सीतामढ़ी. श्री हनुमान मंदिर, बाजार समिति परिसर में मंदिर के महंत राजनारायण दास के नेतृत्व में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा का शनिवार को समापन हो गया. अंतिम दिन की कथा में कथा व्यास केशव दास जी महाराज ने गोवर्धन पूजन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि एवं मनुष्य के द्वारा प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए गोवर्धन पूजा मनाया जाता है. इस दिन अन्न कूट का भोग लगाने की परंपरा एवं घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत और पशुधन की आकृति बनाकर विधि विधान से गोवर्धन पूजा की जाती है. भगवान श्री कृष्ण ने यशोदा मैया से पूछा कि इंद्रदेव की पूजा क्यों की जाती है. यशोदा मैया ने कहा कि इंद्रदेव वर्षा करते हैं, जिससे धरती में पैदावार अच्छी होती है और हमारी गायों को चारा प्राप्त होता है. तब श्री कृष्ण ने कहा कि वर्षा करना इंद्रदेव का कर्तव्य है. यदि पूजा करना ही है, तो गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि वहां गायें चरती हैं. साग, सब्जी, फल-फूल गोवर्धन से प्राप्त होती है, इसलिए सभी बृजवासी इंद्रदेव के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे. इंद्रदेव अपमानित होकर प्रलय दायक व कष्ट्दायक् मूसलाधार बारिश शुरू कर दिया. वर्षा के कारण भगवान श्री कृष्ण ने इंद्रदेव का अहंकार दूर करने और सभी बृजवासियों की रक्षा करने के लिए गोवर्धन पर्वत अपनी उंगली पर उठाकर सभी बृजवासी की रक्षा की. लज्जित होकर इंद्रदेव ने क्षमा मांगा. तभी गोवर्धन पूजा के परंपरा आरंभ हुई.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

