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नहीं रुक रहा बालू उठाव और समय पर नहीं हो रही जजर्र तटबंधों की मरम्मत सासाराम(ग्रामीण) : रोहतास जिले से गुजरनेवाली के सोन नदी व सोन नहरों के किनारों का तेजी से कटाव हो रहा है. इससे निकट भविष्य में जान-माल की भारी क्षति हो सकती है. सोन नद में हो रहे कटाव के कारण […]

नहीं रुक रहा बालू उठाव और समय पर नहीं हो रही जजर्र तटबंधों की मरम्मत
सासाराम(ग्रामीण) : रोहतास जिले से गुजरनेवाली के सोन नदी व सोन नहरों के किनारों का तेजी से कटाव हो रहा है. इससे निकट भविष्य में जान-माल की भारी क्षति हो सकती है. सोन नद में हो रहे कटाव के कारण इसके आसपास बसी आबादी पर खतरा मंडरा रहा है. कई जगहों पर घने आबादी वाले क्षेत्रों के पास सोन नदी में मशीनों के द्वारा बालू का उठाव किया जाता है, जिससे भूस्खलन का भी खतरा मंडराने लगा है.
वहीं, कई सोन से निकलने वाली नहरों के तटबंधों में हुए कटाव से कई सड़कें पानी की भेंट चढ़ गयीं. वहीं, हर साल नहरों के तटबंधों के टूटने से हजारों एकड़ भूमि जलमग्न हो जाती है. लेकिन, सिंचाई विभाग के अधिकारी इस समस्या पर चुप्पी साधे हैं.
क्या है कटाव के कारण : बालू उठाव के लिए सोन नदी के घाटों की हर साल नीलामी होती है. लेकिन, आज कल सोन नहरों से भी बालू का उठाव हा रहा है. बालू खनन में लगे लोग तटबंध काट कर वाहनों को नहरों में उतारते हैं. पशुपालक भी नहरों में मवेशियों को धोने के लिए ले जाते हैं. इससे नहरों पर बनी सड़कें व उनके तटबंध कट रहे हैं. साथ ही, आसपास के गांवों के लोग निजी काम के लिए नहरों के तटबंधों से मिट्टी का उठाव कर रहे है.
नहरों में समा गयीं सड़कें : बक्सर मुख्य नहर, चौसा शाखा नहर, डुमरांव शाखा नहर, बिहिया नहर व गारा चौबे मुख्य नहर समेत कई नहरों पर बनीं सड़कें तेजी से हो रहे कटाव के कारण नहरों में समा गयीं. इससे इन सड़कों पर वाहनों के परिचालन ठप हो गया है.
नहीं होती क्षमता के अनुरूप जलापूर्ति
कमजोर तटबंधों के कारण कई नहरों में पूर्व निर्धारित क्षमता के अनुरूप जलापूर्ति नहीं की जाती है. अगर पूर्व निर्धारित क्षमता के अनुरूप नहरों में पानी छोड़ा जाये, तो तटबंध उसके दबाव को बरदाश्त नहीं कर पाते हैं और तटबंधों के टूटने का खतरा बना रहता है. ऐसी स्थिति में नहरों में जलापूर्ति तटबंधों की मजबूती देख कर की जाती है. इस कारण नहर के अंतिम छोर तक (टेल एंड) तक पानी नहीं पहुंच पाता है.
अधिकारियों के लिए बना चरागाह: तटबंध टूटने के बाद विभागीय अधिकारियों की देखरेख में नहरों के टूटे तटबंधों की मरम्मत होती है. इसके खर्च का निर्धारण उसके लागत के अनुरूप होता है. ऐसी स्थिति में डिपार्टमेंटल टेंडर अधिकारियों के लिए चारागाह बन जाता है. टेंडर के जरिये लाखों रुपयों की निकासी होती है. लेकिन मरम्मत के नाम पर टूटे तटबंधों की बालू भरी सीमेंट की बोरियों में मरम्मत की जाती है. जलापूर्ति के बाद बोरियां धीरे-धीरे सड़ जाती हैं और पानी के दबाव के कारण तटबंध टूट जाते हैं.
Prabhat Khabar Digital Desk
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