शिवहर : हाथ जोड़ तक भारत आनेवाले अंग्रेज जब हमारे देश का शासक बन बैठा. तब हम उसके इच्छा के अनुसार चलने के लिए बाध्य हो गये. किंतु जब देशवासियों का स्वाभिमान जागृत हुआ,चेतना जागी तो देश के स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल फूंक दिया. जिसमें शिवहर के वीर सपूतों ने भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया.
इस आंदोलन में शिवहर के सपूतों ने अपनी वीरता से अंग्रेजी सता की नींव हिलाकर रख दिया था. शिवहर के स्वतंत्रता सेनानियों का नाम सुनकर अंग्रेजी पुलिस कांप जाती थी. शिवहर में स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर नबाव सिंह व रामनंदन सिंह ने अांदोलन के अग्रणी थे. पूर्व विधायक ठाकुर रत्नाकर राणा बताते हैं कि 1905 में बंग भंग आंदोलन से शिवहर में राजनीतिक चेतना आयी. उस समय ठाकुर नबाव सिंह मुकदमे के सिलसिले में बिहार के उच्च न्यायालय में कोलकाता आते जाते थे.
इसी दौरान वे बंगाल के क्रांतिकारियों के संपर्क में आ गये थे. वे खुदी राम बोस के वीरता से काफी प्रभावित थे. 1917 में जब गांधी जी चंपारण आये तो ठाकुर नवाब सिंह ने उनसे मुलाकात की व गांधी जी से काफी प्रभावित हुए. इस आंदोलन में 1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान ठाकुर साहब पहली बार गिरफ्तार कर लिए गये. इधर नागपुर कांग्रेस की बैठक से लौटने के बाद ठाकुर रामनंदन सिंह ने आजादी की लड़ाई को धारदार बना दिया. असहयोग आंदोलन को लेकर शिवहर के उस समय के हजारीबाग नामक स्थान पर आम सभा हुई. तब तक ठाकुर नबाव सिंह भी जेल से छूट चूके थे.
इस सभा में ठाकुर नबाव सिंह, रामनंदन सिंह, विंदेश्वरी प्रसाद वर्मा, रामनवमी प्रसाद ने अपने विचार रखे. जिससे प्रभावित होकर शिवहर मध्य विद्यालय के शिक्षक फतहपुर निवासी रामनंदन सिंह,माधोपुर सुंदर निवासी हरिहर प्रसाद वर्मा, रेजमा निवासी भरत पांडेय ने विद्यालय से त्याग पत्र दे दिया. उधर सीतामढ़ी में एचइ स्कूल के शिक्षक जानकी प्रसाद वर्मा ने भी त्याग पत्र दे दिया. जिसका अंग्रेजी हुकूमत पर गहरा प्रभाव पड़ा.जनक्रांति के भय से अंग्रेजी सत्ता की नींव हिलने लगी.
उधर 31 जनवरी 1921 को बिहार ओड़िसा सरकार के मुख्य सचिव जी रैनी ने प्रांत के सभी कलक्टरों व मजिस्ट्रेटों के नाम गश्ती पत्र जारी किया. उस पत्र के द्वारा आंदोलन को दबाने का निर्देश दिया गया. इसके पूर्व 25 जनवरी को ही मेजरगंज के पास डिहढ़ी गांव में ठाकुर रामनंदन सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया. तत्कालीन एसडीओ ली ने मुकदमे की सुनवाई की. डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट के तहत उन्हें छह माह की सजा सुनायी गयी. इसके कुछ ही दिनों के अंतर पर अदौरी निवासी नंद लाल झा, खैरवा दर्प निवासी मथुरा प्रसाद सिंह गिरफ्तार कर लिए गये.विदेशी वस्तु के बहिष्कार में शिवहर ने अग्रणी भूमिका निभायी. जेल से छूटने के बाद लाहौर कांग्रेस अधिवेशन में लिए गये निर्णय के आलोक में 26जनवरी 1930 को ठाकुर रामनंदन सिंह ने सीतामढ़ी व विंदेश्वरी प्रसाद वर्मा ने शिवहर में झंडा फहराया. 22 मार्च 1930 को गांधी जी ने ऐतिहासिक दांडी मार्च शुरू किया. पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार शिवहर में भी 13 अप्रैल 1930 को नमक सत्याग्रह को नमक बनाया गया. इस दौरान पुलिस ने ठाकुर रामनंदन सिंह समेत रामदयालू सिंह, नबाव सिंह, जनकधारी प्रसाद गिरफ्तार कर लिए गये. जिसमें ठाकुर रामनंदन सिंह को डेढ़ वर्ष की सजा सुनायी गयी. जबकि ठाकुर नबाव सिंह को छह माह की सजा सुनायी गयी.
आजादी की लड़ाई में वर्ष 1932 में शिवहर थाना पर झंडा फहराने के दौरान पांच स्वतंत्रता सेनानियों ने शहादत दी. जबकि 30 अगस्त 1942 को तरियानी छपड़ा गांव में 10 स्वतंत्रता सेनानियों ने शहादत दी. किंतु आंदोलन उग्र होता गया. जिसने अंग्रेजी सत्ता की नींव को हिलाकर रख दिया.