पूर्णिया. एक बार फिर रबी का मौसम आया है और किसानों में मक्का की पैदावार को लेकर गहमा-गहमी बनी हुई है. अधिकांश किसानों ने जिनके खेत से धान की फसल की ससमय कटायी हो चुकी थी, वहां मक्का और आलू की फसल लगा ली है और जिनके धान की फसल में बीते दिनों हुई बारिश का असर रहा, उनके खेत भी अब खाली होने लगे हैं और उनमें भी मक्का और आलू की बुआई चल रही है. हर साल की तरह इस साल भी अच्छी आमदनी की उम्मीद लगाये किसान मक्का और आलू की फसल में लगे हुए हैं. यह अकाट्य सत्य है कि मक्का की पैदावार ने पूर्णिया और सीमांचल के किसानों को आर्थिक समृद्धि दी है. यह भी एक वजह है कि लगातार उनके द्वारा इस फसल पर ज्यादा फोकस किया जाता है. हालांकि अधिकांश किसानों के समक्ष तैयार फसलों को शीघ्र बेचने और अगली फसल को लगाने की चिंता रहती है और वे तुरंत उनकी बिक्री कर देते हैं, लेकिन कुछ किसान अपने उत्पाद का स्टॉक रखते हैं और बाजार भाव के ऊपर उठने का इंतजार करते हैं, लेकिन इस बार जिन किसानों ने मक्का का स्टॉक किया था, उनके लिए यह साल अच्छा नहीं कहा जा सकता. ऐसा इसलिए कि इस साल मक्का की पैदावार की कटाई के वक्त जितना बाजार भाव था, वो इस रबी के सीजन में बेहद नीचे पहुंच गया और जिन्होंने मक्का स्टॉक किया था, उनके लिए यह घाटे का सौदा बन गया. ऐसे किसान एक बार फिर इस सीजन में मक्का और आलू की खेती से इसकी भरपाई की आस लगाये बैठे हैं.
फरवरी-मार्च में 2700 से 2800 रुपये था प्रति क्विंटल मक्के का भाव
गणेशपुर काझा के किसान राजू झा कहते हैं कि इस बार मकई स्टॉक करने वाले किसानों का बहुत बुरा हाल है. उन्होंने अपनी मक्का की फसल को तैयार होते ही बाजार तक पहुंचाकर अच्छा काम किया. उस वक्त उन्हें 2280 से लेकर 2300 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिला था. आखिर आखिर तक इन्होंने 2150 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से अपनी उपज बेच दी और अभी बाजार भाव 1900 से 2000 तक ही है, जबकि यह सबसे कम 1850 रुपये प्रति क्विंटल के भाव तक पहुंच गया था.श्री झा ने यह भी कहा कि जिन किसानों ने अपनी पैदावार का स्टॉक किया था उन्हें दो तरफा नुकसान हुआ है. एक तो बाजार भाव गिर गये और दूसरा उन्होंने जो स्टॉक रखा था, उनमें कीड़े और घुन की भी समस्या पैदा हो गयी, जिससे उन किसानों को अपनी फसल को बाजार तक पहुंचाने के लिए स्टोर से निकालकर उसे फिर से साफ-सुथरा कर सुखाकर दूसरी बोरियों में भरवाना पड़ा और इसके लिए मजदूरों का खर्च अलग से उनके माथे पर आ गया. इस प्रकार प्रति क्विंटल 100 से 150 रुपये खर्च बढ़ गये और बाजार में मूल्य लगभग 200 रुपये कम मिला. श्री झा ने बताया कि उनके गांव के मक्का स्टॉक करने वाले सोहन चौधरी, उपेंद्र यादव, नसरुद्दीन आदि किसानों को इस दफा नुकसान का सामना करना पड़ा है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि बीते वर्ष जिन किसानों ने मक्का स्टॉक किया था उनके लिए यह सौदा फायदेमंद रहा था. इस वर्ष फरवरी मार्च के माह में मक्का प्रति क्विंटल 2700 से 2800 तक भाव पहुंच गया था और बाद में उन्हें 2400 से 2500 रुपये प्रति क्विंटल तक का भाव मिला था, लेकिन इस बार मामला बिलकुल उलट है और किसान एक बार फिर उम्मीद लगाए मक्का और आलू की फसल की खेती में लग गये हैं.
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