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कोरोनाकाल में शिक्षण संस्थानों के बंद होने से भुखमरी के कगार पर खड़े प्राइवेट शिक्षक, तलाश रहे खेती व अन्य विकल्पों में रोजगार

वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण से बचाव को लेकर समस्तीपुर जिले के सभी प्रारंभिक सरकारी व निजी स्कूल पिछले आठ माह से बंद है. खासकर छोटे स्कूल संचालक भी स्कूल बंद रहने से परेशानी का सामना कर रहे हैं. यू डायस के अनुसार, जिले के 551 से अधिक निजी स्कूलों में करीब आठ हजार शिक्षक काम कर थे. अब इनका रोजगार स्कूल बंद रहने से छीन गया है.

वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण से बचाव को लेकर समस्तीपुर जिले के सभी प्रारंभिक सरकारी व निजी स्कूल पिछले आठ माह से बंद है. खासकर छोटे स्कूल संचालक भी स्कूल बंद रहने से परेशानी का सामना कर रहे हैं. यू डायस के अनुसार, जिले के 551 से अधिक निजी स्कूलों में करीब आठ हजार शिक्षक काम कर थे. अब इनका रोजगार स्कूल बंद रहने से छीन गया है.

भुखमरी के कगार पर खड़े प्राइवेट शिक्षक खेती व विकल्प में नया रोजगार तलाश रहे

शिक्षण संस्थानों के बंद होने से भुखमरी के कगार पर खड़े प्राइवेट शिक्षक खेती व विकल्प में नया रोजगार तलाश रहे हैं. स्कूल बंद रहने की स्थिति में पिछले आठ माह से निजी स्कूलों के शिक्षकों को वेतन भी नहीं मिल सका है. बच्चों के अभिभावक पढ़ाई नहीं होने से फीस देने में आनाकानी करने लगे. अचानक बदले हालात के कारण भूखमरी की कगार पर खड़े ऐसे शिक्षक रोजगार के विकल्प तलाश रहे हैं. कई शिक्षकों ने तो खेती को ही स्वरोजगार बना काम शुरू कर दिया है. जबकि भूमिहीन व गरीब तबके के निजी स्कूलों के शिक्षक छोटी-मोटी दुकान चलाकर अपनी आजीविका के साधन का जुगाड़ कर रहे हैं.

मार्च माह से ही बंद हैं जिले के स्कूल

कोरोना के चलते मार्च माह से ही निजी स्कूल पूरी तरह से बंद चल रहे हैं. सरकारी शिक्षकों को तो सरकार पूरा वेतन दे रही है जबकि प्राइवेट स्कूल संचालक की कमाई बच्चों की फीस ही निर्भर है. आठ माह से एक फूटी कौड़ी भी कुछेक को छोड़ अधिकांश निजी स्कूल के शिक्षकों को नहीं मिली है. स्कूलों के संचालक अब कुछ शिक्षकों कुछ मानदेय दे रहे हैं हालांकि अधिकांश शिक्षकों का वेतन बंद हैं. अभी तक स्कूल कब तक खुलेंगे, इस बारे में कोई निर्णय सरकारी स्तर पर नहीं लिया गया है. ऐसे में जिन शिक्षकों के पास अपनी खेती है, वे सब्जी आदि उगाना शुरू कर दिए हैं.

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किसी तरह से परिवार का खर्च निकालने की जुगत में ऐसे शिक्षक

ऐसे शिक्षक किसी तरह से परिवार का खर्च निकालने की जुगत में लगे हैं. कुछ तो रोजगार की तलाश में इधर-उधर भटक रहे हैं. कई निजी स्कूलों के शिक्षकों ने बताया कि मानदेय से महीने का खर्च चलता था. अब वह भी नहीं मिल रहा है. ऐसे में किसी तरह परिवार की गाड़ी खींची जा रही है. उन्हें पता है कि अगर कोरोना का संक्रमण इसी तरह रहा तो स्कूल खुलना भी मुश्किल है. ऐसे में परिवार की गाड़ी चलाने के लिए कुछ तो करना ही होगा.

Posted by : Thakur Shaktilochan

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