संवाददाता, पटना
आश्विन कृष्ण अष्टमी में आज रविवार को रोहिणी नक्षत्र एवं जयद् योग के सुयोग में महिलाएं अपने संतान की कुशलता, दीर्घायु और वंश वृद्धि की कामना से निर्जला जिउतिया का व्रत करेंगी. आज अष्टमी तिथि की उपस्थिति अपराह्न काल में, प्रदोष काल में और चंद्रोदयव्यापिनी होने से यह ब्रह्मभाव हो गया है. सनातन धर्मावलंबियों में इस व्रत का खास महत्व है. भविष्य पुराण, स्मृति ग्रंथ, निर्णय सिंधु, विष्णु धर्मोत्तर में प्रदोष व्यापिनी अष्टमी में जीमूतवाहन की पूजा का वर्णन किया गया है .अष्टमी तिथि सुबह 08:41 बजे से शुरूज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा ने विभिन्न पंचांगों के हवाले से बताया कि आज रविवार को अष्टमी तिथि सुबह 08:41 बजे से शुरू होकर कल सोमवार 15 सितंबर की सुबह 06:36 बजे तक रहेगा. इसीलिए सोमवार 15 सितंबर को अष्टमी तिथि के समाप्ति के बाद व्रती महिलाएं पारण करेंगी .
दूर होता है नागदोष का प्रभाव
जिउतिया व्रत से जुड़ी प्रमुख कथा में राजा जीमूतवाहन ने नागवंश की रक्षा हेतु अपने प्राणों की आहुति दिये थे. उनकी करुणा और त्याग की प्रेरणा से यह व्रत त्याग, धर्म व करुणा की शिक्षा देता है. इस पौराणिक कथा के मुताबिक व्रत करने से नागदोष का प्रभाव घर-परिवार से दूर होता है और संतान का स्वास्थ्य उत्तम होता है. इस कथा को श्रद्धापूर्वक सुनने से व्रती महिलाओं की संतान दीर्घायु व रोगमुक्त रहते हैं. घर-परिवार पर नागदोष का प्रभाव कम होता है. यह व्रत त्याग, करुणा और धर्म की शिक्षा देता है.संतान, सौभाग्य व वंश वृद्धि के लिए जिउतिया व्रत
महिलाएं अपने अखंड सौभाग्य, पुत्रों की मंगल कामना, दीर्घायुष्य व वंश वृद्धि के लिए जीवत्पुत्रिका (जीउतिया) का निर्जला व्रत करेंगी. कुश से जीमूतवाहन की मूर्ति बनाकर साथ में माता लक्ष्मी व देवी दुर्गा की पूजा करने के बाद माताएं ब्राह्मण या योग्य पंडित से जीमूतवाहन की कथा सुनकर दक्षिणा प्रदान करेंगी.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

