हाजीपुर : नशा खिलानेवाले गिरोह के सदस्य कहीं भी आपको शिकार बना सकते हैं. इसलिए अपरिचित लोगों से संबंध बढ़ाना खतरनाक हो सकता है. पिछले दिनों नगर के हथसारगंज मुहल्ला निवासी प्रवेश महतो का 28 वर्षीय पुत्र सुनील महतो, जो ठेला चला कर अपना एवं अपने परिवार का भरण-पोषण करता है,
को शनिवार को बेहोशी की हालत में सदर अस्पताल में भरती कराया गया. उसे शहर के युसुफपुर मुहल्ला के लोगों ने सड़क के किनारे बेहोश पड़ा देख अस्पताल में भरती कराया, जहां होश में आने पर बताया कि शहर के पासवान चौक पर वह चाय पीने के लिए रुका, जहां पहले से तीन लोग बैठे थे. उनलोगों ने बात-बात में परिचय होने के बाद चाय पीने के लिए दी, जिसे पीने के बाद बेहोश हो गया. जब होश आया तब देखा कि मोबाइल, 500 रुपया एवं ठेला गायब है.
कहां बनाते हैं शिकार: अमूमन गिरोह के सदस्य रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, अस्पताल आदि के समीप लोगों को अपना शिकार बनाते हैं और आसानी से बच निकलते हैं. इसके अलावा ये बस, ट्रेन आदि में सफर करते हुए भी अपने शिकार की तलाश करते हैं.
कैसे बनाते हैं शिकार: गिरोह के सदस्य सबसे पहले अपने शिकार का चयन कर उनसे परिचय बढ़ाते हैं और परिचय होने पर शिकार को कोई पेय पदार्थ देते हैं, जिसमें नशा मिला होता है. नशा पीने के लगभग आधा घंटा के बाद शिकार को नशा हाे जाता है
और वह बेहोश हो जाता है. बेहोश होते ही गिरोह के सदस्य शिकार का सारा सामान लूट कर फरार हो जाते हैं.
त्योहारों के मौसम में बढ़ जाती है गिरोह की सक्रियता : वैसे तो सालों भर गिरोह का व्यवसाय चलता रहता है,
लेकिन त्योहारों के मौसम में इनकी सक्रियता बढ़ जाती है, क्योंकि इस समय बड़ी संख्या में लोग प्रदेशों से कमा कर अपने गांव लौटते हैं. बहुत दिन पर अपने गांव लौटने वाले लोग अपने परिचित को पाकर उससे तुरंत घुल-मिल जाते हैं. गिरोह के सदस्य बातचीत के क्रम में पहले उनसे परिचय लेते हैं तब अपने आपको उसका करीबी बताकर संबंध बढ़ाते हैं और फिर शिकार बनाते हैं.
प्रशासनिक सक्रियता भी होती है बेअसर : चूकि गिरोह के सदस्य पहले अपने शिकार से निकटता बढ़ाते हैं और फिर उन्हें शिकार बनाते हैं, इसलिए मौके पर तैनात पुलिसकर्मी भी धोखा खा जाते हैं और गिरोह के सदस्यों की शिनाख्त नहीं हो पाती है. शिकार को तब पता चलता है जब वह पूरी तरह लुट चुका होता है.