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सुपौल में है चमगादड़ों का गांव, ग्रामीणों का बन चुका है भावनात्मक नाता, करते हैं रक्षा

ग्रामीण नवीन कुमार सिंह ने बताया कि इस बगीचे से चमगादड़ों के समूह का सौ साल से भी अधिक समय से नाता है. उन्होंने बताया कि शाम ढलते ही सभी चमगादड़ अपने निवाले की फिक्र में खुले आसमान में विचरण करते दूर-दूर तक के सफर पर निकल जाते हैं.

सुपौल जिले के अनुमंडल मुख्यालय त्रिवेणीगंज से करीब सात किलोमीटर उत्तर-पूरब दिशा में लहरनिया गांव अवस्थित है, जहां आम का बगीचा चमगादड़ों का अभयारण्य बना है. ग्रामीणों की मानें, तो हजारों की संख्या में बगीचे में अभयारण्य के रूप में निवास कर रहे चमगादड़ का इस बगीचे से करीब सौ साल से पुराना नाता बना है.

दिन में भी टहनियों से लटके रहते हैं चमगादड़

चमगादड़ यहां दिन के उजाले में भी बगीचे के सभी आम के वृक्ष के टहनियों पर सैकड़ों की संख्या में दिन ढलने के इंतजार में पैरों के सहारे उलटे लटके रहते हैं. दिन ढलने के साथ ही बगीचा और बगीचे के आसपास सभी चमगादड़ अपने आवाज का कुतूहल मचाते आसमान में उड़कर अपना करतब दिखाना शुरू कर देते हैं. हजारों चमगादड़ के शोर से वातावरण गुंजायमान होता रहता है.

क्या कहते हैं ग्रामीण

ग्रामीण नवीन कुमार सिंह ने बताया कि इस बगीचे से चमगादड़ों के समूह का सौ साल से भी अधिक समय से नाता है. उन्होंने बताया कि शाम ढलते ही सभी चमगादड़ अपने निवाले की फिक्र में खुले आसमान में विचरण करते दूर-दूर तक के सफर पर निकल जाते हैं. फिर विचरण करने के बाद वापस अपने आश्रय स्थल में चले जाते हैं. उन्होंने बताया कि आम के फल देने के समय में बगीचे के आम फलों को नुकसान पहुंचाने के बावजूद भी वे लोग चमगादड़ों की सुरक्षा में जुटे रहते हैं. ताकि कोई भी शिकारी चोरी छुपे उन्हें नहीं मार सके.

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अभयारण्य के रूप में विकसित कर बनाया जा सकता है पर्यटन स्थल

मालूम हो कि सैकड़ों चमगादड़ के इस अभ्यारण्य को लेकर उस चौक का पुकारू नाम बादुर चौक के नाम से जाना जाता है. यदि सरकार की ओर से विभागीय पहल की जाय तो चमगादड़ के संरक्षण को लेकर इस जगह को चमगादड़ के अभ्यारण्य के रूप में इसे विकसित कर एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है.

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