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सूर्य ही एकमात्र देवता, जिनका होता है साक्षात दर्शन

सूर्य ही एकमात्र देवता, जिनका होता है साक्षात दर्शन जमीन व प्रकृति से जुड़ा है यह महापर्व, नहीं होती है पुजारी अथवा मंत्र की आवश्यकताप्रतिनिधि, सहरसा मुख्यालयकहते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है. सर्वशक्तिमान है. वह श्रृष्टि का संचालन, पालन और उसका विनाश करता है. उसकी भक्ति से बड़े से बड़े कष्ट क्षण भर में दूर हो […]

सूर्य ही एकमात्र देवता, जिनका होता है साक्षात दर्शन जमीन व प्रकृति से जुड़ा है यह महापर्व, नहीं होती है पुजारी अथवा मंत्र की आवश्यकताप्रतिनिधि, सहरसा मुख्यालयकहते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है. सर्वशक्तिमान है. वह श्रृष्टि का संचालन, पालन और उसका विनाश करता है. उसकी भक्ति से बड़े से बड़े कष्ट क्षण भर में दूर हो जाते हैं. ईश्वर की कृपा से इनसान किसी भी उपलब्धि को पा लेता है. ईश्वर के संबंध में यह भी किंवदंती है कि देवी-देवताओं की संख्या करोड़ों में है. लेकिन उन करोड़ों में से इनसान सिर्फ सूर्य देवता का ही साक्षात दर्शन करते हैं. मनुष्य, पशु-पक्षी, पेड़-पौधा सबों को जीवन देने के कारण सूर्य की आराधना महत्वपूर्ण है. महापर्व होने के बाद भी छठ में न तो किसी पुजारी की जरूरत होती है और न ही किसी मंत्र की आवश्यकता. नियम-निष्ठा, पवित्रता, शुद्धता व समर्पण ही इस त्योहार के मूलमंत्र हैं. पर्व की सादगी ऐसी कि यह हर किसी की पहुंच में होता है. इस त्योहार में अमीर-गरीब सब एक जैसे हो जाते हैं. छठ जमीन व प्रकृति से जुड़ा महापर्व है. जिसमें जमीन के अंदर पैदा होने वाले अल्हुआ, सुथनी, मूली, आदी, हल्दी, मिट्टी के उपर लता में होने वाला खीरा, बैंगन, अंगूर, झाड़ी में होने वाले ईख, पेड़ में फलने वाला सेब, नारंगी, केला, नारियल, पानी में होने वाला सिंहारा, मखाना, सौरखी सब चढ़ता है. बांस से बने डाला-दउड़ा में चढ़ने के बाद सबों का महत्व समान हो जाता है. वे प्रसाद बन जाते हैं. मिट्टी व पानी जैसे प्राकृतिक बस्तुओं के मेल से यह त्योहार लोगों को प्रकृति के और भी करीब ले जाता है.

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