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रासायनिक उर्वरक से घट रही है उपज क्षमता, इसे कम करने की जरूरत

कृषि विज्ञान केंद्र बलहा मकसूदन सीतामढ़ी के प्रशिक्षण सभागार में बुधवार को विश्व मृदा दिवस का आयोजन किया गया.

पुपरी. कृषि विज्ञान केंद्र बलहा मकसूदन सीतामढ़ी के प्रशिक्षण सभागार में बुधवार को विश्व मृदा दिवस का आयोजन किया गया. कार्यक्रम का उद्घाटन पशुपालन वैज्ञानिक डॉ किंकर कुमार समेत अन्य ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया. डॉ किंकर ने कहा कि वर्तमान में खेती योग्य भूमि की उपज क्षमता काफी खराब हो गया है. इसका मुख्य कारण लगातार बढ़ रहे रसायनिक उर्वरक, रासायनिक कीटनाशक व रासायनिक फफुंदनाशक का प्रयोग है, जिसे कम करने की जरूरत है. इसके लिए पशुपालन को बढ़ावा देना काफी आवश्यक है. एक ओर जहां पशुपालन से दूध उत्पादन कर आमदनी को बढ़ाया जा सकता है, वहीं दूसरी ओर इसके गोबर से वर्मीकंपोस्ट का उत्पादन कर मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी बढ़ाई जा सकती है. उद्यान वैज्ञानिक मनोहर पंजीकार, सस्य वैज्ञानिक सच्चिदानंद प्रसाद, कृषि प्रसार वैज्ञानिक डॉ पिनाकी राय व गृह वैज्ञानिक डॉ सलोनी चौहान ने कहा कि किसी भी फसल के बेहतर उत्पादन के लिए 16 से 18 पोषक तत्वों की जरूरत होती है. जबकि किसान अभी मुख्य रूप से यूरिया, डीएपी एवं पोटाश का प्रयोग कर रहे हैं. इसके माध्यम से तीन पोषक तत्व नाइट्रोजन, फासफोरस एवं पोटाश की आपूर्ति होती है. बाकी पोषक तत्वों की आपूर्ति नहीं हो पाती है. जिसके चलते मिट्टी में अन्य पोषक तत्वों की कमी हो रही है. — वर्मीकंपोस्ट में हैं सभी 16 पोषक तत्व संतुलित पोषण प्रबंधन हेतु रासायनिक उर्वरकों के साथ – साथ वर्मीकंपोस्ट का प्रयोग आवश्यक है. वर्मीकंपोस्ट में सभी सोलह पोषक तत्व पाए जाते हैं. बताया कि जिले की मिट्टी में आर्गेनिक कार्बन की प्रतिशत मात्रा एवं सूक्ष्म जीवों की संख्या काफी कम हो गई है. जिस कारण रासायनिक उर्वरकों का अधिकतम उपयोग नहीं हो पाता है. इसके समाधान हेतु दलहनी फसलों का उत्पादन एवं बेहतर फसल चक्र को अपनाने की जरूरत है. मिट्टी के बेहतर स्वास्थ्य हेतु जैविक खेती एवं प्राकृतिक खेती को बढ़ाने की जरूरत है. जैविक एवं प्राकृतिक खेती के माध्यम से खेतों में आर्गेनिक कार्बन एवं संतुलित पोषक तत्वों की आपूर्ति होती है, जिससे बेहतर उपज प्राप्त होती है एवं मिट्टी की उर्वरता भी बेहतर होती है. मौके पर अर्चना कुमारी, नवल महतो, श्याम बिहारी राय, सुरेंद्र प्रसाद निराला समेत अन्य वैज्ञानिक, कर्मी, किसान मौजूद थे.

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