लोगों की राय से निबटायी जायेंगी समस्याएं : डीएम
शेखपुरा : जिले के सभी राजकीय नलकूपों को निजी हाथों में सौंप दिया जायेगा. इन नलकूपों को चलाने के लिए कर्मचारियों की कमी है. डीएम ने कहा कि जिले में 177 सरकारी नलकूप हैं. इनमें से 84 चालू हैं. 72 नलकूप खराब है. लोगों के हाथों में इन नलकूपों की जिम्मेदारी देने के पहले उसे दुरुस्त कर दिया जायेगा. उन्होंने बताया कि जनप्रतिनिधि, जीविका स्वयं सहायता समूह आदि को प्राथमिकता दी जायेगी. इसके संचालन के लिए एक कमेटी बनायी जायेगी. नलकूप से संचालन के लिए निजी लोगों को बदले में कोई शुल्क नहीं देना होगा. नलकूप के आगे भी मरम्मत का काम सरकारी स्तर पर ही किया जायेगा. कमेटी के माध्यम से इसका सफल और सुगम संचालन आवश्यकता के अनुसार किया जायेगा. जिले के सभी खराब नलकूपों को चालू करने के लिए विभाग को लिखा गया है.
डीएम योगेंद्र सिंह अपने कार्यालय में संवाददाताओं को संबोधित कर रहे थे. इस दौरान डीएम ने प्रशासन की उपलब्धियों को गिनाया. उन्होंने बताया कि जिला में सभी को बिजली, पानी, स्वास्थ्य सुविधा, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सहित अन्य सरकारी लाभ पहुंचाने के लिए पत्रकारों के अलावा किसानों, व्यापारियों, युवा, छात्र-छात्रा सहित आम लोगों के साथ भी सीधे संवाद स्थापित किया जायेगा. जिलाधिकारी ने किसान संगठन, व्यापार संगठन, युवा और छात्र संगठनों के साथ भी बैठक आयोजित करने का मासिक कार्यक्रम बनाया है. जिलाधिकारी ने इन बैठकों के अलावा शुक्रवार को लोगों की समस्या सुनाने के लिए भी समय निर्धारित करने की जानकारी दी.
खनन से परेशान लोगों के लिए चलेगा कार्यक्रम : जिला प्रशासन ने पत्थर खनन से परेशान लोगों के कल्याण के लिए कार्यक्रम चलाने का निर्णय लिया है. यह कार्यक्रम खनन रॉयलटी के सेस से प्राप्त राशि से की जायेगी. डीएम ने बताया कि बताया कि डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड में दो करोड़ से अधिक की राशि पड़ी है. लंबे समय से इस राशि का उपयोग नहीं हो पाया है. इसके उपयोग के लिए डीएम की अध्यक्षता में कमेटी बनायी जायेगी. जिला खनिज फाउंडेशन नाम से गठित इस कमेटी को खनन राॅयलिटी का दो प्रतिशत प्राप्त होता है. इस राशि का उपयोग खनन से प्रभावित इलाके को विकास की सुविधा मुहैया कराकर लोगों के उपर खर्च किया जाना है. कमेटी के निर्णय के अनुसार यह राशि खर्च की जायेगी. पत्थर उत्खनन से जिले के सैंकड़ों लोग तपेदिक सहित अन्य सांस वाली बीमारी के शिकार हुए. वहीं सैंकड़ों एकड़ भू भाग खेती के लायक नहीं रह पाया है.
