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लोगों को हमेशा देने वाला बनना चाहिए, मांगने वाला नहीं : गुरुननंदन जी महाराज

मनुष्य को स्वस्थ व निरोग रहने के लिए संतुलित खानपान व शाकाहारी होना आवश्यक है

– श्रीमद्भागवत महापुराण कथा के छठे दिन बड़ी संख्या में पहंचे श्रद्धालु छातापुर. मुख्यालय स्थित महर्षि मेंही योगाश्रम के समीप आयोजित सप्त दिवसीय संतमत सत्संग (माध्यम श्रीमद्भागवत महापुराण कथा) के छठे दिन गुरुवार को सत्संग प्रेमी भारी संख्या में पहुंचे. सैकड़ों की संख्या में पहुंचे महिला व पुरुष भजन व ज्ञान की दरिया में गोता लगा रहे थे. हरिद्वार से पधारे मुख्य कथावाचक स्वामी गुरुननंदन जी महाराज ने कहा कि 84 लाख योनियों में भटकाव के बाद ये मानव रूपी शरीर लोगों को मिला है. इसे सार्थक बनाने के लिए अपने दैनिक कार्यों का निर्वहन करते हुए प्रभु भक्ति, स्तुति प्रार्थना, सत्संग प्रवचन में भी नित्य थोड़ा भी समय दें. मनुष्य को स्वस्थ व निरोग रहने के लिए संतुलित खानपान व शाकाहारी होना आवश्यक है. लोगों को हमेशा देने वाला बनना चाहिए न कि मांगने वाला. कोई देखें न देंखे आप सदकार्य करते रहिये. कार्यक्रम के दौरान न्यू मां शांति नर्सिंग होम के संचालक डॉ क्रांति गांधी एवं सुशीला मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल के संचालक डॉ बिपिन कुमार ने कथा वाचक स्वामीजी का माला व शॉल से सम्मान दिया. वहीं सुशील कर्ण ने अभिनंदन पत्र पढ़कर वंदन किया. मौके पर रूपनारायण बाबा, सीताराम बाबा, ऋषि बाबा, गोपाल गोपी झा, ललन भारद्वाज, निखिल झा के अलावे आयोजन कमेटी के बिंदेश्वरी भगत, अरविंद भगत, रमेश भगत, एन के सुशील, मुकेश कुमार, रमेश साह, रवि रौशन शक्ति, संजय कुमार भगत,वीरेंद्र साह, रामस्वरूप सिंह, उपेंद्र सिंह आदि मौजूद थे. मानव जीवन के उद्देश्य की पूर्ति संतों के संगत से ही संभव माया रूपी मकड़जाल से मुक्त होकर संतों के शरण में जाने से ही मानव का कल्याण होगा. संत के संगत को ही सत्संग कहा गया है. संतों की वाणी सुनने मात्र से मानव सद्मार्ग पर चलने हेतु अग्रसर हो जाते हैं. उन्होंने कहा कि सद्मार्ग पर चलने से ही मानव रूपी तन के उद्देश्यों की पूर्ति हो सकेगी. कहा कि आज लोग अध्यात्म से विमुख हो रहे हैं और यह मानव जीवन के लिए उचित नहीं है. भौतिक सुख के लिए भटक रहे लोग सतसंग में आने से कतराते हैं. संतों की संगति से दूर भागते हैं. ऐसे भटके हुए लोगों को परमात्मा कभी नहीं मिल सकते है और न ही उन्हें शांति की प्राप्ति हो सकेगी. कहा कि माता पिता का अनादर करने वाले, मांसाहारी, झूठ, चोरी, नशा, हत्या, व्यभिचार करने वाले मनुष्य संसार रूपी माया जाल में ही जकड़ कर रह जाएंगे. उन्होंने सतसंग में आए हुए लोगों को रामायण, भागवत गीता सहित विभिन्न वेद पुराणों में वर्णित उपदेश एवं श्लोकों को विस्तारपूर्वक समझाते हुए अध्यात्म की ओर लौटने की शिक्षा दी. उन्होंने कहा कि संतों ने जनकल्याण के लिए सतसंग की व्यवस्था की. जिसके तहत लोगों को सद्ज्ञान दिया जा रहा है. उन्होंने लोगों को दहेज और बाल विवाह, नशा, चोरी आदि पंच पापों से बचने की सलाहियत दी. कहा कि कालचक्र से बचना चाहते है तो संत का शरण लीजिए. संतों के संगत से ही सत्य का संग होगा. स्वामीजी ने यह भी बताया की बात-बात पर युद्ध या विवाद करना जरूरी नहीं है, जो कार्य शांति से हो जाए उसे प्रेम सद्भाव से ही होने दें. जीवन में भक्ति मार्ग पर चलने से ही 84 लाख योनियों के जीवन मरण चक्र से बाहर आ सकेंगे.

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Prabhat Khabar News Desk
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