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भट्टा दुर्गाबाड़ी में इस दफा बनाया गया है भव्य इको-फ्रेंडली पंडाल

इस दफा पहली बार महालया के दिन निकाली गयी शोभायात्रा

इस दफा पहली बार महालया के दिन निकाली गयी शोभायात्रा

पूर्णिया. मौक़ा चाहे किसी भी उत्सव या समारोह का हो, भट्ठा दुर्गाबाड़ी में बंग संस्कृति की अद्भुत और समृद्ध परम्परा निखर उठती है. ख़ास तौर पर जब अवसर प्रसिद्ध दुर्गापूजा का हो तो इस पूरे इलाके की बात ही अनूठी हो जाती है. यहां सौ सालों से भी अधिक समय से पीढ़ी दर पीढ़ी पूजनोत्सव का आयोजन होता आ रहा है और इस दफा इस आयोजन का 110वां वर्ष है. सभी के अन्दर उत्साह है जिसकी साफ़ झलक यहां आयोजित होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों में बखूबी नजर आ रहा है. हाल ही में सम्पूर्ण पारदर्शिता के साथ पूजा कमेटी का चुनाव भी संपन्न हुआ है. इस वजह से भी नव चयनित कमेटी के पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं सहित सभी के अन्दर उमंग भरा है. इस दफा पहली बार देवी की आराधना शुरू होने के पूर्व महालया को एक भव्य शोभायात्रा निकाली गयी. यहां बनाया गया पंडाल पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों का ध्यान आकर्षित करता है. पंडाल में जहां इको-फ्रेंडली घास फूस से सज्या की गयी है वहीं पंडाल के बाहर और अन्दर की सजावट में पूर्णिया के प्रसिद्ध आर्टिस्ट गुलू दा के द्वारा बांस का उपयोग कर बेहद खूबसूरत झूमर, पंडाल की छत से झूलता नजर आता है. इसके अलावा बांस से निर्मित पारंपरिक सूप और डगरे को भी सजाकर स्थान दिया गया है.

बंग्ला वर्णमाला और भाषा के प्रति युवाओं को प्रेरित करने का प्रयास

पंडाल के अन्दर बंगला भाषा के प्रति युवाओं का ध्यान आकृष्ट करने के लिए वर्णाक्षरों को हिन्दी वर्णों के साथ इस तरह प्रस्तुत किया गया है जिससे हर कोई दोनों वर्णों की पहचान आसानी से कर सकें. पूजा कमिटी के सचिव सुचित्रो घोष उर्फ़ बाबू दा ने बताया कि सम्पूर्ण वर्णमाला को गुलू दा ने ही तैयार किया है और यह एक प्रयास है कि जिस तरह विभिन्न स्कूलों में इंग्लिश भाषा के प्रति बच्चों का रुझान बढ़ा है और वे बंगला भाषा के प्रति उदासीन हो रहे हैं उनके अन्दर अपनी भाषा को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए जागृति आये और वे इसकी ओर प्रेरित हों.

विभिन्न प्रतियोगिताओं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की मची है धूम

समिति के सदस्य बताते हैं कि सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिये एक तरफ जहां बांग्ला संस्कृति को समृद्ध किया जाता है वहीं दूसरी ओर अन्य स्थानों एवं पूर्णिया और आस पास की लोक कला एवं अन्य भारतीय सांस्कृतिक कलाओं को भी जीवंत रुप देने की पहल की जाती है. इस तरह के कार्यक्रमों में खास तौर पर कला में रुचि रखने वाले बच्चों का मनोबल बढ़ाया जाता है. इसी कड़ी में पंचमी तिथि को सरोद और सितार की युगलबंदी के अलावा कथक नृत्य की भी प्रस्तुती हुई जिसमें कोलकाता, बनारस और चीन के शंघाई से आये कलाकारों ने भाग लिया.

बोले कमेटी अध्यक्ष

भट्ठा दुर्गाबाडी को जिले में कल्चरल हब माना जाता है. हर दिन यहां अलग अलग तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. पिछले 31 अगस्त से ही प्रत्येक रविवार को सभी विधाओं के लिए प्रतियोगिता शुरू हो गयी. जिसमें पेंटिंग, गाना संगीत, नृत्य, वाद्य यंत्र, क्विज, डिबेट, क्राफ्ट प्रतियोगिता का आयोजन किया गया. अमित भट्टाचार्य, अध्यक्ष, पूजा कमेटी

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