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पुलिस मुख्यालय की मॉनीटरिंग और गवाहों की हाजिरी से बढ़ी सजा की रफ्तार

बिहार पुलिस ने इस साल अपराधियों को पकड़ने के साथ-साथ उन्हें सजा दिलाने में भी तेज रफ्तार दिखायी है.

– जनवरी से जून के बीच 64 हजार 98 अपराधियों को मिली सजा, शराबबंदी मामलों में सबसे ज्यादा कार्रवाई, कई जिलों ने किया उल्लेखनीय प्रदर्शन संवाददाता, पटना. बिहार पुलिस ने इस साल अपराधियों को पकड़ने के साथ-साथ उन्हें सजा दिलाने में भी तेज रफ्तार दिखायी है. जनवरी से जून के बीच अदालतों में 64 हजार 98 आरोपियों को दोषी ठहराया गया है. इनमें सबसे ज्यादा 56 हजार 897 मामले शराबबंदी कानून से जुड़े हैं, यानी अवैध शराब की तस्करी और खपत के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई अदालत में भी टिक रही है. हत्या के मामलों में 611 दोषियों को सजा मिली है, जिसमें तीन को फांसी और 601 को उम्रकैद सुनाई गई है. इसके अलावा 307 अपराधियों को 10 साल से ज्यादा की सजा, 760 को 10 साल से कम और 1284 को दो साल तक की सजा दी गई है. 61 हजार 143 मामलों में जुर्माना या बॉड भरवाकर छोड़ दिया गया. आंकड़े बताते हैं कि कुछ जिले सजा दिलाने में आगे हैं. उम्रकैद के मामलों में पटना शीर्ष पर है, जहां 35 लोगों को आजीवन कारावास मिला. छपरा में 34, मधेपुरा में 33, शेखपुरा में 32, बेगूसराय में 31, गया में 28, बक्सर में 27, भोजपुर में 24, भागलपुर और अररिया में 23-23 तथा बगहा में 22 दोषियों को उम्रकैद सुनाई गई. 10 साल से ज्यादा सजा के मामलों में भोजपुर आगे है, जहां 20 लोगों को लंबी कैद हुई. पटना में 19, बेतिया में 18 और नालंदा, कैमूर, पूर्णिया व बांका में 15-15 अपराधियों को यह सजा मिली. मौत की सजा पाने वालों में दो मधुबनी और एक कटिहार के हैं. शराबबंदी के बाद सबसे ज्यादा सजा हत्या के मामलों में दी गई. आर्म्स एक्ट में 231, दुराचार में 122, मादक पदार्थ तस्करी में 284, पॉक्सो एक्ट में 154 और एससी-एसटी एक्ट में 151 दोषियों को जेल भेजा गया. उत्पाद कानून में यहां अधिक को मिली सजा मोतिहारी, गया, पटना, भोजपुर, छपरा, नालंदा, बक्सर, औरंगाबाद, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, गोपालगंज, सीवान और सुपौल उत्पाद कानून के तहत सजा दिलाने में आगे रहे हैं. इन जिलों में हत्या और आर्म्स एक्ट के दोषी अधिक मिले हत्या और आर्म्स एक्ट के मामलों में बेतिया, बेगूसराय, गया, पटना, नालंदा, मधेपुरा, बक्सर, औरंगाबाद, समस्तीपुर और खगड़िया जैसे जिलों का प्रदर्शन उल्लेखनीय रहा है. वर्जन किसी केस में पुलिस पदाधिकारी से लेकर डॉक्टर समेत अन्य संबंधित गवाहों को समय पर कोर्ट के समक्ष उपस्थित कराने पर खासतौर से फोकस किया जा रहा है. इसके लिए ऑनलाइन माध्यम भी अपनाया जा रहा है. स्पीडी ट्रायल वाले मामलों में गवाहों को समय पर नियमित रूप से कोर्ट के समक्ष उपस्थित कराने पर फोकस किया जा रहा है. ताकि दोषियों को समय पर सजा दिलाई जा सके और कोई मामला लंबा नहीं चले. विनय कुमार, डीजीपी

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