12.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

जीवन की आपाधापी के बीच पूर्णिया में मानसिक रोगियों की संख्या में इजाफा

इस भौतिकवादी युग ने आमलोगों के जीवन की दिशा और दशा बदल कर रख दी है.

जीएमसीएच के मानसिक विभाग में हर माह पहुंच रहे हैं 600 से ज्यादा मेंटल मरीज

बेतरतीब जीवन शैली, वर्क लोड, घरेलू समस्या व कर्ज का बोझ पहुंचा रहा अस्पताल

पूर्णिया. इस भौतिकवादी युग ने आमलोगों के जीवन की दिशा और दशा बदल कर रख दी है. अंतहीन आकांक्षाओं और भविष्य की योजनाओं को लेकर जीवन की इस आपाधापी में लोग इतने खो चुके हैं कि इसका उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. दूसरी ओर वे अपने परिवार और समाज से भी कटते जा रहे हैं, जिससे उनका एकाकीपन बढ़ता जा रहा है. असंयमित जीवन शैली, कार्य का बढ़ता दबाव, घरेलू समस्या और बढ़ते कर्ज के अलावा अन्य कई ऐसे कारण हैं, जिससे समाज में मानसिक रोगियों की संख्या बढ़ रही है. राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल के मानसिक रोग विभाग के आंकड़े पर अगर गौर करें तो अमूमन हर माह 600 से ज्यादा मानसिक रोगी अपना इलाज कराने पहुंच रहे हैं, इनमें सभी उम्र वर्ग के लोग शामिल हैं. मानसिक रोग से न केवल संबंधित मरीज, बल्कि उनका पूरा परिवार प्रभावित है.

मरीजों में एंग्जायटी, सिजोफ्रेनिया व नशा के केस ज्यादा

जीएमसीएच के मानसिक रोग विभाग में आने वाले ज्यादातर मामले एंग्जायटी, सिजोफ्रेनिया और नशा सेवन की समस्या से पीड़ित पाए जा रहे हैं. यहां पदस्थापित मनोरोग विशेषज्ञ का कहना है कि अमूमन मरीजों में रोग की तहकीकात के लिए उनके इतिहास के बारे में जानकारी ली जाती है. इस काउंसलिंग में अधिकतर नौकरी पेशा वालों में घरेलू समस्या से ज्यादा उनके द्वारा विभिन्न प्रकार के ऋण के बोझ संबंधी मामले सामने आते हैं, जबकि अन्य मामलों के अलावा किसी प्रकार की कोई घटना अथवा ऐसी बातें, जो संबंधित मरीज के मन-मस्तिष्क में कभी घर कर गयी हो, इसकी जानकारी मिलती है. शुरुआती समय में किसी भी प्रकार से उत्पन्न मनोरोग के बारे में न तो खुद मरीज को समझ आती है और न ही उसके परिवार वालों को. समय बीतने के साथ-साथ यह मर्ज बढ़ता जाता है. दूसरी ओर समाज में खासकर युवाओं के बीच तरह-तरह के नशा के सेवन से उनके स्वास्थ्य के साथ-साथ उनके मस्तिष्क पर भी इसका गंभीर असर पड़ता है और वे धीरे-धीरे मानसिक रोग के शिकार हो जाते हैं.

कम उम्र के बच्चों को मोबाइल बना रहा मानसिक रोगी

मनोरोग विशेषज्ञ बताते हैं कि अमूमन हर घर में इस्तेमाल होने वाले मोबाइल का असर छोटे बच्चों पर भी देखा जा रहा है. सोशल मीडिया पर उपलब्ध होने वाले सही-गलत, सभी प्रकार के कंटेंट बच्चों के मन-मस्तिष्क को प्रभावित कर रहे हैं, जिससे वे जिद्दी और क्रोधी प्रवृत्ति के बनते जा रहे हैं. इसके अलावा ये कंटेंट्स युवावस्था की ओर अग्रसर किशोर किशोरियों को भी दिग्भ्रमित करते हैं. देर रात तक मोबाइल का इस्तेमाल बच्चों से उनका बचपन छीन रहा है. चिकित्सकों का कहना है कि 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को मोबाइल से दूर रखना बेहद जरूरी है.

बोलते आंकड़े

माह जीएमसीएच आनेवाले मरीजों की संख्या

सितंबर : 660

अक्टूबर : 600

नवंबर : 662

मानसिक मरीजों का इलाज काफी लंबा चलता है. इसमें मरीज को दवा के अतिरिक्त उनके परिवार का संयम और संबल इस रोग से निजात दिलाने में मददगार साबित होता है. हालांकि दवा शुरू करने के बाद धीरे-धीरे मरीज की स्थिति सामान्य होने लगती है, लेकिन कुछ दिनों बाद लोग समझने लगते हैं कि वो ठीक हो गया है और चिकित्सक से मिलना, उनकी सलाह और दवा का सेवन बंद कर देते हैं, जिससे उनके मामले और बिगड़ जाते हैं.

डॉ नायाब अंजुम, मनोरोग विशेषज्ञ, जीएमसीएचB

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel