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तीन महीने में डेढ़ फुट िखसका जल स्तर

सीवान : वैश्विक स्तर पर गहराते जल संकट के बीच जिले के भू-जल स्तर में तीन महीने में तकरीबन डेढ़ फुट की गिरावट आयी है. इस तेजी से गिरते जल स्तर ने जिले वासियों के बीच चिंता की लकीरें खींच दी है. विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस वर्ष मार्च महीने में जिले का […]

सीवान : वैश्विक स्तर पर गहराते जल संकट के बीच जिले के भू-जल स्तर में तीन महीने में तकरीबन डेढ़ फुट की गिरावट आयी है. इस तेजी से गिरते जल स्तर ने जिले वासियों के बीच चिंता की लकीरें खींच दी है. विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस वर्ष मार्च महीने में जिले का औसत भू-जल स्तर 15.06 फुट था वह मई में बढ़कर 17.01 फुट हो गयी है. अप्रैल महीने में यह 16.10 फिट था. कई प्रखंडों के गांवों से चापाकल से पानी नहीं निकलने की भी सूचना प्राप्त हो रही है.

कई स्थानों पर जहां कुआं सुख गया है, वहीं चापाकल से भी पानी निकालने में लोगों को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है. विभाग की बातों पर गौर करें तो वर्ष 2016 में जहां जिले का औसत भू-जल स्तर 12 फिट था, वह अब बढ़कर 170.1 फुट हो गया है. इसके पीछे भौगोलिक स्थिति में हो रहे परिवर्तन के बीच बारिश का नहीं होना बताया जा रहा है, जो भू-जल स्तर सामान्य रखने में सहायक होता है. विश्व बैंक सहित आंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने वर्ल्ड वार के लिए पानी को उत्तरदायी माना है. हालांकि लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग की बातें भले ही कुछ देर के लिए राहत पहुंचाती हो, परंतु पानी के संदर्भ में भविष्य बहुत उज्ज्वल नहीं दिख रहा है.
विभाग की बातों पर गौर करें तो सीवान जिले को डी-केटेगरी में रखा गया है. ए-केटेगरी में उस जिले को शामिल किया गया है, जहां का भू-जल स्तर 40 से 50 फुट नीचे है. सीवान का भू-जल स्तर अभी 30 फुट के करीब है. 25 फुट से नीचे जल स्तर गिरने पर साधारण चापाकल से पानी निकालने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है. गर्मी के मौसम में यह स्थिति और भयावह हो जाती है.
रोकनी होनी पानी की बर्बादी
विश्व के कुछ देशों सहित भारत के कुछ हिस्से में भी जल संकट गहरा गया है. इससे निबटने के लिए लोगों को पानी की बर्बादी रोकने की जरूरत है. अभी भी लोग औसत से ज्यादा पानी खर्च करते हैं.
जल का संचय जरूरी
भू-जल स्तर बढ़ाने के लिए जल का संचय जरूरी है. बारिश के जल को संचय करने के लिए पोखरा व तालाब का जीर्णोद्धार के साथ साथ अच्छी बारिश भी होना जरूरी है. गत तीन चार वर्ष से सुखाड़ जैसी स्थिति उत्पन्न होने से हालात को और भयावह बना दिया है. सबसे अधिक पानी की बरबादी खेती में होता है. वैज्ञानिक विधि से सिंचाई करने सहित अन्य कामों को किया जाये तो पानी को बचाने में काफी सहूलियत होगी.
लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के कार्यपालक अभियंता इ. अनिल कुमार अखिलेश की माने तो जिले वासियों को अभी चिंतित होने की जरूरत नहीं है. हालांकि उन्होंने चेतावनी भरे लहजे में कहा कि हालात यहीं रहे तो आगामी कुछ वर्षों में लोगों को जल स्तर के संकट का सामना करना पड़ेगा.

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