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Women Voters Bihar Election 2025:बिहार में 15 लाख नई महिला वोटर बनेगी गेमचेंजर

Women Voters Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सबसे बड़ी कहानी सिर्फ गठबंधन और प्रत्याशी नहीं होंगे, बल्कि वो नई महिला मतदाता होंगी, जिनकी संख्या 15 लाख से ऊपर पहुंच चुकी है.

Women Voters Bihar Election 2025: बिहार के राजनीति के अखाड़े में इस बार आधी आबादी पहले से कहीं ज्यादा ताकतवर होकर उतर रही है. आंकड़े बताते हैं कि बिहार में पिछले एक साल में करीब 15 लाख नई महिला वोटर जुड़ी हैं. यह सिर्फ संख्या का बढ़ना नहीं है, बल्कि चुनावी नतीजों को निर्णायक रूप से प्रभावित करने वाला कारक है.

बीते चुनावों में भी महिलाओं ने पुरुषों से अधिक वोटिंग की थी और अब यह रुझान और तेज हो चुका है. यही वजह है कि सभी राजनीतिक दल महिला मतदाताओं को साधने की नई रणनीति बनाने में जुट गए हैं.

आधी आबादी का बढ़ता दबदबा

2024 के लोकसभा चुनाव तक बिहार में कुल महिला मतदाताओं की संख्या 3 करोड़ 57 लाख 71 हजार 306 थी. विधानसभा चुनाव 2025 आते-आते यह आंकड़ा बढ़कर 3 करोड़ 72 लाख 57 हजार 477 हो गया है. यानी एक साल में 14 लाख 86 हजार से ज्यादा नई महिलाएं मतदाता सूची में जुड़ी हैं. यह महज चुनावी रजिस्टर का आंकड़ा नहीं, बल्कि राजनीतिक भागीदारी में बढ़ती महिला शक्ति का सबूत है.

विशेष रूप से मुजफ्फरपुर, पश्चिम चंपारण, वैशाली और सीतामढ़ी जैसे जिलों में महिला वोटरों का उभार और भी चौंकाने वाला है. इन जगहों पर 50 हजार से अधिक नई महिला वोटर जुड़े हैं. इन जिलों में चुनावी समीकरण बदलना अब महिला वोटरों की सक्रियता पर ही निर्भर करेगा.

वोटिंग में पुरुषों से आगे महिलाएं

बिहार की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी लगातार बढ़ रही है. बीते चुनावों में साफ दिखा कि महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से अधिक रहा. यह प्रवृत्ति इस बार और भी मजबूत हो सकती है. महिला वोटरों की निर्णायक भूमिका किसी भी सीट पर जीत और हार का फासला तय कर सकती है. यही वजह है कि दल अब महिलाओं को साधने के लिए नई-नई योजनाओं और वादों का खाका तैयार कर रहे हैं.

महिलाएं इस बार सिर्फ वोटर नहीं हैं, बल्कि एजेंडा सेट करने वाली शक्ति के रूप में उभर रही हैं. शिक्षा, सुरक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और महिला सशक्तिकरण जैसे मुद्दों पर उनकी आवाज बुलंद हो रही है. छात्राओं और महिला समूहों ने विधानसभा में महिला प्रतिनिधित्व बढ़ाने की मांग तेज कर दी है. चुनावी बहस अब सिर्फ जातीय समीकरण या विकास के वादों तक सीमित नहीं रह जाएगी, बल्कि महिलाओं की प्राथमिकताओं पर भी केंद्रित होगी.

राजनीतिक दलों पर बढ़ा दबाव

बढ़ती महिला भागीदारी राजनीतिक दलों के लिए एक चेतावनी भी है. अगर दल महिलाओं को पर्याप्त टिकट देने में चूकते हैं, तो इसका सीधा असर सीटों पर पड़ सकता है. पिछले चुनावों में यह आलोचना उठी थी कि महिलाओं की संख्या वोटिंग में तो अधिक है, लेकिन टिकट वितरण में उनकी हिस्सेदारी बेहद कम रहती है. इस बार मतदाता महिलाएं इस असमानता पर सवाल उठा रही हैं और यह दबाव दलों को रणनीति बदलने के लिए मजबूर कर रहा है.

15 लाख से अधिक नई महिला वोटर आधी आबादी अब सिर्फ “संख्या” नहीं, बल्कि सशक्त राजनीतिक आवाज बन चुकी है, जिसे अनसुना करना किसी भी दल के लिए भारी पड़ सकता है.

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Pratyush Prashant
Pratyush Prashant
कंटेंट एडिटर और तीन बार लाड़ली मीडिया अवॉर्ड विजेता. जेंडर और मीडिया विषय में पीएच.डी. वर्तमान में प्रभात खबर डिजिटल की बिहार टीम में कार्यरत. डेवलपमेंट, ओरिजनल और राजनीतिक खबरों पर लेखन में विशेष रुचि. सामाजिक सरोकारों, मीडिया विमर्श और समकालीन राजनीति पर पैनी नजर. किताबें पढ़ना और वायलीन बजाना पसंद.

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