नवरात्र : कलश स्थापना के साथ पूजा शुरू फोटो – 1कैप्सन – कलश स्थापना का दृश्यप्रतिनिधि, सुपौलहिंदू धर्म का प्राचीन व पवित्र त्योहार दशहरा पूजा मंगलवार से प्रारंभ हो गया. इस त्योहार को कोसी क्षेत्र में आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि में कलश स्थापना कर मनाये जाने की परंपरा है. इस अवसर पर मंदिरों में प्रतिमा के सामने कलश स्थापना व जयंती के लिए जौ की बुआई की गयी. इस दौरान विद्वानों द्वारा किये गये मंत्रोच्चार से आसपास का वातावरण भक्तिमय हो उठा. कलश स्थापना के समय मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं की काफी भीड़ जुटी, जहां भक्त जनों ने मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपूत्री की आराधना कर जय कारे लगाये.पुराणों से मिला है इस त्योहार का प्रमाण नवरात्र त्योहार के आरंभिक जानकारी वामन, वाराह व स्कंद पुराण में उल्लिखित है. साथ ही मार्कण्डेय पुराण में इसका वृहत स्वरूप देखने को मिलता है. समूचे देश में हर्षोल्लास के साथ दुर्गा पूजा मनाया जाता रहा है. वहीं देश के पूर्वी भाग में इसे दंभासुर के पुत्र महिषासुर पर मां दुर्गा की विजय का स्मारक माना जाता है, जबकि अन्य क्षेत्रों में रावण पर राम का विजय का स्मारक माना जाता है. पूर्वांचल के परंपरा का प्रभाव कोसी क्षेत्र में विजया दशमी के त्योहार पर पूर्वांचलीय परंपरा का प्रभाव अधिक है. इसका एक बड़ा प्रमाण है कि आज भी कई स्थानों पर मां दुर्गा के प्रतिमाओं का निर्माण बंगाली कुशल कारीगरों द्वारा कराया जा रहा है. वहीं देश के मध्य भाग में दशहरा का त्योहार राक्षस राज रावण पर दशरथ नंदन राम की विजय का याद दिलाता है. इसी का परिणाम है कि सूबे में शारदीय नवरात्र के मौके पर राम लीला का आयोजन होता आ रहा है. पुतला दहन की रही है परंपरा त्योहार के मौके पर आयोजन समिति द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन होता रहा है. विजया दशमी के मौके पर कई दशकों से स्थानीय गांधी मैदान में रावण बद्ध का आयोजन होता रहा है. राक्षस राज रावण, कुंभकर्ण व मेघनाद के दानवाकार पुतले बनाये जाते हैं. उक्त पुतले में कुछ प्रज्वलनशील पदार्थ लगाया जाता है. साथ ही राम व लक्ष्मण का स्वरूप बनाये श्रद्धालुओं द्वारा धनुष बाण चलाया जाता है. बाण के वेधते ही विस्फोटक ध्वनि के साथ पुतला जल उठता है. इसे देखने को लेकर शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के हजारों दर्शक सहित जन प्रतिनिधि व प्रशासनिक महकमा उपस्थित होते हैं. इस तरह दशहरे के स्वरूप में भले ही थोड़ा परिवर्तन हुआ है. लेकिन मूल भावना असत्य और अन्याय पर सत्य एवं न्याय की विजय अभी तक अक्षुण्ण है. यही दशहरा त्योहार का संकेत है.जयंती के रंग से होती है भविष्यवाणीनवरात्र के मौके पर जो श्रद्धालु व्रत व दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं वे भक्त जयंती को लेकर जौ की बुआई करते हैं. जौ के प्रस्फुटित होने के समय जयंती के रंग पर विद्वजन वर्ष भर की भविष्यवाणी करते हैं. साथ ही साधना की सफलता की जानकारी भी देते हैं. सदर प्रखंड के कर्णपुर निवासी पंडित रंजन झा जौ के अंकुर काले रंग का हो तो उस वर्ष निर्धनता बढ़ने की प्रबल संभावना रहती है. प्रस्फुटित जौ यदि धूंए के रंग में दिखाई पड़े तो परिवार में कलह की स्थिति उत्पन्न होगी. जौ का प्रस्फुटित ना होना उस वर्ष जनहानि, कार्यों में बाधा तथा आकस्मिक मृत्यु होने की प्रवलता रहेगी. नीले रंग का अंकुर अकाल की ओर इंगित करता है. रक्त वर्ण के अंकुर आने से रोग – व्याधि व शत्रु भय तथा हरा रंग धन- धान्य का सूचक है. वहीं आधे हरे व आधे पीले अंकुर वाले जयंती पहले कार्य बनने तथा फिर हानि की ओर संकेत करता है. बताया कि सफेद रंग अत्यंत शुभ कारी माना जाता है. साथ ही साधक की की अभीष्ट की ओर संकेत करता है. सिद्धि विजया दशमी के दिन जयंती लेकर मां दुर्गा को चढ़ाया जाता है. जयंती को शस्य का प्रतीक माना गया है. आगमन अश्व पर व गमन नरवाहन पर पंडित श्री झा ने बताया कि इस बार मां दुर्गा का आगमन अश्व पर है, जबकि गमन नर वाहन पर हो रहा है. पंडित श्री झा ने बताया कि नर वाहन पर माता के प्रस्थान होने से जन मानस के सुख व सौभाग्य में वद्धि होगी. आठ वर्ष बाद ऐसा शुभ तिथि का योग बना है. वर्ष 2007 के आश्विन शुक्ल प्रतिपदा में ऐसी ही तिथि का योग बना था. नवरात्र में शक्ति के तीन स्वरूपों की उपासना की जाती है. इस कारण मंदिरों में महिषासुर मर्दिनी दुर्गा यानी महाकाली, महालक्ष्मी तथा महा सरस्वती की प्रतिमा स्थापित की जाती है. साथ ही सिद्धि दायक श्रीगणेश तथा देवों के सेनापति कार्तिकेय के वाहन सहित प्रतिष्ठित किये जाते हैं.
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नवरात्र : कलश स्थापना के साथ पूजा शुरू
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