पूर्णिया : शहर से गांव तक के सड़कों पर बच्चे कितने सुरक्षित हैं, कह पाना कठिन है. मुजफ्फरपुर की घटना के बाद एक बार फिर छात्रों की सुरक्षा सवालों के घेरे में है. शहर हो या कस्बा इलाका सब जगह एक जैसा हाल है. सरकारी स्कूल के बच्चों को तो पैदल ही स्कूल तक जाना है, लेकिन निजी विद्यालय जो खुद को कॉन्वेंट कहलाने में गर्व महसूस करते हैं
वहां भी बच्चों की सुरक्षा मुकम्मल नहीं है. ऐसे स्कूलों में बच्चों को लाने और पहुंचाने के लिए परिवहन की सुविधा उपलब्ध होती है. जानकारों की माने तो स्कूलों में जो वाहन इस्तेमाल में लाये जाते हैं, उसमें से 50 फीसदी ही परिवहन विभाग के मानक पर खड़ा उतरता है.
यह अलग बात है कि परिवहन विभाग का दावा है कि स्कूल बसों की फिटनेस की जांच नियमित होती है. लेकिन विभाग के पास इस बात का कोई आंकड़ा नहीं है कि बच्चों को लाने और ले जाने का काम कितने प्राइवेट वाहनों द्वारा किया जाता है और उसकी जांच होती है या नहीं. उच्चतम न्यायालय ने सभी वाणिज्यिक वाहन में स्पीड गवर्नर लगाने का आदेश दिया है
जो आज भी ठंडे बस्ते में है. इसके अलावा वाहनों में एचएसआरपी लगाना आवश्यक है जिसका पालन समुचित रूप से नहीं हो रहा है. जाहिर है कि जर्जर वाहनों पर बच्चे कतई सुरक्षित नहीं है.
अधर में है स्पीड गवर्नर लगाने का आदेश. उच्चतम न्यायालय के आदेशानुसार सभी वाणिज्यिक वाहनों में स्पीड गवर्नर लगाया जाना अनिवार्य है. इसके लिए जिला परिवहन पदाधिकारी व मोटरयान नियंत्रकों को आदेश भी दिया गया है. आदेशानुसार जिन वाहनों में स्पीड गवर्नर, रिफ्लेक्टिव टेप व एचएसआरपी नहीं लगा रहेगा, उन वाहनों को फिटनेस प्रमाण पत्र उपलब्ध नहीं कराया जायेगा. लेकिन आज तक जिले में स्पीड गवर्नर लगाने का काम आरंभ नहीं हो सका है.
जानकार बताते हैं कि तीन एजेंसी द्वारा राज्य सरकार से स्पीड गवर्नर लगाने की अनुमति प्राप्त की जा चुकी है. इस दिशा में विभागीय अधिकारियों द्वारा कागजी प्रक्रिया जारी है. प्रक्रिया की रफ्तार से लग रहा है कि अभी कुछ और दिनों तक इंतजार करना होगा और सड़कों पर बेलगाम गति से वाहनों का परिचालन जारी रहेगा.
जर्जर बस व ऑटो पर स्कूली बच्चे हैं असुरक्षित
जिला मुख्यालय में ही तीन दर्जन से अधिक निजी विद्यालय संचालित हो रहे हैं. शहर के लगभग एक दर्जन स्कूलों की बात छोड़ दे तो अधिकांश स्कूलों के वाहन फिटनेस के स्तर पर भी खड़े नहीं उतर पा रहे हैं. कई विद्यालयों द्वारा ऐसे बसों एवं मिनी वैन का परिचालन किया जा रहा है जिसका एक-एक हिस्सा सड़क पर आवाज करता रहता है. पता नहीं इन वाहनों को फिटनेस का प्रमाण पत्र कहां से मिल जाता है. इसके अलावा मारुति वैन और ऑटो का भी धड़ल्ले से उपयोग हो रहा है,
जिसे देख कर उसके फिटनेस पर सवाल उठना लाजिमी है. इससे अलग इन बसों और ऑटो में बच्चों को भेड़ बकरी की तरह लाद कर घर से स्कूल और स्कूल से घर पहुंचाया जाता है. कई वाहन तो निजी नंबर के हैं जिससे परिवहन विभाग को राजस्व का भी चूना लग रहा है. इन वाहनों के चालक बेलगाम होकर इसका परिचालन करते हैं. ऐसे में स्पीड गवर्नर की जरूरत महसूस होती है.
सभी वाहनों की गति सीमा है निर्धारित
ट्रक, बस समेत सभी भारी वाहनों की अधिकतम गति सीमा 80 किलोमीटर प्रति घंटा निर्धारित है. वहीं मध्यम आकार के वाहनों की गति सीमा 60 किलोमीटर प्रति घंटा निश्चित होती है. जबकि स्कूली वाहनों की अधिकतम गति सीमा 40 किलोमीटर प्रति घंटा निर्धारित की गयी है. वास्तव में इस गति सीमा का पालन नहीं होता है. स्कूली बस हो या वैन या फिर बच्चे को ढो रहे ऑटो सभी निर्धारित मापदंड से अधिक गति में वाहन का परिचालन करते हैं. स्पीड गवर्नर लगने के बाद इस गड़बड़ी पर अंकुश लग सकता है.
वाहनों में एचएसआरपी लगाना जरूरी
न्यायालय के आदेश के अनुसार सभी प्रकार के वाहन में हाइ सिक्युरिटी प्लेट नंबर (एचएसआरपी) लगाना अनिवार्य है. इसके लिए जिले में एजेंसी भी नियुक्त हैं लेकिन कतिपय कारणों से आज भी एचएसआरपी लगाने का कार्य काफी मंथर गति से चल रहा है. नियम यह है कि एचएसआरपी नहीं होने पर वाहन मालिक को जुर्माना चुकाना होगा. इतना ही नहीं अर्थदंड के अलावा एचएसआरपी नंबर प्लेट का चालान भी विभाग में कटा कर उसकी रसीद भी प्रस्तुत करनी होती तभी उनके वाहनों को छोड़ा जायेगा.
स्पीड गवर्नर लगाने के लिए विभाग द्वारा अधिकृत एजेंसी द्वारा कागजी प्रक्रिया पूरी नहीं की गयी है. पूरी किये जाने के बाद स्पीड गवर्नर लगाने का आदेश दे दिया जायेगा. तब तक वैसे वाहनों के फिटनेस सर्टिफिकेट पर रोक लगी रहेगी जो स्पीड गवर्नर से युक्त नहीं होगा. स्कूली बसों की समय-समय पर फिटनेस जांच होती रहती है.
मनोज कुमार शाही, डीटीओ पूर्णिया