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कदम-कदम पर संघर्ष कर मुकाम हासिल कर रहीं महिलाएं

हाजीपुर: कभी घर की दहलीज तक सिमटी रहने वाली महिलाएं आज तमाम वर्जनाओं को तोड़कर हर क्षेत्र में अपनी सफलता का परचम लहरा रही हैं. महिलाओं के बुलंद हौसले व उनके जज्बे के आगे सदियों से चली आ रही रूढ़िवादी परंपराएं दम तोड़ती दिख रही हैं. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व संध्या पर प्रभात खबर […]

हाजीपुर: कभी घर की दहलीज तक सिमटी रहने वाली महिलाएं आज तमाम वर्जनाओं को तोड़कर हर क्षेत्र में अपनी सफलता का परचम लहरा रही हैं. महिलाओं के बुलंद हौसले व उनके जज्बे के आगे सदियों से चली आ रही रूढ़िवादी परंपराएं दम तोड़ती दिख रही हैं.
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व संध्या पर प्रभात खबर कार्यालय में शहर की प्रबुद्ध वर्ग की महिलाओं व छात्राओं की गोष्ठी आयोजित की गयी. गोष्ठी में महिलाओं ने बड़ी ही बेबाकी से न सिर्फ अपनी राय रखी बल्कि आधुनिकता की चादर ओढ़े समाज में उनके समक्ष किस तरह की चुनौतियां है और वे इससे कैसे निबट रही हैं, इस पर भी अपना पक्ष जोरदार ढंग से रखा.
गोष्ठी में महिलाओं ने संसद में दशकों से अटके 33 फीसदी आरक्षण पर भी टिप्पणी की. साथ ही मशहूर फिल्मी गीत कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना… गुनगुना कर इस बात की ओर स्पष्ट इशारा किया कि उनकी तरक्की के रास्ते में कई लोग छींटाकशी करेंगे, तरह-तरह की बातें करेंगे लेकिन इससे घबराना नहीं है.
बेटियों और महिलाओं के प्रति लांछन लगाने के बजाय उनका बढ़ाया हौसला
कामकाजी महिलाओं के प्रति अपना नजरिया बदलें, आचरण पर सवाल न उठाएं
महिलाओं को घर से बाहर कदम रखते ही अपने दायरे में खुद को रखना होगा
समाज तेजी से बदल रहा है, महिलाएं भी अब गलत कार्यों का खुल कर विरोध करें
अगर कोई परिवार दहेज मांग रहा है तो उनका सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए
घर में महिलाओं को सम्मान मिले, बहू और बेटियों में अंतर खत्म होना चाहिए
शिक्षा के क्षेत्र में मौका िमले समाज में मुकाम हासिल करेंगी
लगातार करते रहना होगा संघर्ष
गोष्ठी में परिचर्चा के दौरान यह बात भी रखी गयी कि भले ही हमारा समाज पुरुष प्रधान है लेकिन महिलाओं ने अपनी काबिलियत की बदौलत हर युग में एक खास पहचान बनायी है. बात चाहे झांसी की रानी की हो या फिर कल्पना चावला व किरण बेदी की. सभी ने अपने दम पर अपनी विशेष पहचान बनायी थी जो आज भी समाज को प्रेरणा देती हैं.
सभी ने एक स्वर में कहा कि उनकी लड़ाई न तो पुरुषों से है और उनसे आगे निकलने की होड़ है बल्कि वे तो पुरुषों के सहयोग से समाज में अपनी पहचान स्थापित करने के लिए संघर्ष कर रही हैं. देश के लिए कुछ करने के लिए आगे आना होगा.
घर से करनी होगी बदलाव की शुरुआत
बेटा-बेटी में भेदभाव, भ्रूण हत्या, लैंगिक अनुपात आदि मुद्दों पर गोष्ठी में महिलाओं ने चर्चा करते हुए कहा कि इसके लिए हमें अपने घर से पहल करनी होगी. बेटियों को बेटे के समान अवसर देना होगा. हालांकि अब समय काफी बदला है.
लोगों की सोच सकारात्मक हुई है. बेटियों को लोग बेटे के समान दर्जा दे रहे हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में इसमें और सुधार लाने की जरूरत है. भ्रूण हत्या व बेटा-बेटी में भेदभाव भी ज्यादा है.
अभी भी कई क्षेत्रों में अभिभावकों को जागरूक करने की जरूरत है. ताकि वे अपनी बेटियों को आगे बढ़ने में मदद कर सके. सभी ने इसका मूल कारण शिक्षा का अभाव बताया.
अभिभावकों को गंभीर होना होगा
समाज में आज भी बेटा-बेटी के बीच भेदभाव वाली सोच है. बेटियों को भी बेटे के समान अवसर मिलना चाहिए. बेटियों को उच्च शिक्षा दिलाने के प्रति अभिभावकों को गंभीर होना होगा. हालांकि आज के दौर में काफी बदलाव आया है लेकिन भ्रूण हत्या नहीं रुक रही है.
फिजा इमाम, छात्रा
खुद के घर से पहल करने की जरूरत
समाज में इस तरह की सोच विकसित करने की जरूरत है कि लोग अपनी बहू-बेटियों की तरह दूसरी की बहू-बेटियों को भी सम्मान दें. इसके लिए खुद के घर से पहल करने की जरूरत है. रूढ़िवादी मानसिकता की जगह समाज में सकारात्मक सोच लानी होगी.
फिजा परवीन, छात्रा
परिवार के सहयोग से कामयाबी
आज हम रूढ़िवादी विचार से काफी आगे निकल चुके हैं. परिवार के सहयोग से महिलाएं अपनी पहचान स्थापित कर रही हैं. सरकार भी महिलाओं के विकास व उन्हें सशक्त बनाने के लिए कई योजनाएं चला रही हैं. आने वाले समय में महिलाएं और सशक्त बनेंगी.
रमा निषाद
विकास की ओर बढ़ रही
सती प्रथा से लड़ते-लड़ते आज हम उस पर विजय हासिल कर विकास की ओर बढ़ रहे हैं. महिलाओं के विकास में महिलाएं ही बाधक हैं. उन्हें अपनी सोच बदलने की जरूरत है. आधी आबाद की खुद की पहचान स्थापित हो, इसके लिए पुरुषों को आगे आना होगा.
संगीता कुमारी

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