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जिले में नेत्रदान अभियान को मिलने लगा नया आयाम

मरणोपरांत अंग दान के प्रति लोगों में बढ़ी जागरूकता

मरणोपरांत अंग दान के प्रति लोगों में बढ़ी जागरूकता

पूर्णिया. समाज में दान देने की परंपरा बेहद पुरानी है. सामर्थ्य के अनुसार अपने जीवन काल में लगभग सभी व्यक्ति किसी न किसी रूप से दान करते हैं. सामाजिक जिम्मेदारियों के प्रति अपनी भूमिका निभाने वालों की आज कमी नहीं है. लेकिन मरणोपरांत अपने शरीर के अंगों का दान करने के प्रति भी लोगों में जागरूकता बढ़ी है. कई लोग ऐसे हैं जिनके द्वारा जीवित अवस्था में रहते हुए अपने सगे संबंधियों के लिए अंगों का दान किया गया है. लेकिन कुछ ऐसे अंगों का दान जो व्यक्ति के मरने के बाद स्वीकार किये जाते हैं वो दूसरों के जीवन में नया सवेरा लेकर आते हैं. उनमें खास तौर पर नेत्रदान अभियान को जिले में अब नया आयाम मिलने लगा है. विभिन्न सामाजिक गतिविधियों और इसके लिए जागरूकता अभियानों ने समाज के लोगों को प्रेरणा दी है. और लोग अपने जीवन काल में ही अपने अंगों का दान कर रहे हैं. इसी कड़ी में हाल ही में जिले के प्रख्यात सर्जन डॉ ओम प्रकाश साह के परिजनों के द्वारा उनके मरणोपरांत नेत्रदान करने की बात आज हर जुबां पर है. यह एक पहला मौका है जब दूसरों को जीवन देने वाले और धरती के भगवान कहे जाने वाले किसी डॉक्टर ने मरने के बाद नेत्रदान कर किसी के अंधेरे जीवन में प्रकाश लाने का प्रयास किया है. निश्चित रूप से नेत्रदान में डॉक्टर समाज के आगे आने से शहर में सकारात्मक सन्देश गया है. हर तबके में इस बात की चर्चा है और अब इस दिशा में और भी बेहतर परिणाम आने के आसार हैं. नेत्रदान के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए कई सालों से प्रयास किये जा रहे हैं.

दधीचि देह दान समिति ने किया सराहनीय प्रयास

दधीचि देह दान समिति द्वारा इस दिशा में कई सराहनीय प्रयास किये गये. अनेक लोगों ने अपने अंगों के दान से संबंधित फॉर्म पर स्वेच्छापूर्वक दस्तखत किये और आज भी प्रतिबद्ध हैं. इसी क्रम में डॉ ओपी साह द्वारा भी अपना नेत्रदान किये जाने के बाद उनके मरणोपरांत चिकित्सकों की टीम ने उनके घर उपस्थित होकर उनका नेत्रदान कार्य संपन्न कराया.

नेत्रदान में ली जाती हैं कॉर्निया

नेत्र रोग विशेषज्ञों का कहना है कि नेत्रदान किये व्यक्ति के मरणोपरांत छह घंटे के अंदर ख़ास तौर पर उनकी आंखों से कॉर्निया को ही बेहद सुरक्षित तरीके से अलग कर उसे संरक्षित रखा जाता है. इसके पश्चात जरूरतमंद दृष्टिहीन लोगों की आंखों का ऑपरेशन आधुनिक सर्जरी तकनीक की मदद से कर दान दी हुई कॉर्निया इम्प्लांट की जाती है. इसके पश्चात कुछ समय तक चिकित्सकों द्वारा उस व्यक्ति की मॉनिटरिंग की जाती है और सबकुछ ठीक पाने के बाद उसे छुट्टी दे दी जाती है. मरने के बाद तो हर समुदाय द्वारा मृतक के शरीर का अंतिम संस्कार कर दिया जाता है. शरीर का हर पार्ट नष्ट ही हो जाता है. लेकिन अगर हम जीवित रहते अपने अंगों के दान के लिए अपनी स्वीकृति दे दें तो मृत्यु के पश्चात उन अंगों को दूसरों के शरीर में जीवित रख सकते हैं और दूसरों के जीवन में नया सवेरा ला सकते हैं. यह दान मरने के बाद भी संभव है

अनंत वर्मा, अधिवक्ता

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बोले चिकित्सक

आंखों के कई मामलों में दृष्टिहीन लोगों में आंखों की रोशनी को नेत्रदान के जरिये रोशन किया जा सकता है. इसमें आंखों की बीमारी, चोट आदि की वजहों से दृष्टि बाधित लोगों की आंख में कॉर्निया इम्प्लांट किया जाता है इसका सक्सेस रेट 90 प्रतिशत तक है. इसके लिए जरूरी है दृष्टि के लिए जिम्मेदार सम्बंधित नसों आदि का सक्रिय होना. इसलिए भी लोगों को स्व नेत्रदान कर किसी के अंधेरे जीवन में प्रकाश लाने जैसा पवित्र कार्य करना चाहिए.

डॉ श्वेता भारती, नेत्र सर्जन जीएमसीएच

………जरुरतमंद को दान देना हमारी परंपरा है लेकिन जीवन के बाद के दान से किसी को लाभ पहुंचाना बेहद पवित्र कार्य है. जिले में फिलहाल नेत्रदान के लिए संसाधनों का पूर्ण रूप से विकास नहीं हो पाया है. इसके लिए विशेष ऑपरेशन थियेटर, आइबैंक के साथ साथ विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम की भी जरूरत है. फिलहाल कुछ संस्थाओं द्वारा नेत्रदान के कार्य को यहां संचालित किया जा रहा है जिसमें कटिहार के चिकित्सकों से मदद ली जा रही है.

डॉ प्रमोद कुमार कनौजिया, सिविल सर्जन

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