सीवान : आपात स्थिति में राहत पहुंचाने के लिए तैयार रहने वाली जिले की एंबुलेंस सेवा खुद बेहाल है. हालात ये हैं कि पुराने एंबुलेंस खराब स्थिति में दौड़ रही हैं तो कुछ में पर्याप्त लाइफ सपोर्ट उपकरण तक नहीं हैं.
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बिना लाइफ सपोर्ट उपकरणों के दौड़ रहे हैं सरकारी एंबुलेंस, मरीज परेशान
सीवान : आपात स्थिति में राहत पहुंचाने के लिए तैयार रहने वाली जिले की एंबुलेंस सेवा खुद बेहाल है. हालात ये हैं कि पुराने एंबुलेंस खराब स्थिति में दौड़ रही हैं तो कुछ में पर्याप्त लाइफ सपोर्ट उपकरण तक नहीं हैं. ऐसे में गंभीर मरीजों की अस्पताल तक पहुंचने के दौरान जान का खतरा बना […]
ऐसे में गंभीर मरीजों की अस्पताल तक पहुंचने के दौरान जान का खतरा बना हुआ है. स्वास्थ्य विभाग ने मरीजों की सेवा के लिए कम दाम पर वातानुकूलित एंबुलेंस सेवा उपलब्ध कराया है. लेकिन सरकारी अस्पतालों के आधे से अधिक एंबुलेंसो के एसी खराब होने से मरीज को परेशानी होती है.
ऐसी बात नहीं है कि एसी खराब होने पर मरीजों से निर्धारित राशि से कम पैसे लिये जाते हो. विभाग ने इसकी राशि दस रुपये प्रति किलोमीटर निर्धारित किया है. गर्मी के दिनों में एंबुलेंसों के एसी खराब होने से मरीज को पीएमसीएच जाने में परेशानी होती है.
सबसे अधिक परेशानी बर्न केश के मरीजों को होती है. वहीं दूसरी तरफ पुराने एंबुलेंसों का उचित रख-रखाव नहीं होने से एंबुलेंसों की हालत काफी जर्जर हो गयी है. एंबुलेंसों का संचालन करने वाले एनजीओ को ही एंबुलेंसों का रख-रखाव करने की जबाब देही है.
जिले में करीब 29 एंबुलेंस को विभाग ने निजी एनजीओ का चलाने के लिए दिया है. आधे से अधिक एंबुलेंस का बीमा एनजीओ द्वारा नहीं कराया गया है. एनजीओ संचालक किसी प्रकार का गाड़ी का कागजात चलक को उपलब्ध नहीं कराते हैं.
पैसे कटने के डर से रख-रखाव के लिए ऑफ रोड नहीं होते एंबुलेंस : जिले में करीब 29 सरकारी एंबुलेंस मरीजों की सेवा में उपलब्ध है. स्वास्थ्य विभाग ने जिले के सरकारी एंबुलेंसो को चलाने के लिए सम्मान फाउंडेशन एवं पीडीपीएल एनजीओ को दिया है.
अनुबंध के मुताबिक संचालन करने वाले एनजीओ को ही एंबुलेंसों का रख-रखाव करना है. रख-रखाव में दवा से लेकर गाड़ी की मरम्मत करने की जवाबदेही एनजीओ को है. यानी जिस स्थिति में विभाग ने उन्हें सौंपा है.
उस स्थिति को बरकारार रखना है. विभाग के शर्त के अनुसार अगर एक दिन भी एंबुलेंस ऑफ रोड हुई तो उसके भुगतान में से दो हजार रुपये प्रतिदिन की कटौती कर दी जायेगी. ऑन रोड 29 एंबुलेंसो में से मात्र 14 का एसी ठीक है.
शेष का काम नहीं कर रहा है. पैसे कटने की डर से संचालन करने वाले एनजीओ एंबुलेंस को इस हालत में रखते है कि सिर्फ सड़कों पर दौड़े. मरीजों की सुविधा से उनका कुछ लेना-देना नहीं.
इसलिए जरूरी है कि अस्पताल प्रशासन इस पर संज्ञान ले, और एेसे एंबुलेंसो पर कड़ी कार्रवाई करें.
अस्पताल प्रशासन नहीं करता एंबुलेंस की जांच
जिस सदर अस्पताल, अनुमंडल अस्पताल, रेफरल अस्पताल या पीएचसी के देखरेख में सरकारी एंबुलेंस चल रहा है तो उस अस्पताल के प्रशासन की जिम्मेदारी है कि एंबुलेंस में मरीजों की सेवा में उपलब्ध होने वाली सेवा या उपकरणों की जांच करे. लेकिन ऐसा नहीं होने से जिले के आधे से अधिक एंबुलेंसो की हालत काफी जर्जर है.
सभी एंबुलेंस में आवश्यक उपकरणों एवं दवाओं की मानक चेक लिस्ट होती है. उसी के अनुसार जांच करनी होती है. एंबुलेंस में आवश्यक दवाओं को ऐसा रेखा जाता है जैसा कुड़ा-करकट रखा गया हो.
एनजीओ द्वारा एक प्लास्टिक की टोकरी उपलब्ध करा दी गयी है. उसी में कर्मचारी दवाओं को रखते है. प्राय: सभी एंबुलेंसों में सक्शन मशीन, ग्लूकोमीटर, डिलेवरी कीट, निडिल डिस्ट्रायर तथा आग बुझाने के उपकरण नहीं है. लेकिन उसके चलाने के लिए इनवर्टर की व्यवस्था नहीं होने से मशीन का उपयोग नहीं हो पाता है. वहीं कुछ एंबुलेंसों के बीपी मशीन भी काम नहीं करता है.
इन उपकरणों की कमी
पल्स ऑक्सीमीटर . एंबुलेंस में घायल व्यक्ति की पल्स जांचने के लिए इस उपकरण की आवश्यकता होती है. जिला अस्पताल में तैनात 108 एंबुलेंस में यह नहीं है.
ग्लूकोमीटर. मरीज की ब्लड शूगर जांचने के लिए ग्लूकोमीटर जरूरी है. कई एंबुलेंस में यह नहीं है. वहीं कुछ में शूगर स्टिक भी नहीं है.
सक्शन मशीन. दुर्घटना में घायल या अन्य स्थिति में गंभीर मरीज के गले से कफ या जमा खून को निकालने में सक्शन मशीन की जरूरत होती है.
क्या कहते हैं जिम्मेदार
पुराने एंबुलेंसो को छोड़कर नये करीब 14 एंबुलेंसों में एसी काम करता है. सभी एंबुलेंसों में सभी प्रकार के लाइफ स्पोर्ट दवा व उपकरण उपलब्ध है. गाड़ियों का समय-समय पर जरुरत के मुताबिक रख-रखाव किया जाता है.
एक सप्ताह के अंदर सभी एंबुलेंस में एसी ठीक कर दिया जायेगा. 29 में से 11 एंबुलेंस का बीमार कराया गया है. शेष की प्रक्रिया में हैं. जिसे जल्द ही पूरा कर लिया जायेगा.
सोहराब खान, एसीओ,
केमिकल के बजाय पानी से धोते हैं एंबुलेंस के स्ट्रेचर व अन्य उपकरणों को संक्रमण मुक्त करने के लिए हर 15 दिन में गर्म पानी व केमिकल से साफ करना होता है, लेकिन पायलट व इएमटी अपने स्तर पर सिर्फ पानी से धोकर साफ करते हैं. जिसे संक्रमण फैलने का डर रहता है साथ ही मरीजों के लिए नुकसानदायक भी हो सकता है. इस पर अस्पताल प्रशासन को नजर रखनी चाहिए.
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