सुपौल : दशहरा पर इस बार चुनावी रंग का असर स्पष्ट तौर पर दिखा. सही मायनों में कहा जाये तो लोकतंत्र के महापर्व ने इस बार आस्था के महापर्व के रंग को फीका कर दिया. हालांकि लोगों की श्रद्धा व भक्ति में कोई कमी नहीं थी, लेकिन विधानसभा चुनाव को लेकर जारी आदर्श आचार संहिता ने दशहरा के जश्न को काफी हद तक प्रभावित किया.
चुनावी नियम कायदे के पेच के कारण बड़े सांस्कृतिक कार्यक्रम जैसे आयोजन को लेकर पूजा समितियों को काफी मशक्कत करनी पड़ी. अधिकांश कार्यक्रम को स्थगित भी कर देना पड़ा. हर वर्ष विजयादशमी के मौके पर निकलने वाले विजय जुलूस पर भी इसका असर दिखा. जुलूस इस वर्ष भी निकला, लेकिन एकदम सादगी भरे माहौल में.
जुलूस में न तो घोड़ा – गाड़ी का काफिला था और न ही पटाखे व आतिशबाजियों से फैलने वाला उल्लास. गुरुवार की देर शाम बड़ी दुर्गा स्थान, गांधी मैदान व माल गोदाम स्थित मंदिरों से मां दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन किया गया. विसर्जन जुलूस पर भी आचार संहिता का प्रभाव देखा गया. इस जुलूस में भी न तो वाहनों का काफिला था और न ही पटाखे का शोरगुल. इन सब कारणों से कार्यकर्ताओं में जोशो-खरोस की कमी खल रही थी.
गांधी मैदान में रावण वध के बाद हर वर्ष किसी जन प्रतिनिधि व उच्चाधिकारी द्वारा श्रीराम का राज्याभिषेक काफी धूमधाम से किया जाता था, जबकि इस वर्ष चुनाव के कारण जहां जनप्रतिनिधि अनुपस्थित रहे, वहीं सरकारी आलाधिकारी भी कार्यक्रम से कटे-कटे से दिखे. हालांकि लोगों ने श्रद्धा व भक्ति भाव के साथ पूजा-अर्चना व परंपरा के निवर्हन में कोई कटौती नहीं की.