रघुनाथपुर : उम्र 90 साल और आज भी वोट करने के लिए पहले ही कतार में लग जाते हैं. लोकतंत्र के महापर्व में भाग लेने के लिए इनमें काफी उत्सुकता रहती है. इन्हें लगता है कि इससे बड़ा कोई पर्व ही नहीं है. उन्होंने अपने जीवन का एक भी वोट नहीं छोड़ा है. इनमें एक आदत यह भी है कि प्रतिदिन अखबार तो पढ़ते ही है इसके अलावा टीवी व रेडियो पर समाचार सुनते हैं.
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बैलगाड़ी से चुनाव कराने बूथ पर जाती थीं पोलिंग पार्टियां
रघुनाथपुर : उम्र 90 साल और आज भी वोट करने के लिए पहले ही कतार में लग जाते हैं. लोकतंत्र के महापर्व में भाग लेने के लिए इनमें काफी उत्सुकता रहती है. इन्हें लगता है कि इससे बड़ा कोई पर्व ही नहीं है. उन्होंने अपने जीवन का एक भी वोट नहीं छोड़ा है. इनमें एक […]
हम बात कर रहे हैं रघुनाथपुर प्रखंड के निखती कला गांव निवासी व वन विभाग के अधीक्षक पद से सेवानिवृत्त हुए मोहन बाबू की. उनमें आज भी युवाओं की तरह ही जोश देखने को मिलता है. वे कहते हैं कि जब भी चुनाव का समय आता है तो मैं पहले घर के सदस्यों से यहीं कहता हूं कि पहले वोट का प्रयोग कर ही कोई काम करें.
इसके लिए सुबह होते ही पहले तैयार करता हूं और अपनी देख-रेख में सभी सदस्यों का मतदान कराता हूं ताकि वोट प्रतिशत भी बढ़े. मोहन बाबू कहते हैं कि वर्ष 1952 में देश में जब पहली बार चुनाव की शुरुआत हुई तो मैंने उस चुनाव को काफी नजदीक से देखा हूं, क्योकि उस समय में अपना मत का भी प्रयोग किया था. उस समय और आज के दौर के चुनाव में काफी अंतर है.
वोटरों में दिखती थी विकास की चाह : मोहन बाबू पुराने याद को ताजा करते हुए कहते है कि पहले के वोटरों में ईमानदारी और विकास की चाह देखने को मिलती थी. वे विकास के लिए वोट करते थे.
लेकिन आज वैसा नहीं देखने को मिल रहा है. 1952 के बाद कई बार हुए चुनाव में मैने देखा कि प्रचार-प्रसार के दौरान प्रत्याशी भोंपू का सहारा लेते थे. जैसे ही नेताजी गांव में पहुंचते कि लोग अपने-अपने घर से निकल कर उनके बातों को सुनते थे.
नेताजी को खाने के लिए ग्रामीण सत्तू, भूंजा और गुड़ देते थे. नेताजी गांव में ही रात में रह जाते थे. कार्यकर्ता के घर ही नेता जी रात बिताने के बाद एक साथ ही विचारों का आदान -प्रदान करते थे. यहीं नहीं नीतियों पर चुनाव लड़े जाते थे.
चुनाव में बिल्कुल होते थे कम खर्च
मोहन बाबू कहते हैं कि आज जहां चुनाव कराने के लिए निर्वाचन विभाग को लग्जरी गाड़ियों का इस्तेमाल करना पड़ रहा है तो पहले बूथ पर जाने के लिए पोलिंग पाटियां बैलगाड़ी का प्रयोग करती थीं.
इसी से ये लोग चुनाव कराने के बाद मतपेटिका जमा करने के लिए मतगणना केंद्र पर पहुंचती थी. वे कहते हैं कि उस दौर के चुनाव में बिल्कुल भी खर्चा नहीं होता था. प्रत्याशी साइकिल से या पैदल लोगों के घर – घर जाकर मतदान करने की लोगों से अपील करते थे.
उस समय कहीं-कहीं किसी बड़े नेता के पास पुराने जमाने की फोर्ट गाड़ी हुआ करती थी. साथ ही कहते है कि मतदान केंद्रों पर सुरक्षा के लिए एक होमगार्ड का जवान या एक चौकीदार ही काफी होता था . इसके अलावा पेट्रोलिंग पार्टी दिन में का चक्कर लगा लेती थी.
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