह जन विश्वास है कि इस मेले का प्रारंभ प्राचीन काल में यहां गंडक नदी में हुए गज-ग्राह युद्ध और उसमें भगवान विष्णु का प्रकट होकर ग्राह का वध और अपने भक्त गजेंद्र के उद्धार की कथा से जुड़ा हुआ है. जिस स्थल पर यह युद्ध हुआ था उसे लोक जुबान में कौनहारा घाट कहा जाता है. यह हाजीपुर का सबसे पवित्रतम स्थल है. हाजीपुर में मेला लगता था इसका प्रमाण मिलता है.

जिसमें शहर के कुछ स्थानों के नाम अभी भी वर्तमान में लोग पुकारते हैं. हथसारगंज जहां पर हाथी आकर बिकते थे वह स्थान वर्तमान में भी है. लोगों ने वहां पर बगीचा काट कर मकान बना लिये हैं. रामाशीष चौक के पास घुड़दौड़ पोखर है. जहां घोड़ों का मेला लगाता था. घोड़ों के दौड़ को देखने के लिए लोगों की भीड़ जमा होती थी.

मीनापुर राई इस स्थान पर मीना बाजार लगा करता था. भारत के चार धर्म महाक्षेत्रों में एक हरिहर क्षेत्र का धार्मिक महत्व गज-ग्राह के युद्ध की कथा से ही जुड़ा हुआ है. यह भी माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान विष्णु ने अन्याय के प्रति ग्राह का वध किया और गजेंद्र का उद्धार किया. यही कारण है कि हरिहर क्षेत्र को गजेंद्र मोक्ष क्षेत्र भी कहा जाता है और उसी युद्ध की स्मृति में उनके नाम से हरिहर क्षेत्र में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यह मेला लगता आया है.

जिसे अंगरेजों ने विश्व का सबसे बड़ा पशु मेला(कैटल फेयर) कहा था. एक दूसरी कथा- प्राचीन काल में शैव और वैष्णवों में अपने-अपने मतों के वर्चस्व को लेकर खूनी संघर्ष हुआ करता था. बाद में दोनों में एकता स्थापित करने के लिए हरिहर क्षेत्र में ही दोनों मतालंबियों का एक महासम्मेलन हुआ. जिसमें यह माना गया कि हरि और हर एक ही सर्वेश्वर के रूप हैं. इस लिए यह संघर्ष खत्म होना चाहिए और ऐसा हुआ भी.

वह महासम्मेलन भी कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था और उसी में लिए गये निर्णय के अनुसार गंडक नदी के तट पर हरि और हर की संयुक्त प्रतिमा स्थापित की गयी और उस मंदिर का नाम हरिहरनाथ मंदिर रखा गया. यह मंदिर गंडक नदी से सटे सोनपुर में है. हरिहर क्षेत्र गंडक नदी के दोनों ओर यानि हाजीपुर और सोनपुर में विस्तारित है.

गंडक नदी पर अंगरेजों के जमाने में रेल पुल बनने से पहले बिहार, उड़ीसा और बंगाल के पशु व्यापारियों और श्रद्धालुओं का जमावड़ा गंडक नदी के पूर्वी भाग हाजीपुर में हुआ करता था, जबकि पश्चिमी भाग यानि सारण तथा उत्तर प्रदेश के पूर्वी भागों के श्रद्धालुओं और व्यापारियों का जमावड़ा सोनपुर क्षेत्र में होता था. हाजीपुर के बड़े भूभाग पर हाथी, घोड़े और बैलों का बाजार लगा करता था. श्रद्धालु भी गंडक में स्नान कर नाव से उस पार जाकर हरिहर नाथ मंदिर में जल चढ़ाते थे.

गंडक नदी पर रेल पुल के साथ उसके दोनों किनारे पैदल आने-जाने वालों के लिए फूटपाथ बना था. जो मेला के दौरान हाजीपुर से सोनपुर और सोनपुर से हाजीपुर आने वाले यात्रियों के लिए सुविधाजनक मार्ग बना.

बढ़ती आबादी के कारण जब हाजीपुर में जगह कम पड़ने लगी तो अंगरेजों ने सोनपुर के बड़े भूभाग पर पोलो ग्राउंड बनाया और घुड़दौड़ के लिए मैदान तय किया. अंगरेज अफसरों के शिविर भी लगने लगे. धीरे-धीरे यह मेला सोनपुर क्षेत्र में ही केंद्रीत हो गया. वर्तमान में कार्तिक पूर्णिमा स्नान के लिए तीर्थ यार्त्रियों की सर्वाधिक भीड़ हाजीपुर के कौनहारा घाट और उसके आसपास के घाटों पर उमड़ती है और तीर्थ यात्री पूर्णिमा स्नान के बाद सोनपुर के हरिहरनाथ मंदिर में जल अर्पण करते हैं.

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