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सर्दी तेज होने के साथ जहरीली होती जा रही पूर्णिया शहर की हवा

धीरे धीरे खतरे की तरफ बढ़ रहा एक्यूआई का ग्राफ

धीरे धीरे खतरे की तरफ बढ़ रहा एक्यूआई का ग्राफ, लोगों की बिगड़ रही सेहत

शहर के वातावरण में घुल रहे धुलकण, फेफड़े को लगातार पहुंचा रहे नुकसान

दिसंबर शुरू होते ही बढ़ने लगा प्रदूषण, वातावरण में जम जाती है धुएं जैसी परत

पूर्णिया. सर्दी बढ़ते ही शहर में प्रदूषण का ग्राफ बढ़ने लगा है. दिसंबर की शुरुआत से ही शहर का एक्यूआइ खराब स्थिति में रह रहा है. बीते बुधवार की शाम शहर का एक्यूआइ 154 पर था जबकि गुरुवार को यह आंकड़ा 153 तक पहुंचा. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार दो से 9 दिसंबर 2025 तक औसत एक्यूआइ 177 रहा, जो अस्वास्थ्यकर और संवेदनशील श्रेणी में आता है. आंकड़ों को देखा जाए तो दिसम्बर की शुरुआत से ही एक्यूआइ मानक की सीमा से बाहर चल रहा है. वर्ष 2024 के एक दिसम्बर को एक्यूआइ जहां 161 था वहीं इस साल 158 रहा. यह स्तर भी स्वास्थ्य के लिए घातक माना जाता है, खासकर सांस रोगियों, बच्चों और बुजुर्गों के लिये. जानकारों का कहना है कि इस दौरान सूक्षम कण का स्तर भी काफी बढ़ा है जो फेफड़ों को नुकसान पहुंचा रहा है. जानकारों का मानना है कि सर्दी के इस मौसम में प्रदूषण पिछले महीने की तुलना में तीस फीसदी तक बढ़ा है. गौरतलब है कि कभी स्वच्छ हवा और हरियाली के लिए पहचाना जाने वाला पूर्णिया वायु प्रदूषण के मामले में गुजरते वक्त के साथ खतरनाक शहरों में शामिल होने लगा है. गुरुवार को शहर का एयर क्वालिटी इंडेक्स मानक से कहीं अधिक रहा जबकि बुधवार को यह 154, मंगलवार को 148 तक पहुंचा. इसी तरह सोमवार को 137 एवं रविवार को 133 और शनिवार को 127 दर्ज किया गया था. विशेषज्ञों का कहना है कि एक आदर्श और स्वच्छ शहर के लिए एयर क्वालिटी इंडेक्स 50 से नीचे रहना चाहिए. इससे नागरिक बिना किसी स्वास्थ्य जोखिम के स्वस्थ और सुरक्षित हवा में सांस ले सकते हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक सामान्य रुप से किसी शहर का एक्यूआइ 50 से 100 के बीच होना चाहिए. एक्यूआइ का स्तर 100-200 के बीच मध्यम प्रदूषण माना जाता है लेकिन 200 के पार जाने पर सांस, आंख और हृदय से जुड़ी बीमारियों का खतरा गंभीर हो जाता है.

धुंध की तरह दिखती है जहरीली हवा

मौसम विज्ञानियों के मुताबिक हवा का घनत्व बढ़ने और तापमान कम होने पर प्रदूषित हवा नीचे रह जाती है. यह जहरीली हवा धुंध की तरह दिखती है. हवा में धूलकण की मात्रा अधिक हो जाती है. प्रदूषण का स्तर घटता-बढ़ता रहता है. सड़कों पर उड़ते धूल के कारण वातावरण में धुएं जैसी परत जमी रहती है जो धुंध होने का भ्रम देती है. इस इलाके के लोगों को बढ़े प्रदूषण के कारण अधिक परेशानी झेलनी पड़ रही है. विशेषज्ञों की माने तो कचरा प्रबंधन और वाहन उत्सर्जन पर नियंत्रण नहीं हुआ और प्रदूषण नियंत्रण के लिए ठोस प्लान नहीं बना तो स्थिति और भी गंभीर हो सकती है. जानकार बताते हैं कि सड़कों पर बिना ढके मिट्टी और बालू की ढुलाई, निर्माण कार्यों के कारण उड़ने वाले धूल कण सहित कई अन्य कारण प्रदूषण बढ़ा देते हैं. मास्क का इस्तेमाल करके प्रदूषण से कुछ हद तक बचाव किया जा सकता है.

काल बन रहा वाहनों का काला धुआं

शहर की सड़कों पर वाहनों से निकलने वाला काला धुआं काल बन रहा है. आलम यह है कि इसके कारण खुली हवा में सांस लेना भी मुश्किल साबित हो रहा है. जिन गाड़ियों में बैठ कर हम सब अपनी शान दिखाते हैं, वे धुएं के साथ जहर उगल रही हैं. सड़कों पर काला धुआं के साथ धूल उड़ाती गाड़ियां हमें ही बीमार कर रही हैं. दरअसल, शहर में वाहनों के पॉल्यूशन की जांच की कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं है. जानकारों का कहना है कि इसकी जांच के लिए आवश्यक उपकरण ट्रैफिक पोस्ट पर भी होना चाहिए जहां ऐसे वाहनों को तुरंत पकड़ा जा सकता है. वैसे, धुएं की जांच के लिए पूर्णिया में कई केन्द्र खुले हैं पर वहां जांच कराने के प्रति वाहन चालक बहुत जागरुक नहीं दिखते. इन केन्द्रों में धुएं की जांच के लिए वही वाहन पहुंचते हैं जिन्हें शुरुआती दौर में रजिस्ट्रेशन के लिए सर्टिफिकेट की जरुरत होती है.

धूल के धूंध में खो जाता है रंगभूमि मैदान

रंगभूमि मैदान एक शहर की एक ऐसी जगह है जहां लोग खुली हवा लेने के लिए सुबह में मॉर्निंग वाक करते हैं और शाम में टहलते हैं. पहले यहां मैदान में सिर्फ घास थे जिससे हरियाली नजर आती थी. मगर बदलते दौर में वाहनों की आवाजाही भी बीच मैदान से होने लगी है जिसके कारण घास लगभग खत्म हो गये और धूल ने घर बना लिया. यहां शाम में टहलने वाले लोगों का कहना है कि पूरा रंगभूमि मैदान प्रदूषित हो गया है. तेज रफ्तार से दोपहिया और चारपहिया वाहनों के भागमभाग के कारण सुबह से धाम तक धूल उड़ते रहते हैं. धूल के कारण लोगों का खुली हवा में सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है. हर कोई यह सवाल खड़ा कर रहा है कि आखिर इस मैदान को प्रदूषण से बचाने की जवाबदेही किसके जिम्मे है और वह क्यों नहीं इसके लिए पहल कर रहा है.

बोले चिकित्सक

वातावरण में उड़ने वाली धूल और धुएं और जहरीली गैस की वजह से लोगों में श्वांस सम्बंधित परेशानियां बढ़ जाती है. ह्रदय, फेफड़े और दमा के मरीजों को श्वांस लेने में परेशानी के अलावा उनमें एलर्जी की भी समस्या बढ़ सकती है. दूसरी ओर खांसी, आंखो में इन्फेक्शन, लाली आना साथ ही नाक और आंख से पानी जाना आम बात है. जो लोग धुम्रपान करते हैं उनको बेहद कठिन स्थिति में पहुंचा सकता है यह प्रदूषण. फोटो. 19 पूर्णिया 1- डॉ. पंकज कुमार, विभागध्यक्ष, फोरेंसिक मेडिसिन जीएमसीएच

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दिनांक एक्यूआई

18 दिसम्बर 15317 दिसम्बर- 15416 दिसम्बर- 14815 दिसम्बर 13714 दिसम्बर 13313 दिसम्बर- 12712 दिसम्बर- 13811 दिसम्बर- 16610 दिसम्बर- 16409 दिसम्बर- 17708 दिसम्बर- 17307 दिसम्बर- 15206 दिसम्बर- 8405 दिसम्बर- 99

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