डेहरी़ गांधी जी ने जब 9 अगस्त 1942 को करो या मरो का नारा दिया, तो पूरे शाहाबाद में क्रांति की ज्वाला धधक उठी. समाज का हर वर्ग अंग्रेजों के खिलाफ हो गया. 10 अगस्त 1942 को डेहरी और तिलौथू हाइस्कूल के छात्रों ने स्कूल का बहिष्कार किया. उसी दिन तिलौथू डाकखाना को जलाया और फिर क्रांतिकारी ब्रजबिहारी दूबे के नेतृत्व में वर्तमान में रोहतास प्रखंड मुख्यालय के रोहतास गांव के समीप स्थित अकबरपुर गांव में स्थापित थाना की ओर चल पड़े. 11 अगस्त 1942 की सुबह स्कूली क्रांतिकारी अकबरपुर पहुंचे, तो वहां पहले से क्रांतिकारी परमानंद मिश्र के नेतृत्व में युवाओं का दल तैयार था. दोनों दलों के बीच मंत्रणा हुई. रणनीति बनी और बकनउरा गांव के धरमू सिंह, शिव विलास श्रीवास्तव, सरयू प्रसाद अग्रवाल आदि ने अकबरपुर थाना पर धावा बोल दिया. युवाओं के आक्रोश को भांप अंग्रेजों की पुलिस भाग खड़ी हुई. क्रांतिकारियों ने थाने पर कब्जा कर लिया. थाने पर तिरंगा फहरा दिया गया, लेकिन झंडा ज्यादा दिन तक थाने के भवन पर नहीं रह सका. दूसरे दिन 12 अगस्त 1942 को डेहरी से अंग्रेजी सेना का दस्ता अकबरपुर पहुंच गया. क्रांतिकारी चुकी स्कूली छात्र थे और उनके पास लड़ने का हथियार नहीं था. सो, वे पीछे हटने को मजबूर हो गये. पुलिस ने क्रांतिकारी परमानंद मिश्र, धरमू सिंह, शिव विलास श्रीवास्तव, सरयू प्रसाद अग्रवाल आदि क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया. बचे साथियों ने क्षेत्र में जलाया था आजादी का अलख अपने साथियों के इस कारनामे से उत्साहित क्रांतिवीर कैमूर पहाड़ी के जंगलों में शरण ले लिये. हर रोज सूर्य के उगते ही पैदल किसी गांव को लक्ष्य कर चलते रहते. जहां रात हुई, उस गांव में ठौर ढूंढ़ते और ग्रामीणों के बीच आजादी की लहर पैदा करते रहे. ये क्रांतिकारी करीब-करीब ढ़ाई माह तक रोहतास, बंजारी सहित कैमूर पहाड़ी के गांवों में घूम-घूमकर क्रांति की ज्वाला फैलाते रहे. धीरे-धीरे संख्या बढ़ती गयी, पर संसाधनों की कमी के कारण एक-एक कर क्रांतिकारी पकड़े जाते रहे. पर, उन्होंने आजादी का बीज गांवों में बो दिया था.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

