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12 को ईद उल अजहा का त्योहार मनाएंगे मुस्लिम समुदाय के लोग

कुबार्नी के इस त्योहार को लेकर तैयारी अंतिम चरण में मुसलिम धर्मावलंबियों के लिए निर्धारित है पांच फर्ज शिवहर :सावन के अंतिम सोमवारी 12 अगस्त को ईद उल अजहा यानी बकरीद का पर्व मुस्लिम समुदाय के लोग बलिदान का त्योहार के रूप में काफी धूमधाम से मनाएंगे. इसकी तैयारी परवान पर है. ईद पर्व के […]

कुबार्नी के इस त्योहार को लेकर तैयारी अंतिम चरण में

मुसलिम धर्मावलंबियों के लिए निर्धारित है पांच फर्ज
शिवहर :सावन के अंतिम सोमवारी 12 अगस्त को ईद उल अजहा यानी बकरीद का पर्व मुस्लिम समुदाय के लोग बलिदान का त्योहार के रूप में काफी धूमधाम से मनाएंगे. इसकी तैयारी परवान पर है.
ईद पर्व के लगभग ढाई महीने बाद बकरीद यानी ईद उल अजहा का त्योहार 12 अगस्त को मनाया जाएगा. इस दिन मुस्लिम भाई इदगाहों पर नमाज अदा करने के साथ बकरे की कुर्बानी देंगे.जिसको लेकर मुस्लिम समुदाय के लोग शहर से गांव तक के बाजारों में बाकरे की खरीद व बिक्री में जुटे हैं. हालांकि मुस्लिम धर्मावलंबियों में इस्लाम के पांच फर्ज माने जाते हैं.
हज इसमें से आखिरी फर्ज माना जाता है. इसलिए मुसलमान भाइयों के जिंदगी में एक बार हज करना बहुत ही जरूरी है. हज होने की खुशी में ईद उल अजहा यानी बकरीद का पर्व बलिदान के त्योहार के रूप में मनाया जाता है. इस दौरान शिवहर शहर के जामे मस्जिद के इमाम मौलाना इस्माइल कादरी ने बताया कि इब्राहिम खिलबुल्लाह इस्माइल जबी हुल्लाह के याद में कुर्बानी की सुन्नत अदा की जाती है.
उन्होंने कहा कि हजारों वर्ष पहले एक बार आकाशवाणी हुई.अल्लाह की रजा के लिए अपनी सबसे प्यारी चीज कुर्बान करो, तो हजरत इब्राहिम ने सोचा कि मुझे तो अपनी औलाद ही सबसे प्रिय है. इसलिए उन्होंने अपने बेटे की ही बलि देना स्वीकार किया. हजरत इब्राहिम को लगा कि कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं. इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी.
उसके बाद जब उन्होंने अपनी आंखों से पट्टी हटाई तब अपने पुत्र को सुरक्षित देखा.अल्लाह ने इजरत इब्राहिम के कुर्बानी से खुश होकर उसके बच्चे की जान बख्श दी और बेटे की जगह बकरे की कुर्बानी कबूल किया गया. इसलिए इस्लाम में बलिदान का बहुत अधिक महत्व है. मौलाना ने कहा कि इस्लाम धर्म में मान्यता है कि अपनी सबसे प्यारी चीज रब की राह में खर्च करो.
रब की राह में खर्च करने का अर्थ नेकी और भलाई के कामों में खर्च की जाती है. इस्लामिक मान्यता के अनुसार हजरत इब्राहिम अपने पुत्र हजरत इस्माइल को इसी दिन खुदा के हुक्म पर खुदा कि राह में कुर्बान करने जा रहे थे. तो अल्लाह ने उनके पुत्र को जीवनदान दे दिया. जिसकी याद में भी यह पर्व मनाया जाता है.
Prabhat Khabar Digital Desk
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