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चार महीने से नहीं है जांच किट

हाल-ए-सदर अस्पताल. बाजार से जांच डॉक्टर के नुस्खे पर बाजार से जांच करानी पड़ती है. मरीजों को 50 की जगह 500 रुपये खर्च करने होते हैं. सहरसा मुख्यालय : सरकार कहती है कि वह राज्य के लोगों को स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के लिए पूरी तरह मुस्तैद है. जिला मुख्यालय के सदर अस्पताल सहित ग्रामीण […]

हाल-ए-सदर अस्पताल. बाजार से जांच

डॉक्टर के नुस्खे पर बाजार से जांच करानी पड़ती है. मरीजों को 50 की जगह 500 रुपये खर्च करने होते हैं.
सहरसा मुख्यालय : सरकार कहती है कि वह राज्य के लोगों को स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के लिए पूरी तरह मुस्तैद है. जिला मुख्यालय के सदर अस्पताल सहित ग्रामीण इलाकों के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में चिकित्सक, दवा सहित जांच की व्यवस्था उपलब्ध होने की बात करती है. लेकिन अंदरखाने में स्थिति बिल्कुल पलट है. यहां बीमार व बीमारियों का इलाज भगवान भरोसे ही होता है. कुव्यवस्था के कारण यहां आने वाले मरीजों की बीमारी घटने की बजाय बढ़ जाती है.
मरीजों को दिखाते हैं बाजार का रास्ता : ऊपर से पूरी तरह फिट दिखने वाले सहरसा सदर अस्पताल में स्वास्थ्य सुविधाओं का टोटा है. इमरजेंसी अथवा ओपीडी में मरीजों को देखने के बाद डॉक्टर उनके नुस्खे पर आवश्यक जांच लिखते हैं. लेकिन पैथोलॉजी जाने पर उन्हें बाजार के जांच घरों का पता बता कर वहां जाने का रास्ता दिखा दिया जाता है. पैथोलोजिस्ट मरीजों के खून का सैंपल लेकर टीसी, डीसी, इएसआर जैसे सामान्य जांच तो कर देते हैं, लेकिन इससे उपर की जांच के लिए वे हाथ खड़े कर देते हैं. वे उन्हें जांच में उपयोग होने वाले आवश्यक किट व केमिकल नहीं होने की बात बता पल्ला झाड़ लेते हैं. गांव, देहात से जकड़ी व गंभीर बीमारी लेकर आने वाले गरीब मरीजों को सही डायग्नोसिस के लिए बाजार जाना होता है. जहां सौ-पचास रुपये की जगह उन्हें पांच सौ से हजार रुपये खर्च करने होते हैं.
बिहार से झारखंड गया मलेरिया : ओपीडी स्थित जांच घर में जांच के जरूरतमंद मरीजों के साथ मजाक होता है. उन्हें तरह-तरह के बहाने बना वहां से विदा कर दिया जा रहा है. सोमवार को मलेरिया की जांच के लिए पहुंचे मरीज को जांच घर में पहले बताया गया कि जांच किट नहीं है. पूछने पर कहा कि पिछले चार महीने से सरकार ने न तो किसी तरह की जांच किट या केमिकल का आवंटन दिया है. वे बाहर के पैथोलोजी से ही जांच करा लें. सामान्य पद्धति से जांच कर देने की बात कहने पर कहा कि केमिकल नहीं है. किसी भी तरह वे उनकी बीमारी की जांच करने में सक्षम नहीं हैं. जांच घर में मौजूद कर्मी ने मरीज को भरमाते कहा कि मलेरिया का जांच कराने की क्या जरूरत है. यह बीमारी अब बिहार से झारखंड चली गयी है.
कुछ दिनों तक किट का अभाव था. लेकिन अब सभी केमिकल व सभी तरह के जांच किट उपलब्ध हो गये हैं. यदि किसी कर्मी ने मरीज को भरमाया है तो पता लगा कर कार्रवाई की जायेगी.
विनय रंजन, प्रबंधक, सदर अस्पताल, सहरसा

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