वैशाली : वैशाली महोत्सव के अवसर पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में कलाकारों ने ऐसा समां बांधा कि लोग झूम उठे. तबले की थाप पायलों की झंकार से वैशाली गूंज उठी. महोत्सव के पहले डीजी ट्रेनिंग आलोक राज ने गोपाल सिंह नेपाली के निर्गुण शैली में दादरा ताल जनम-जनम मैंने भी ओढ़ी तेरी श्याम चदरिया… की प्रस्तुति दी तो पूरा दर्शक दीर्घा झूम उठा.
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माता जिनको याद करे, वो किस्मत वाले होते हैं…
वैशाली : वैशाली महोत्सव के अवसर पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में कलाकारों ने ऐसा समां बांधा कि लोग झूम उठे. तबले की थाप पायलों की झंकार से वैशाली गूंज उठी. महोत्सव के पहले डीजी ट्रेनिंग आलोक राज ने गोपाल सिंह नेपाली के निर्गुण शैली में दादरा ताल जनम-जनम मैंने भी ओढ़ी तेरी श्याम चदरिया… की […]
देर रात तक मंच से कलाकारों की प्रस्तुति पर दर्शक तालियां बजाते रहे. महोत्सव के अंतिम दिन गुरुवार की शाम संस्कृति कार्यक्रम का आगाज विनोद कुमार उर्फ विनोबा जी के भजन गायक से प्रारंभ हुआ. माता जिनको याद करे, वो किस्मत वाले होते है… पर दर्शक भक्तिरस में डूबते दिखे.
इसके बाद शोमलता सुष्मा की भगवान महावीर स्वामी के जीवन पर आधारित कविता पाठ पुण्य भूमि वैशाली है यह कुंड ग्राम की धरती पर आया हरने धरती का भार, फिर राधा कृष्ण की रासलीला पर आधारित फोक नृत्य की प्रस्तुति पर दर्शक झूमने लगे.
वहीं रानी सिंह की प्रस्तुति अंगूरी में डसले बिया नागिनिया रे हे सखी दियरा जला द, बहे के पूर्वा रामा बह गइले शीतला बयार की प्रस्तुति की खूब सराहना की गयी. अमृता दीक्षित की प्रस्तुति दमादम मस्त कलंदर, अली दा पहला नंबर की प्रस्तुति ने दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया. गायक अभिषेक पाठक, उर्वशी सिन्हा, नैतिक कुमार, गौतम कुमार की प्रस्तुति को भी लोगों ने काफी सराहा.
फीकीं रह गयी इस बार वैशाली महोत्सव की चमक : आदर्श आचार संहिता की वजह से इस बार वैशाली महोत्सव के आयोजन की चमक फींकी पड़ गयी. तीन दिनों तक आयोजित होने वाले यह महोत्सव इस बार सिर्फ दो दिनों तक ही चला.
महोत्सव स्थल पर लगने वाली विभिन्न सरकारी व गैर सरकारी प्रदर्शनियां व स्टॉल भी इस बार नहीं लगा. आचार संहिता की वजह से इस बार वैशाली महोत्सव की प्रशासनिक स्तर पर सिर्फ रस्म अदायगी की गयी. मालूम हो कि वर्ष 1945 में तत्कालीन आइसीएस जगदीश चंद्र माथुर ने महोत्सव की नींव रखी थी.
शुरुआत में यह महोत्सव काफी भव्य तरीके से मनाया गया लेकिन हाल के दो-ढाई दशकों से महोत्सव की चमकी धीरे-धीरे फींकी पड़ने लगी है. स्थानीय विवेक कुमार निक्कू, राजीव कुमार, विक्की कुमार, राजेश राय, मंटुन सिंह, आदि का कहना है कि अब महोत्सव की बैठक के नाम पर केवल खानापूर्ति की जा रही है.
सभी ने वैशाली महोत्सव की खोयी हुई गरिमा को पुनर्स्थापित करने की मांग की. इधर महोत्सव के दौरान अपनी दुकान लगाने वाले दुकानदार भी इस बार पर्यटकों की भीड़ नहीं होने के कारण काफी निराश दिखे. इस बार दुकानदारों को प्रशासनिक स्तर पर मिलने वाली बिजली, पानी आदि की सुविधा भी नहीं मिल सकी.
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