मांझी
. कुआं हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक आस्था का प्रतीक है. हिंदू संस्कृति में जहां जन्म से लेकर शादी तक कई महत्वपूर्ण रश्में कुओं के इर्द-गिर्द होती हैं, वहीं मुस्लिम समाज इन कुओं के पानी से वजू कर इबादत करता है. कुआं जल संरक्षण का एक महत्वपूर्ण साधन भी रहा है, जो पूर्वजों की विरासत का हिस्सा है. ये बातें नगर पंचायत की मुख्य पार्षद विजया देवी ने कही. उन्होंने बताया कि पुरखों का आशीर्वाद मानते हुए सरकार की महत्वपूर्ण योजना जल जीवन हरियाली के तहत नगर पंचायत के कुओं का जीर्णोद्धार किया जायेगा. पहले चरण में नगर पंचायत के विभिन्न मुहल्लों के 10 कुओं का जीर्णोद्धार किया जायेगा. सभी कुएं सौ वर्ष पुराने हैं और मिटने के कगार पर थे. इन कुओं को नया रूप दिया जायेगा. विजया देवी ने बताया कि प्रत्येक कुएं के जीर्णोद्धार पर 70 हजार रुपये की राशि खर्च होगी. इस अभियान के दौरान सभी कुओं की स्थिति ठीक कर उन्हें उनके पुराने स्वरूप में लाया जायेगा ताकि भू-जल स्तर और गिरने से बचाया जा सके. जानकारी के अनुसार, वर्ष 1917 में बिहार में सर्वे कार्य के दौरान इन कुओं की भी गणना की गयी थी. तब इन कुओं से निकले पानी से लोग अपनी प्यास बुझाते थे और यह खेतों की सिचाई का एक प्रमुख साधन था, हालांकि, समय के साथ इन कुओं की देखभाल में कमी आ गयी और 1970-90 के बाद इनका अस्तित्व मिटने लगा. हालांकि, पिछले एक दशक में पानी की समस्या के साथ भू-जल स्तर गिरने लगा, जिसके बाद प्रशासन ने तालाबों की स्थिति सुधारने के लिए पहल की थी. इसके तहत मनरेगा से लेकर मत्स्य पालन तक कई योजनाएं चलायी गयी. हालांकि, कुओं की देखभाल सरकारी योजनाओं में उपेक्षित रही. अब सरकार ने कुओं की ओर ध्यान दिया है और उनके सर्वेक्षण के साथ ही उनकी दशा सुधारने का कार्य प्रारंभ किया है.
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