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खतरे में है ऐतिहासिक विनोबा मैदान का अस्तत्वि

खतरे में है ऐतिहासिक विनोबा मैदान का अस्तित्व फोटो-03कैप्सन- बेकार साबित हो रहा विनोबा मैदान. प्रतिनिधि, पिपरा एक ओर जहां सूबे के सभी प्रखंडों में स्टेडियम एवं खेल मैदान के निर्माण की बात की जा रही है, वहीं 1956 में स्थापित विनोबा मैदान जनप्रतिनिधि एवं प्रशासनिक अधिकारियों की उपेक्षा का शिकार हो कर अपने अस्तित्व […]

खतरे में है ऐतिहासिक विनोबा मैदान का अस्तित्व फोटो-03कैप्सन- बेकार साबित हो रहा विनोबा मैदान. प्रतिनिधि, पिपरा एक ओर जहां सूबे के सभी प्रखंडों में स्टेडियम एवं खेल मैदान के निर्माण की बात की जा रही है, वहीं 1956 में स्थापित विनोबा मैदान जनप्रतिनिधि एवं प्रशासनिक अधिकारियों की उपेक्षा का शिकार हो कर अपने अस्तित्व को खो रहा है. इस ऐतिहासिक मैदान की दुर्दशा को लेकर स्थानीय लोगों में आक्रोश है. वर्ष 1920 में जमींदार भगवती प्रसाद सिंह द्वारा 65 खाता के खतियानी रैयत चंद्र साह वगैरह से जमीन विक्रय पत्र केवाला के माध्यम से लिया गया. इसके बाद इस पर हाट लगना आरंभ हुआ, जिसकी तिथि सप्ताह में दो दिन मंगलवार एवं शुक्रवार को निर्धारित की गयी. वहीं स्थानीय युवकों द्वारा इस मैदान का उपयोग खेल के लिए भी किया जाने लगा. इस बात से नाराज जमींदार द्वारा स्थानीय युवकों एवं ग्रामीणों के विरुद्ध अनुमंडल पदाधिकारी के न्यायालय में मामला दर्ज कराया गया. इसके पीछे उनका तर्क था कि इस मैदान में खेल से हाट प्रभावित होता है. मामले की सुनवाई के बाद अनुमंडल पदाधिकारी ने अपने आदेश में कहा कि मंगलवार एवं शुक्रवार को छोड़ सप्ताह के शेष दिन यहां खेल का आयोजन किया जा सकता है. 1956 के अंत में आचार्य विनोबा भावे इसी हाट पर अपना प्रथम भाषण दिये और उसी दिन से इस हाट का नाम विनोबा मैदान रखा गया. इसलिए इस हाट को सार्वजनिक संपत्ति माना जाता है. स्थानीय लोगों ने बताया कि इसे सार्वजनिक संपत्ति इस लिए माना जाता है कि रिटर्न दाखिल करने के बाद जमींदार ने अपने पास रखे गये भूस्वामित्व का ब्योरा सरकार को नहीं दिया. कहते हैं स्थानीय लोग खिलाड़ी देवेंद्र प्रसाद गुप्ता, योगेंद्र मंडल, शब्बीर आलम, अंगद चौधरी आदि ने बताया कि अब तक किसी भी जनप्रतिनिधि इस ओर ध्यान नहीं दिया. उन्होंने बताया कि इस मैदान में मंच भी स्थापित है, जिस कारण विभिन्न कार्यक्रमों के लिए इस मैदान का उपयोग करते हैं.

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