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41 डिग्री पर पारा, प्यास बुझाने को भटकते हैं लोग

शहर में नहीं है कहीं भी प्याऊ, पैसे खर्च कर तर करना पड़ता है गला गरमी बढ़ती जा रही है. लेकिन नप इलाके में चापाकल ढूंढ़ने से नहीं मिलते. ऐसे में बाहर से आये लोगों को खरीद कर ही पानी पीना पड़ता है. सहरसा मुख्यालय : अप्रैल महीने में चल रही भीषण गरमी व लू […]

शहर में नहीं है कहीं भी प्याऊ, पैसे खर्च कर तर करना पड़ता है गला

गरमी बढ़ती जा रही है. लेकिन नप इलाके में चापाकल ढूंढ़ने से नहीं मिलते. ऐसे में बाहर से आये लोगों को खरीद कर ही पानी पीना पड़ता है.
सहरसा मुख्यालय : अप्रैल महीने में चल रही भीषण गरमी व लू से ही लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है. जबकि अभी मई, जून व आधा जुलाई बाकी है. पिछले सारे वर्षों के गरमी के रिकॉर्ड पीछे छूटते जा रहे हैं. सूरज उगते ही पारा 30 से शुरू होता है. जो दोपहर तक 40 और 42 तक पहुंच लोगों को जला रहा है. बिजली साथ तो देती है, लेकिन पंखे से भी गरम हवा ही निकलती है. इस भीषण गरमी में बाजार, ऑफिस अथवा अन्य आवश्यक कार्य से निकलने वालों के हलक सूख जाते हैं.
जिन्हें तर करने के लिए वे चापाकल या प्याऊ की तलाश करते रह जाते हैं. अंतत: उन्हें भिगोने के लिए उन्हें पैसा खर्च कर कोल्डड्रिंक्स या अन्य पेय पदार्थ पीना पड़ता है. एक तो गरमी की मार, ऊपर से आम लोगों की जेब पर लगातार प्रहार हो रहा है. लेकिन नगर सरकार के पास लोगों की इस आवश्यक जरूरत को पूरा करने के लिए न तो कोई भावना है और न ही कोई योजना.
कहां गया योजनाओं का चापाकल: असंतुलित होते जा रहे पर्यावरण से मौसम में गरमी की अवधि लगातार बढ़ती जा रही है. लेकिन नगर परिषद हर साल बजट बढ़ाने के बाद भी कोई सुविधा नहीं बढ़ा रही है.
हर बजट में शहर को सुंदर बनाने की योजना तो बनती है. लेकिन आम नागरिकों की सुविधा के लिए कुछ भी नहीं हो पाता है. कहने के लिए तो सांसद, विधायक व विधान पार्षदों के मद से हर साल सैकड़ों की संख्या में चापाकल लगाये जाते हैं. हर वार्ड में हर साल सार्वजनिक स्थानों पर लगाने के लिए 20-20 चापाकल दिए जाते हैं.
लेकिन वे चापाकल जमीन पर गड़े कहीं नहीं दिखते हैं. अंगुली पर गिने जाने लायक जो भी चापाकल दिखते हैं. वे सब दस से 15 वर्ष पुराने हैं. केंद्र व राज्य सरकार का चापाकल योजना भी यहां घपला व घोटाले की जद में आकर नप के अधिकारी व अभिकर्ताओं की जेब को गरम भर करता है.

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