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सुपौल : महागठबंधन व एनडीए के बीच होगी कांटे की टक्कर, दोनों गठबंधन विकास को मान रहे मुख्य मुद्दा

अमरेंद्र कुमार अमर वोटों का विखंडन बिगाड़ सकता है क्षेत्र का राजनीतिक समीकरण सुपौल : सुपौल लोकसभा क्षेत्र में चुनावी सरगर्मी अब परवान चढ़ने लगी है. नाम वापसी के बाद मैदान में कुल 20 उम्मीदवार रह गये हैं. जिनमें कांग्रेस व जदयू के अलावा कई क्षेत्रीय पार्टियां एवं निर्दलीय उम्मीदवार शामिल हैं. क्षेत्र में तृतीय […]

अमरेंद्र कुमार अमर

वोटों का विखंडन बिगाड़ सकता है क्षेत्र का राजनीतिक समीकरण

सुपौल : सुपौल लोकसभा क्षेत्र में चुनावी सरगर्मी अब परवान चढ़ने लगी है. नाम वापसी के बाद मैदान में कुल 20 उम्मीदवार रह गये हैं. जिनमें कांग्रेस व जदयू के अलावा कई क्षेत्रीय पार्टियां एवं निर्दलीय उम्मीदवार शामिल हैं. क्षेत्र में तृतीय चरण के तहत 23 अप्रैल को मतदान होना है.

राजनीतिक प्रेक्षकों की मानें तो इस महत्वपूर्ण सीट पर इस बार मुख्य मुकाबला एनडीए व महागठबंधन के बीच होगा. यह अलग बात है कि चुनाव से पूर्व ही गठबंधन में उजागर हुए अंतर्कलह की वजह से कई निर्दलीय व क्षेत्रीय पार्टी के उम्मीदवार भी चुनावी समीकरण को प्रभावित कर सकते हैं. निर्दलीय प्रत्याशी पारंपरिक वोटों में सेंधमारी कर सकते हैं. गौरतलब है कि महागठबंधन खेमे से राजद के पूर्व प्रदेश महासचिव दिनेश प्रसाद यादव भी इस बार बागी तेवर के साथ चुनावी मैदान में हैं. वहीं राजद की ओर से वर्तमान कांग्रेस सांसद के नाम पर कई बार विरोध जताया गया है.

एनडीए खेमे से एक पूर्व जदयू सांसद जो अभी भाजपा में हैं, उनके द्वारा टिकट पाने की रस्सा-कस्सी की चर्चा लोगों में आज भी बरकरार है. पार्टी व गठबंधन में उपजी अंतर्कलह इस चुनाव के परिणाम को प्रभावित कर सकता है, वहीं बड़ी संख्या में मौजूद प्रत्याशियों के बीच वोटों का बंटवारा भी किसी भी प्रमुख उम्मीदवार के लिए घातक सिद्ध हो सकता है.

विकास का नारा जातीय गोलबंदी में बदल जाता है : त्रिवेणीगंज के अशोक यादव जो अपने कार्यालय के काम से सुपौल मुख्यालय आये हुए थे बताते हैं कि हमलोग तो विकास को ही इस बार चुनाव का मुख्य मुद्दा मानकर चल रहे हैं. वोट किसको करेंगे, वे स्पष्ट कुछ नहीं बोलते हैं. पिपरा के समीर कामैत कहते हैं कि कई ऐसे विकास के मुद्दे हैं, जो होना था, नहीं हुआ. इस बार सुपौल के सजग वोटर जाति के नाम पर वोट नहीं करेंगे.

अपने बच्चे को लेकर बेहतर इलाज के लिए दरभंगा जा रहे कोसी तटबंध के गांव के रामावतार ठेठ मैथिली में कहते हैं कि हमरा सभके के पूछै हइ. सभ बेरी हमही सभ ठकाय छियै. एमरीदा वोट ओकरहे देबै, जे लगीच में बड़का हस्पताल खोलैतै. इन जैसे अन्य वोटरों से बात करने से यह माना जा सकता है कि इस चुनावी समर में मुख्य दोनों गठबंधनों का नारा विकास का है और वोटर भी कुछ हद तक इसे ही मुख्य मुद्दा मान रहे हैं.

इस बार सबसे ज्यादा प्रत्याशी हैं मैदान में

सुपौल लोकसभा क्षेत्र वर्ष 2009 में वजूद में आया था. गौर करें तो पिछले चुनावों की तुलना में इस बार सबसे अधिक प्रत्याशी मैदान में हैं. कांग्रेस की एनडीए प्रत्याशी रंजीत रंजन यहां की सीटिंग सांसद हैं.

उन्होंने वर्ष 2014 में जदयू के दिलेश्वर कामैत को पराजित किया था. भाजपा के कामेश्वर चौपाल तब तीसरे नंबर पर थे, लेकिन इस चुनाव में हम, रालोसपा व वीआइपी के महागठबंधन में शामिल हो जाने से बदली परिस्थितियों को नकारा नहीं जा सकता. जदयू प्रत्याशी दिलेश्वर कामैत पूर्व में जदयू के विधायक रह चुके हैं. एनडीए समर्थक गत चुनाव में जदयू व भाजपा को मिले वोट को जोड़ कर अपना पक्ष मजबूत मान रहे हैं.

एनडीए को अपने कैडर वोट के साथ ही पिछड़े, अतिपिछड़े व व्यवसायी वर्ग के मतदाताओं पर भरोसा है. एनडीए समर्थक नरेंद्र मोदी व नीतीश कुमार के द्वारा किये गये विकास कार्यों को भी अपनी मजबूती का कारण बता रहे हैं. महागठबंधन को विश्वास है कि उन्हें काम के आधार पर सभी का वोट मिलेगा.

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