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मिट रहा है गजना नदी का वजूद

अफसोस. नदी पर भू माफियाओं की लग गयी है नजर, बना रहे हैं मकान मानव समाज के विकास में नदी का अहम रोल है़ कहते हैं कि नदियां जीवन देती है और नदियों की धारा के समान जीवन का भी प्रवाह होता है. लिहाजा इन नदियों का अस्तित्व बनाये रखना बेहद जरूरी है़ तटबंध निर्माण […]

अफसोस. नदी पर भू माफियाओं की लग गयी है नजर, बना रहे हैं मकान

मानव समाज के विकास में नदी का अहम रोल है़ कहते हैं कि नदियां जीवन देती है और नदियों की धारा के समान जीवन का भी प्रवाह होता है. लिहाजा इन नदियों का अस्तित्व बनाये रखना बेहद जरूरी है़ तटबंध निर्माण के बाद कोसी की मुख्य धारा को दो बांधों के बीच समेट दिया गया.
सुपौल : पर्यावरण विदों की माने तो मानव समाज के विकास में नदी का अहम रोल है़ कहते हैं कि नदियां जीवन देती है और नदियों की धारा के समान जीवन का भी प्रवाह होता है. लिहाजा इन नदियों का अस्तित्व बनाये रखना बेहद जरूरी है़ छह दशक पूर्व तक जब कोसी तटबंध का निर्माण नहीं हुआ था, तो नेपाल से भारत में प्रवेश करने वाली कोसी नदी जिले में अपनी कई उप धाराओं व सहायक नदियों के रूप में स्वच्छंद बहती थी. प्राकृतिक रूप से दर्जनों उप धाराओं में जल के वितरण की वजह से कोसी का जलस्तर भी सामान्य रहता था.
इनमें सुरसर, गैंडा, धेमुरा, खैरदाहा, तिलावे, थलहा, परमाने, चिलौनी, तिलयुगा, गजना आदि कोसी की सहायक नदियां शामिल हैं. इनमें से गजना नदी का बहाव जिला मुख्यालय के उत्तरी व पश्चिमी हिस्से में सदियों से होता रहा है. यह दीगर बात है कि तटबंध निर्माण के बाद कोसी की मुख्य धारा को दो बांधों के बीच समेट दिया गया.
नतीजा है कि जहां एक ओर भारी जलस्राव की वजह से कोसी ने रौद्ररुप धारण कर लिया. वहीं दूसरी ओर कोसी की उप धाराएं समय के साथ जल विहीन होने लगी.
नदी की जमीन पर प्रोपर्टी डीलरों की है नजर : बढ़ती आबादी के बीच मौके की तलाश में बैठे जरूरत मंद व जमीन के दलालों ने सूख रही इन नदियों को अपना निशाना बनाना प्रारंभ कर दिया. इसका उदाहरण जिला मुख्यालय से सटे बहने वाली गजना नदी है.
नदी की जमीन पर जारी अतिक्रमण की वजह से गजना नदी का वजूद समय के साथ मिटता जा रहा है़ अब स्थिति यह है कि नदी के क्षेत्र में कई आलीशान घर व मकान का निर्माण हो रहा है़ हालांकि कुछ स्थानों पर गजना नदी का स्वरूप आज भी कायम है़, लेकिन विशेष कर स्थानीय सुपौल उच्च माध्यमिक विद्यालय के पश्चिम व उत्तरी भाग में अंधाधुंध हुए निर्माण के कारण नदी का अस्तित्व पूरी तरह संकट में दिख रहा है़
स्थिति यह है कि बढ़ती आबादी व आधुनिकी करण के दौर में समय रहते इन नदियों के प्रति समाज व सरकार संवेदनशील नहीं हुआ तो कोसी क्षेत्र की कई नदियां गजना की भांति धीरे-धीरे लुप्त होती जायेगी़
तत्कालीन डीएम ने किया था प्रयास : गजना नदी के अस्तित्व को बचाने एवं इसे शहर का रमणीक स्थल बनाने को लेकर पूर्व डीएम सुनील वर्थवाल के कार्यकाल में प्रयास किया गया था़ तत्कालीन डीएम श्री वर्थवाल ने मेला परिसर स्थित रेलवे पुल से लेकर बैरिया मंच रोड तक नदी के सौदर्यीकरण की योजना बनायी थी़ इसके तहत नदी के दोनों ओर पक्की सीढी व पक्के घाट के साथ ही नदी तट पर पार्क व झड़ने आदि बनाया जाना था़ ताकि ना सिर्फ नदी उपयोगी बनी रहे़ बल्कि करीब दो किलोमीटर की दूरी में बने पार्क व झील का स्थानीय नागरिक लाभ उठा सके़
गौरतलब है कि शहर में आम लोगों को शाम गुजारने के लिए कोई भी उपयुक्त स्थान मौजूद नहीं है़ लिहाजा तत्कालीन डीएम की महत्वाकांक्षी योजना की जानकारी से आम शहरियों में हर्ष का माहौल व्याप्त था, लेकिन दुर्भाग्य है कि डीएम के स्थानांतरण के बाद किसी ने भी उक्त परियोजना को पूर्ण करने के प्रति रुचि नहीं दिखायी. यही वजह है कि ऐतिहासिक गजना नदी का अस्तित्व समाप्त होने के कगार पर पहुंच
चुका है़
कोसी की सहायक नदी रही है गजना
गौरतलब है कि 1959 से 1962 के बीच कोसी के पूर्वी व पश्चिमी तटबंध निर्माण के पूर्व इलाके में कोसी नदी का स्वच्छंद विचरण होता था़ इस क्रम में मचलती कोसी जब उफान पर होती थी तो प्रमुख नदी से कई छारण धाराओं का निर्माण हुआ था़ जिनमें गजना के साथ ही धेमरा, सुरसर, तिलावे, थलहा, पट्टी आदि नदियां शामिल हैं. ये छारण धाराएं भी सालों भर पानी का निस्सरण करती थी़
मानसून काल में इन छारण धाराओं का रूप भी कमोबेश मुख्य धारा की तरह ही होता था़, लेकिन कोसी नदी को तटबंधों के बीच नियंत्रित कर दिये जाने के बाद गजना जैसी अन्य उप नदियों का स्वरूप भी सिमटता गया, जबकि ये छारण नदियां भूमि के अंदर जल स्तर बनाये रखने व सिंचाई आदि कार्य हेतु उपयोगी साबित होती थी़

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