पूर्णिया. रामबाग स्थित मिल्लिया फखरूद्दीन अली अहमद बीएड शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय में उपन्यास सम्राट प्रेमचंद की पुण्यतिथि मनायी गयी. प्राचार्य डॉ शहबाज रिजवी, शिक्षक एवं सभी प्रशिक्षुओं ने शामिल होकर दीप प्रज्वलित कर एवं उनके तैलचित्र पर पुष्प चढ़ाकर महान् कथाकार को श्रद्धांजली अर्पित की. इस मौके पर शिक्षकों ने मुंशी प्रेमचंद के साहित्य की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि किस प्रकार उनके उपन्यास, कहानियां और नाटक सामाजिक विषमताओं, अंधविश्वासों और आम आदमी के संघर्षों को दर्शाते हैं. लोगों ने कहा उनकी रचनाएं आज भी समाज को आईना दिखाती हैं और उनके विचारों का अनुसरण करने से सामाजिक समस्याओं का समाधान हो सकता है. प्राचार्य शहबाज रिजवी ने अपने संबोधन में कहा कि मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के लमही गांव में हुआ था, मूल नाम धनपत राय था और उनका निधन 8 अक्टूबर 1936 को हुआ था. उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़कर साहित्यिक सेवा की, मर्यादा और हंस जैसी पत्रिकाओं का संपादन किया और गोदान, गबन, निर्मला जैसे कालजयी उपन्यास लिखे. वे हिंदी साहित्य में उपन्यास सम्राट के रूप में जाने जाते हैं. मुंशी प्रेमचंद ने अपनी लेखनी से ग्रामीण जीवन, गरीबी और आम आदमी की दुश्वारियों को यथार्थवादी ढंग से प्रस्तुत किया. उन्होंने अंधविश्वासों और समाज की रूढ़िवादिता पर अपनी कहानियों और उपन्यासों के माध्यम से प्रहार किया है. उनकी रचनाओं में पात्रों का मनोविज्ञान बड़ी गहराई से दर्शाया गया है, जिससे वे जमीन से जुड़े हुए लगते हैं और पाठक को अपनेपन का एहसास कराते हैं. प्रेमचंद ने न केवल किसानों और गरीब तबके के जीवन पर लिखा, बल्कि उन्होंने प्रेम, विवाह और सामाजिक सुधार जैसे विषयों पर भी अपनी रचनाओं के माध्यम से विचार प्रस्तुत किए. प्रेमचंद के साहित्य में गरीबी और आर्थिक विषमताओं को झेलने की क्षमता दर्शाई गई है. प्राचार्य ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद का साहित्य आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उनके समय में था. कार्यक्रम में प्राचार्य के साथ सभी सहायक प्राध्यापक एवं शिक्षकेत्तर कर्मचारियों तथा छात्र-छात्राओं की अहम भूमिका रही. आयोजन में ध्रुव कुमार, प्रवीण कुमार सिंह, राजीव कुमार, कुन्दन कुमार, सौरभ कुमार, अंसारूल हक, शादाब कौशर, शफीर अहमद, सूरज कुमार, बुनो, सुधा, उमा एवं बबीता का भी अहम योगदान रहा.
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