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कर्मी के अभाव में उपकरणों के संचालन में बाधा

शेखपुरा : सदर अस्पताल के जिस व्यवस्था में अधिकारी अपने कक्ष का एसी और पंखा वापसी के दौरान बंद करना भी मुनासिब नहीं समझते वहां बिना किसी तकनीकी कर्मियों के ही एसएनसीयू जैसे संवेदनशील और बड़ी संस्थान का संचालन किया जा रहा है. दरअसल यहां जिन नवजात बच्चों की किलकारियों को बेहतर इलाज के लिए […]

शेखपुरा : सदर अस्पताल के जिस व्यवस्था में अधिकारी अपने कक्ष का एसी और पंखा वापसी के दौरान बंद करना भी मुनासिब नहीं समझते वहां बिना किसी तकनीकी कर्मियों के ही एसएनसीयू जैसे संवेदनशील और बड़ी संस्थान का संचालन किया जा रहा है. दरअसल यहां जिन नवजात बच्चों की किलकारियों को बेहतर इलाज के लिए भर्ती कराया जाता है.

वहां विभिन्न मशीनरी को ऑपरेट करने के लिए जुगाड़ की व्यवस्था से काम चल रहा है. इस मशीनरी में ऑक्सीजन भी अछूता नहीं है. दरअसल एक बीमार नवजात जिसे ऑक्सीजन लगाया जाता है उसे एक मिनट में दो लीटर ऑक्सीजन की जरूरत होती है. ऐसा नहीं कि एसएनसीयू के लिए ऑक्सीजन की कमी है, लेकिन ऑक्सीजन सिलिंडर बदलने से लेकर उसे ऑपरेट करने के लिए टेक्निकल कर्मी का पद रिक्त है. ऐसी स्थिति में महिला स्वास्थ्य कर्मियों के बीच

ऑक्सीजन सिलिंडर इंस्टॉल करने के लिए आये दिन ऊहापोह की स्थिति बन जाती है. कुल मिला कर यह कहा जा सकता है कि एनएससीयू में ऑफ ऑक्सीजन से लेकर अन्य हाइटेक मेडिकेटेड इंस्ट्रूमेंट से लैस होने के बावजूद इसके नियमित संचालन के स्पेशलिस्ट टेक्निशियन अनिवार्य है. इस स्थिति को लेकर अस्पताल प्रबंधक धीरज ने बताया कि एसएनसीयू का संचालन नीति नामक संस्थान से किया जाता है. इसकी देखरेख में पिछले दो माह से कोई कर्मी को बहाल नहीं किया गया है. दो माह पूर्व पुराने कर्मी के इस्तीफा दे देने के कारण पद खाली है.

एसएनसीयू में क्या है व्यवस्था :
सदर अस्पताल कैंपस में एसएनसीयू की व्यवस्था नवजात बच्चों को नया जीवन देने में बहुपयोगी है. नवजात बच्चों को भर्ती कराने के लिए सभी 14 बेड हैं, जिसमें नियमित रूप से ऑक्सीजन बहाल रखने के लिए 25 छोटा और चार बड़ा ऑक्सीजन सिलिंडर का उपयोग किया जा रहा है. एसएनसीयू के अंदर ऑक्सीजन को बहाल रखने के लिए फिलहाल सेंट्रलाइज व्यवस्था भी बहाल किया गया है. सबसे बड़ी विडंबना यह है कि इस सेंट्रलाइज व्यवस्था में अगर आधी रात को ऑक्सीजन सिलिंडर खाली हो जाये,
तो बदलने के लिए कोई तकनीकी कर्मी की व्यवस्था नहीं है. इस कमी से जूझ रहे एसएनसीयू में तत्काल ऑक्सीजन की व्यवस्था बहाल करने के लिए स्वास्थ्य प्रबंधन ने छोटे सिलिंडर की व्यवस्था की है. इससे भी बड़ी विडंबना यह है कि 14 बेड वाले इस एसएनसीयू में कई अत्याधुनिक चिकित्सा उपकरण लगे होते हैं जो आये दिन खराब भी होते हैं. समय पर मरम्मत के अभाव में अक्सर एक ही बेड पर दो-दो नवजातों को रख कर इलाज की व्यवस्था बहाल की जाती है.
अस्पताल में बढ़ते मरीज स्वास्थ्य विभाग के समक्ष एक बड़ी चुनौती : सदर अस्पताल की स्थितियों पर अगर नजर डालें तो यहां अगस्त महीने में आउटडोर के तहत 15421 मरीजों का उपचार किया गया, जो सामान्य दिनों से डेढ़ गुणा से भी अधिक हैं. वहीं 675 प्रसव कराया गया, जिसमें 15 मृत नवजात पैदा हुआ. वहीं प्रसव में जीवित नवजात में 348 लड़का व 323 लड़की का जन्म हुआ. वहीं संस्थागत प्रसव के दौरान लगभग 11 जुडवा बच्चों ने भी जन्म लिया. खास बात यह है कि सदर अस्पताल में संस्थागत प्रसव में प्रतिमाह 15 या उससे अधिक सिजेरियन होता है, लेकिन पिछले दो माह से यहां सिजेरियन की व्यवस्था ठप है. ऐसी स्थिति में मरीजों को प्रसव के लिए निजी नर्सिंग होम का सहारा लेना पर रहा है.

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