टीबी विभाग में घंटों इंतजार करते रहे मरीज, नहीं आये डाॅक्टर साहब
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विभागीय उदासीनता. सदर अस्पताल का कई विभाग बदइंतजामी का िशकार
टीबी विभाग में घंटों इंतजार करते रहे मरीज, नहीं आये डाॅक्टर साहब हांफते-खांसते टीबी के मरीज जिस उम्मीद के साथ यहां पहुंचते हैं, वह यहां आकर दम तोड़ देती है. ऐसा नहीं है कि अस्पताल में इलाज के लिए साधन उपलब्ध नहीं है, लेकिन जिन हाथों में मरीजों की बेहतरी की बागडोर सौंपी गयी है, […]
हांफते-खांसते टीबी के मरीज जिस उम्मीद के साथ यहां पहुंचते हैं, वह यहां आकर दम तोड़ देती है. ऐसा नहीं है कि अस्पताल में इलाज के लिए साधन उपलब्ध नहीं है, लेकिन जिन हाथों में मरीजों की बेहतरी की बागडोर सौंपी गयी है, वे ही मरीजों के प्रति उदासीन हैं.
पूर्णिया : सरकार के तमाम कवायद के बावजूद सदर अस्पताल की सेहत अच्छी नजर नहीं आ रही है. यूं तो अस्पताल का कई विभाग बदइंतजामी का शिकार है, लेकिन यहां के यक्ष्मा विभाग में केवल और केवल बदइंतजामी नजर आती है. हांफते और खांसते टीबी के मरीज जिस उम्मीद के साथ यहां पहुंचते हैं,
वह यहां आकर दम तोड़ देती है. ऐसा नहीं है कि अस्पताल में इलाज के लिए साधन उपलब्ध नहीं है, लेकिन जिन हाथों में मरीजों की बेहतरी की बागडोर सौंपी गयी है, वे ही मरीजों के प्रति उदासीन हैं. प्रभात खबर की टीम ने जब सोमवार को सदर अस्पताल के टीबी वार्ड का जायजा लिया तो समझ में आया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा उपलब्ध करायी गयी दवा के बावजूद यहां आने वाले रोगी बेदम क्यों है.
दरअसल यहां मरीज आकर घंटों डॉक्टर का इंतजार करते हैं. कम ही रोगी ऐसे भाग्यशाली होते हैं, जिन्हें डॉक्टर साहब का दर्शन नसीब हो पाता है. बांकी लोग व्यवस्था को कोसने की बजाय खुद को भाग्यहीन मान वापस अपने घर लौट जाते हैं.
सुबह से दोपहर तक होता रहा डॉक्टर का इंतजार : सिविल सर्जन कार्यालय के ठीक सामने पश्चिम दिशा में स्थित है टीबी वार्ड.सुबह के सात बजे से ही श्रीनगर,दमका,चिमनी बाजार आदि इलाके से टीबी के संभावित मरीज परचा लेकर विभाग के ओपीडी के इर्द गिर्द चक्कर लगा रहे थे .
इन मरीजों में कई मरीज काफी गंभीर भी थे. प्रचंड गरमी के बावजूद मरीज खुले मैदान में डॉक्टर के इंतजार में खड़े थे.वहां मरीजों ने बताया कि डॉक्टर ही नहीं आये हैं.इस समय दोपहर के लगभग बारह बज रहे थे. निराश कई रोगी अब वापस लौटने लगे थे.
बिना डॉक्टर के हो रही थी जांच
इस समय दिन के 12:00 बज रहे थे. टीबी विभाग का पैथोलॉजी विभाग खुला था. जहां मरीजों के बलगम को जांच के लिए लाया गया था. हैरानी की बात यह थी कि डॉक्टर आये नहीं, लेकिन मरीजों का बलगम लेकर उसकी जांच पारा मेडिकल कर्मियों द्वारा आरंभ कर दी गयी थी.
एक कर्मी ने बताया कि डॉक्टर साहब अब तक नहीं आये हैं. वे लोग अपने स्तर से सैंपल ले कर जांच कर रहे है. डॉक्टर के आने का समय पूछने पर एक कर्मी ने बताया के चिकित्सा पदाधिकारी का भी ओपीडी समय में ही आने का समय निर्धारित है. डॉक्टर कहां है किसी कर्मी को पता नहीं था.
गांवों में डॉट्स के वसूले जाते हैं पैसे
टीबी विभाग में इलाज हेतु आये मरीजों में से कई मरीजों के परिजनों ने बताया कि विभागीय लोगों के नाम पर डॉट्स के कीट वितरण करते समय बतौर खुशनामा रुपये लिया जाता है. इतना ही नहीं कई मरीजों ने बताया कि रुपये देने में असमर्थ लोगों की दवा व सलाह भी बंद कर दी जाती है.
यही कारण माना जा रहा है कि दवा छूटने के कारण मरीजों को टीबी से छुटकारा नहीं मिल पाता है. जानकार बताते हैं कि जिले में टीबी उन्मूलन दर में भी गिरावट आने का मुख्य कारण यह भी माना जाता है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा मरीजों को मुफ्त में दवा उपलब्ध करायी जाती है.
डॉक्टरे नय छैय तअ केय देते दवा…
गंभीर अवस्था में टीबी का इलाज कराने आये नया टोला,बसंत बाग निवासी मरीज पलटू राम की भाभी इंदिरा देवी ने बताया कि ‘ तीन दिन सय यहां आबै छी,डॉक्टरे नय छैय तैय के देतैय दवा ‘ . पलटू का खांसते-खांसते बुरा हाल था.दमका से आयी शालेहा खातुन ने बताया कि काफी दिनों से टीबी से पीड़ित हूं. पहले गांव में ही दवा मिल जाती थी.
किंतु दवा नियमित नहीं मिलने के कारण बीमारी बढ़ गयी है, इसलिए यहां आयी हूं. लेकिन बारह बजने को है,डॉक्टर का पता ही नहीं है.श्रीनगर से आये गुरु कुमार तीन वर्ष का है. वह भी पिछले सात माह से टीबी से ग्रस्त है.इलाज हेतु यहां पहुंची उसकी मां कविता देवी ने बताया कि पहले बाहर निजी डॉक्टर से इलाज कराया. कोई फायदा ही नहीं हुआ. इसलिए गांव वालों की सलाह से यहां आयी हुं. किंतु साहब नहीं आये हैं, इसलिए लौट रहे हैं.
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